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13 सितम्बर २०१९
दिल्ली से तरन्नुम अतहर की रिपोर्ट
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री रामविलास पासवान जी ने हिन्दी दिवस के अवसर पर शनिवार को कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी सरकार से मांग करती है कि सरकार संविधान में संशोधन कर उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों सहित सभी न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दे। अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करे। साथ ही हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने का काम करे।
उनहोने कहा कि संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को संघ की राजभाषा स्वीकार करते हुए संविधान के भाग 5 एवं 6 के क्रमश: अनुच्छेद 120 तथा 210 में तथा भाग 17 के अनुच्छेद 343, 344, 345, 346, 347, 348, 349, 350 तथा 351 में राजभाषा हिन्दी के प्रावधान किए गए और भारत की 22 भाषाओं को संविधान की अनुसूची-8 में हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी, संस्कृत असमिया, ओड़िया, बांग्ला, गुजराती, मराठी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, मणिपुरी, कोंकणी, नेपाली, संथाली, मैथिली, बोडो और डोगरी को मान्यता दी गई है।
उनका मानना था कि सन् 1967 में 21वें संविधान संशोधन द्वारा सिंधी भाषा 8वीं अनुसूचीमें जोड़ी गई थी। सन् 1992 में 71वें संविधान संशोधन द्वारा कोंकणी, नेपाली तथा मणिपुरी भाषाएं 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं। सन् 2003 में 92वें संविधान संशोधन द्वारा संथाली, मैथिली, बोडो तथा डोगरी भाषाएं 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं।
अनुच्छेद 120 के खंड (1) के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 348 संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जायेगा, परंतु लोक सभा का अध्यक्ष या राज्य सभा का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति सदन में किसी सदस्य को, जो हिन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, तो उसे अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है।
अनुच्छेद 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी संघ की राजभाषा है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। तथापि संविधान के इसी अनुच्छेद 343 के खंड(2) के अनुसार किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के लागू होने के समय से पन्द्रह वर्ष की अवधि (अथार्त 26 जनवरी, 1965) तक संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए वह संविधान के लागू होने के समय से ठीक पहले प्रयोग की जाती थी। (अर्थात 26 जनवरी, 1965 तक अंग्रेजी के उन सभी प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाती रहेगी, जिनके लिए वह संविधान के लागू होने के समय से पूर्व प्रयोग की जाती थी।
उनहोने कहा कि अनुच्छेद 343 के खंड (2) के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि में भी अर्थात् 26 जनवरी, 1965 से पूर्व भी राष्ट्रपति आदेश द्वारा किसी भी राजकीय प्रयोजन के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ देवनागरी के प्रयोग की अनुमति दे सकते हैं।
लेकिन देश के लिए शर्म की बात है कि आजादी के 72 साल के बाद भी अंग्रेजी का विस्तार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। हिन्दी एवं भारतीय भाषा की स्थिति दयनीय होती जा रही है। आज अंग्रेजी का स्थान महारानी जैसा है तथा हिन्दी एवं अन्य भाषाओं का स्थान नौकरानी जैसा। संविधान की धारा 348 के अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा संशोधन न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होगी। संसद या राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उप विधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। संविधान के अनुच्छेद 348(2) खंड(1) के उपखंड (क) में किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से उस उच्च न्यायालय के कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। किन्तु इस खंड की कोई बात उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर लागू नहीं होगी।
उन्होंने ख़ुशी जाहिए करते हुए कहा कि आज की तारीख में देश के सारे कामकाज अंग्रेजी में चल रहे हैं, हिन्दी का प्रयोग नाममात्र का है। उच्चतम न्यायालय की सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी में हैं। हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं के उपयोग की अनुमति नहीं है।
इसी तरीके से 4 उच्च न्यायालय बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश को छोड़कर अन्य किसी भी उच्च न्यायालय में अंग्रेजी को छोड़कर हिन्दी या स्थानीय भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
किसी भी आजाद देश की अपनी भाषा होती है जापान, सारे यूरोपीय देश, जर्मनी, चीन आदि की अपनी भाषा है और अपनी भाषा में कामकाज करके विकसित राष्ट्र बने हैं। भाषा का संबंध पेट से होता है इस देश में अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुई। इसके पहले उर्दू और फारसी भाषा थी। हिन्दी, संस्कृत, देवनागरी भारत की सर्वाधिक पुरानी भाषा है, लेकिन अंग्रेजी के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि भाषा का संबंध पेट से होता है। जब लोगों को लगा कि नौकरियां और खासकर बड़ी-बड़ी नौकरियां अंग्रेजी माध्यम से मिलती है तो उन्होंने जबरदस्ती अंग्रेजी को सीखना शुरू कर दिया। अंग्रेजी को जबरदस्ती राजभाषा के रूप में देश पर थोपा।
अपनी हिन्दी भाषा के संबंध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1918 में कहा था कि “भाषा माता के समान है और माता पर जो प्रेम होना चाहिए वह हम लोगों में नहीं है। हम अंग्रेजी के मोह में फंसे हैं। हमारी प्रजा अज्ञान में डूबी है। हमें ऐसा उद्योग करना चाहिए कि एक वर्ष में राजकीय भाषाओं में, कांग्रेस में, प्रांतीय सभाओं में तथा अन्य सभा समाज में व सम्मेलनों में अंग्रेजी का एक भी शब्द सुनाई न पड़े। हम अंग्रेजी का व्यवहार बिलकुल त्याग दें।
उन्होंने पुन: कहा था – अगर स्वराज अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों और उन्हीं के लिए होने वाला हो तो नि:संदेह अंग्रेजी ही राष्ट्र भाषा होगी। लेकिन अगर स्वराज, करोड़ों निरक्षरों, निरक्षर बहनों, दलितों और अन्त्यजों के लिए होने वाला हो, तो मैं कहूंगा कि एक मात्र राष्ट्र भाषा हिन्दी हो सकती है।” नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हिन्दी के संबंध में कहा “सबसे पहले मैं एक गलतफहमी दूर कर देना चाहता हूं। कितने ही सज्जनों का ख्याल है कि बंगाली लोग या तो हिन्दी के विरूद्ध होते हैं या उसकी उपेक्षा करते हैं। ये बात भ्रम पूर्ण हैं। इसका खंडन करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। मैं व्यर्थ अभिमान नहीं करना चाहता परन्तु इतना तो अवश्य कहूंगा कि हिन्दी साहित्य के लिए जितना कार्य बंगालियों ने किया है, उतना हिन्दी भाषी प्रांत छोड़कर और किसी प्रांत के निवासियों ने शायद ही किया हो। मैं इस बात को मानता हूं कि बंगाली लोग अपनी मातृ-भाषा से अत्यंत प्रेम करते हैं और ये कोई अपराध नहीं है शायद हममें से कुछ आदमी ऐसे भी हों, जिन्हें इस बात का डर हो कि हिन्दी वाले हमारी मातृ-भाषा बंगाली को चुराकर उसके स्थान पर हिन्दी रखवाना चाहते हैं। ये भ्रम भी निराधार है। हिन्दी प्रचार का उद्देश्य ये है कि जो काम आज अंग्रेजी से लिया जाता है, वह आगे चल कर हिन्दी से लिया जाए।” श्री विक्रम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने एक भाषण में कहा था कि अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भावना हो, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हिन्दी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता है। जो सज्जन हिन्दी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वह निश्चित ही भारत बंधु हैं। हम सबको संगठित हो कर इस ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए। न्यायमूर्ति शारदा चरण मित्र ने कहा था – “हिन्दी समस्त आर्यावर्त की भाषा है।”
लोक जनशक्ति पार्टी अघयक्ष ने सरकार से मांग करते हुऐ कहा कि सरकार संविधान में संशोधन कर उच्चतम न्यायालय और सभी न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की प्रयोग की अनुमति दे और अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करे। साथ ही सरकार हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने का काम करे।
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