आधुनिक भारतीय रंगमंच के युग स्तम्भ और वरिष्ठ निर्देशक इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) का मंगलवार की दोपहर को निधन हो गया,वह 94 साल के थे।
इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) का जाना भारतीय रंगमंच और कला जगत के लिए असहनीय क्षति है।
आजादी के बाद समकालीन थियेटर को स्थापित करने में उनका अप्रतिम और ऐतिहासिक योगदान है।
इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) ने लंदन में राडा से 1947 में नाटक की शिक्षा पूरी की। भारत आकर उन्होंने मुम्बई में सक्रिय थियेटर किया, साथ ही प्रगतिशील आर्टिस्ट ग्रुप से भी जुड़े। इस ग्रुप में उस समय सूज़ा, हुसेन, आरा, बाकरे, तैयब मेहता जैसे चर्चित कलाकार सक्रिय थे।
मुम्बई में स्कूल ऑफ ड्रामेटिक आर्ट की स्थापना और नाट्य अकादेमी, मुम्बई के निर्देशक भी बने। थिएटर यूनिट बुलेटिन अंग्रेजी पत्रिका का प्रकाशन भी किया। फिर 1962 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दूसरे निदेशक का कार्यभार संभाला।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय(NSD) के निदेशक के रूप में उनकी प्रतिभा को नए आयाम और विस्तार मिला। यहां उन्होंने नाटक के प्रस्तुतिकरण से लेकर सेट, लाईट, डिजाइन के क्षेत्र में अद्भूत काम किया।
अभिनेता के प्रशिक्षण में आधुनिक पद्धति समेत नाट्य प्रर्दशन में शिल्प और तकनीक के नए मापदंड स्थापित किए।
इस दौरान उनकी प्रमुख मंचीय प्रस्तुतियों में गिरीश कर्नाड का तुगलक, धर्मवीर भारती का अंधायुग, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन समेत शेक्सपियर, मौलियर और ग्रीक ट्रेजिक नाटक भी है।
सन 1962 से 1977 तक का एन. एस. डी. के साथ उनका काम काफी महत्वपूर्ण था। इस दौरान भारतीय रंगमंच नई शक्ल ले रहा था। कडे़ अनुशासन और योजनाबद्ध कार्यशैली अल्काजी की विशेषता थी। उनका यह दौर नई स्थापनाओं और उपलब्धियों का है।
शोध का विषय है कि अंग्रेजी संस्कारों के साथ सोचने समझने वाले इब्राहिम अल्काजी, हिंदी रंगमंच के साथ साथ भविष्य के भारतीय रंगमंच का भी ताना बाना किस तरह शिद्दत से बुन रहे थे। साथ ही कर्मठता और जज्बे से उसकी मजबूत बुनियाद कितनी मेहनत से खड़ी कर रहे थे। हकीकत में तो इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) अपने जीवन में ही जीवंत किंवदंती बन गए थे। उन्होंने खुद को हमेशा काम तक सीमित रखा। निरंतर सक्रियता और सकारात्मक ऊर्जा उनकी कार्यशैली का हिस्सा थी।
सन 1977 में नाट्य विद्यालय छोड़ने के बाद लम्बे समय तक वापस मुड़ कर नहीं देखा और पेंटिंग और कला संरक्षण के ऐतिहासिक काम में जुट गए। सफदर हाशमी की नुक्कड़ नाटक करते हुए हत्या के बाद हुई विरोध सभाओं में इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) ने सक्रिय भाग लिया। उसके बाद में NSD रंगमंडल के साथ तीन नाटक करने के लिए अलक़ाज़ी थियेटर की दुनिया में वापस आए।
गिरीश कर्नाड के रामगोपाल बजाज अनुदित रक्त कल्याण (तले दण्ड) के साथ जुलियस सीज़र और हाऊस आप बरनारडा एल्बा का भी मंचन किया। अपनी दूसरी पारी में इब्राहिम अल्काजी ने स्वतंत्र रूप से भी लिविंग थियेटर के नाम से 92 में काम शुरू किया। नया सपना लिए वह फिर जुट गए।
उन्होंने विरासत, राॅयल हंट आप द सन और तीन बहनें नाटकों का मंचन किया। लिविंग थियेटर की रिहर्सल लिटिल थियेटर ग्रुप के स्टूडियो में होती थी। लगभग तीन साल बाद उनकी सक्रियता फिर कम हो गई और दोबारा से अपने पेंटिंग वह फोटोग्राफी के संरक्षण और संवर्धन में लग गए।
इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) का जिक्र आते ही ओम शिवपुरी, नसीर, ओमपुरी, अनुपम खेर, सुरेखा सीकरी, राज बब्बर, पंकज कपूर, सतीश कौशिक जैसे कामयाब और शानदार सिनेमा एक्टरों का नाम आता है।
इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) के योगदान का बखान और महिमामंडन चर्चित फिल्मी कलाकारों के आधार पर तो बहुत होता है पर रंगमंच में उनके तत्कालीन छात्रों की भूमिका के संदर्भ में उनका मूल्यांकन, योगदान और विश्लेषणात्मक अध्ययन भी आवश्यकता है।अल्काजी ने नाट्य विद्यालय के निदेशक के साथ रंग अध्यापक के रूप में बहुत ही शिद्दत से काम किया। चर्चित समकालीन निर्देशक एम के रैना, प्रसन्ना, रंजीत कपूर, रामगोपाल बजाज, मोहन महर्षि, बंसी कौल, भानु भारती, कमाल अल्लाना, रत्न थियम ने उनके ही सान्निध्य में प्रशिक्षण लिया। विजया मेहता, बलराज पण्डित, मनोहर सिंह, उत्तरा बावकर और रोहिणी हटँगणी जैसे रंगकर्मियों को भी उन्होंने ही प्रशिक्षित किया।
इब्राहीम अलक़ाज़ी (Ebrahim Alkazi) की विलक्षण प्रतिभा का संसार व्यापक था। रंग निर्देशक और अध्यापक के साथ वह कला के संरक्षक और प्रमोटर भी थे। आर्ट हेरिटेज गैलेरी के माध्यम से इस काम में उनकी निरंतर सक्रियता और जीवंतता प्रेरणादायक है।इब्राहिम अल्काजी जैसे बहु प्रतिभाशाली और कला की व्यापक समझ रखने वाले व्यक्तित्व का जाना, एक युग काअवसान है।
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