नई दिल्ली, 27 मई 2022: ऐसे समय में जब देश में नौकरियां चली गई हैं, लोगों की आय घट गई है, देश का किसान त्रस्त है, महंगाई अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही है और देश को कई मोर्चों पर कड़ी चुनौतियों का सामना है, समाज के एक छोटे से वर्ग द्वारा देश और संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ध्वस्त करने की कोशिश, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत बढ़ाने के तरीक़ों का प्रचार, सरकारी संस्थानों का खुल कर दुरूपयोग और चुनाव न होते हुए भी देश में एक अत्यधिक सांप्रदायिक माहौल बनाने की निरंतर चेष्टा कारण बनी कि देश भर से 200 से अधिक मुस्लिम बुद्धिजीवि एकत्रित हों और भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के संरक्षण हेतु एकजुट हो कर समाधान खोंजें।
इसी उद्देश्य से देश के कोने-कोने से आए मुस्लिम बुद्धिजीवी दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब में रविवार 29 मई को एकत्रित होने जा रहे हैं ताकि देश की मौजूदा परिस्थिति और संविधान के समक्ष चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकें।
यह खुलासा आज एक प्रेस कांफ्रेंस में पूर्व सांसद श्री मौहम्मद अदीब, पूर्व सदस्य योजना आयोग सैय्यदा सय्यदैन हामिद, एडवोकेट फुज़ैल अय्यूबी और अन्यों ने मीडिया को संबोधित करते हुए किया।
‘इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल मीट’ के नाम से आगामी रविवार को दिन भर चलने वाली इस संगोष्ठी में देश भर से एकत्रित हुए मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुस्लिम समुदाय से जुड़े प्रतिष्ठित नागरिक विचार-मंथन करेंगे ताकि मिलजुल कर एक सकारात्मक, स्वच्छ और संयुक्त प्रतिक्रिया का स्वरूप तैयार किया जा सके जो कि समय की ज़रूरत है ताकि देश और संविधान का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना और अधिक ध्वस्त होने से बचाया जा सके।
प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए श्री मौहम्मद अदीब ने कहा कि भारतीय संविधान के तीसरे भाग में मूल अधिकार की बात कही जाती है, जिसमें सबको ‘समता का अधिकार’ प्राप्त है। उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि अफसोस की बात है कि आज कुछ लोग इस अधिकार को पैरों तले कुचलने में लगे हैं।
संविधान के चौदहवें और पंद्रहवें अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा’ और ‘राज्य, किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा’। संविधान की ‘उद्देशिका’ में भारत को संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ माना गया है, जिसमें ‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता’ और ‘बंधुता’ की बात कही गयी है। स्पश्टतः यहां राज्य की भूमिका का महत्व है पर खेद का विषय है कि हम कुछ स्थानों पर राज्य की भूमिका को बदलते देख रहे हैं और कुछ नहीं कर रहे। सांप्रदायिकता निरंतर बढ़ रही है। हम ऐसे मक़ाम पर पहुंच गये हैं जहां लोगों को अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों, विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ की जा रही क्रूरता पर खुशी मनाते देखा जा सकता है। मुसमलानों को निशाना बनाने के लिए समय-समय पर कई मुद्दों को गढ़ा गया है, जिसमें गौ-रक्षा और गौ-मांस खाने से लेकर मॉब लिंचिंग और लव-जिहाद तक, एनआरसी-सीएए के खिलाफ शातिपूर्ण प्रदर्शन को राष्ट्र-विरोधी क़रार देना भी शामिल हैं। बीते दिनों में कितने ही मुद्दों पर विवादों को सुनियोजित किया गया – चाहे हिजाब, हलाल मांस, मुअजि़्ज़न की अज़ान, द कश्मीर फाइल्स हों या भगवाधारी संतों की विविध धर्म-संसदों में नरसंहार की अपीलें हों। इस सब के चलते अवाम में कट्टरता बढ़ रही है जो कि देश के हित में नहीं है।
यही कारण है कि उदारवादी विचार रखने वाले भारतीय और विशेष रूप से मुसलमानों में यह भावना जागृत हो रही है कि इस बहाव पर तुरंत अंकुश लगाने की आवश्यकता है। सभी संविधान-प्रेमी भारतीयों के लिए यह मुद्दा अति चिंता का विषय है। इस संदर्भ में विभिन्न मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समूह समय-समय पर चर्चा भी करते रहे हैं। यही समय की ज़रूरत है और इसी ज़रूरत को पूरा करने की कोशिश में देश भर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मुस्लिम समाज के गणमान्य व्यक्तियों को रविवार को दिल्ली आमंत्रित किया गया है।
इसी आवश्यकता के मद्देनज़र, सरकार और सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े रहे मुस्लिम समुदाय के गणमान्य व्यक्ति जैसे सेवानिवृत सिविल सर्विस सर्वेंटस – आइएएस/आईपीएस/आदि – सेवानिवृत न्यायधीशों, सशस्त्र बलों से जुड़े रहे अफसरों, कानूनी विशेषज्ञों, वकीलों, टैक्नोक्रैट, शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों, पत्रकारों, राजनीति से जुड़े रहे लोगों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि को आमंत्रित किया गया है ताकि एकजुट होकर विचारों के आदान-प्रदान से और राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखते हुए अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में इस जटिल और ज्वलंत समस्या के समाधान की दिशा में एक उपयुक्त दृष्टिकोण और रणनीति तैयार की जा सके।
इस मौक़े पर श्री मौहम्मद अदीब ने कहा कि हमको हमारे सामने पैदा हुई परिस्थिति और परिदृश्य का मिलजुल कर आकलन करना होगा और देश-हित में उन ताक़तों के एजेंडे का मुकाबला करने की रणनीति तैयार करना होगी जो देश के संविधान और मूल्यों को खंडित करने पर तुली हुई हैं। उन्होंने बताया कि दिन भर चलने वाले सम्मेलन में हमारे सामने पेश चुनौतियों को समझने, उनका विश्लेषण करने, विभिन्न सुझावों को एकत्रित करने और मिलजुल कर एक रण्नीति तैयार करने की कोशिश की जाएगी ताकि सांप्रदायिक ताक़तों के एजेंडे को कमज़ोर किया जा सके।
श्री अदीब ने आगे कहा कि यह तब तक मुमकिन नहीं है जब तक समाज का वह बुद्धिजीवी वर्ग आगे न आए जो भारत जैसे महान देश के विकास में औरों के साथ कंधे से कंधा मिला कर शामिल रहा है, और विभिन्न कार्यक्षेत्रों में शीर्ष स्तर पर काम कर चुका है। मुस्लिम समाज में से ऐसे लोगों का आगे आना समय की आवश्यकता है क्योंकि कोई भी सभ्य नागरिक नहीं चाहेगा कि कमान उन हाथों में पहुंचे जो राष्ट्र और उसके नागरिकों के समग्र लाभ के स्थान पर निजी या खंडित करने वाले मुद्दों को बढ़ावा दे रहे हों।
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