शोले फ़िल्म में लोगों को गब्बर सिंह ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया लेकिन लोग शोले को सूरमा भोपाली को भी नहीं भुला पाए।
ये किरदार निभाने वाले जगदीप इससे पहले तीस साल से फ़िल्मों में काम कर रहे थे। बाल कलाकार से हीरो तक के रोल किये लेकिन जो शोहरत उन्हें सूरमा भोपाली बनकर मिली वैसी न पहले मिली न बाद में।
जगदीप के पिता मध्य प्रदेश के दतिया में बैरिस्टर थे। देश विभाजन के आस पास एक दिन अचानक उनकी मौत हो गयी। 29 मार्च 1939 को जन्मे इशतियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप तब आठ साल के थे। जगदीप को लेकर उनकी मां अपने बड़े बेट के पस मुंबई जा पहुंची। लेकिन बेटे ने उन्हें शरण नहीं दी। माँ जगदीप को लेकर फुटपाथ पर रहने लगीं। माँ एक अनाथालय में खाना पकाने की नौकरी करने लगीं और जगदीप सड़कों पर फेरी लगाकर साबुन, कंघे, खिलौने और पतंगे बेचने लगे।
इसी दौरान एक दिन वो यश चोपड़ा की फ़िल्म अफ़साना की शूटिंग देखने पहुंचे फ़िल्म के एक दृश्य में एक नाटक दिखाया जाना था जिसमें एक बच्चा बीच में खड़ा होकर एक डायलॉग बोलता है और दूसरे बच्चे ताली बजाते हैं।
जगदीप का ताली बजाने वाले बच्चे के लिये चयन किया गया इसके लिये उन्हें तीन रूपए मिलने थे।लेकिन जिस बच्चे को डायलॉग बोलना था वह डायलॉग अदा नहीं कर पा रहा था।
तब जगदीप ने वह डायलॉग बोलकर दिखाया और वह रोल जगदीप को मिल गया इसके लिये उन्हें 6 रूपए दिये गए। इस तरह जगदीप ने फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा।
जगदीप को कई फिल्मों में बाल कलाकर की भूमिका मिली। फिल्म हम पंछी एकडाल में उनके काम के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला।
उन्हें फ़िल्म शिकवा में दिलीप कुमार के बचपन का रोल निभाने का भी मौक़ा मिला। बिमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन में जगदीप ने हास्य कलाकार का किरदार किया और खूब तारीफें बटोरीं। 17 साल की उम्र में फिल्म भाभी में जगदीप को रोमांटिक किरदार निभाने का मौका मिला। इसके बाद वे कुछ फिल्मों में नायक भी बने। अपने समय की सुपर हिट फिल्म जंगली में शम्मी कपूर से पहले मुख्य भूमिका के लिये जगदीप को ही चुना गया था। लेकिन तब जगदीप का मद्रास के जेमिनी प्रोडक्शन के साथ अनुबंध था और वे कहीं और काम नहीं कर सकते थे। इस अनुबंध की वजह से उनके हाथ से कई फिल्में निकल गयीं। तंग आ कर जगदीप ने वह अनुबंध आगे नहीं बढ़ाया और आज़ाद हो गए।
इसके बाद वो जगदीप नहीं रहे, सूरमा भोपाली बन गए
इसके बाद फ़िल्मों में जगदीप को जैसा भी रोल मिलता गया वो करते गए क्योंकि उन्हें पैसों की ज़रूरत रहती थी। घर चलाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर थी। उन्होंने फ़िल्मों में अपने रोल को लेकर को सपना नहीं पाला। पांच फ़िल्मों मे हीरो रहने के बावजूद जगदीप को जब कॉमेडी के रोल मिले तो उन्हें इस पर कोई एतराज़ भी नहीं हुआ। ब्रह्मचारी वह फिल्म थी जिसके जरिये जगदीप कॉमेडियन के रूप में स्थापित हुए। महमूद, जानीवाकर, मुकरी, राजेंद्र नाथ और धूमल सहित अनेक हास्य कलाकारों की मौजूदगी के बीच जगदीप अपनी पहचान बनाने मे कामयाब रहे और फिर शोले के सूरमा भोपाली वाले रोल को लेकर क्या कहा जाए। इसके बाद वो जगदीप नहीं रहे। सूरमा भोपाली बन गए।
सूरमा भोपली का छवि इतनी मजबूत थी कि जगदीप फिर कभी उससे बाहर नहीं निकल सके। फिर हिंदी सिनेमा में हिंसा और छिछोरेपन का दौर शुरू हुआ। इसमें विलेन और कॉमेडी के सीन और ज़रूरत भी बदल गयी। पहले ऐसे निर्देशक और लेखक थे जो जानते थे कि डायलॉग और सिचुएशन के ज़रिये कैसे हास्य पैदा किया जा सकता है। जगदीप को कोई ऐसा निर्देशक या लेखक नहीं मिला जो उन्हें सूरमा भोपली की छवि से आजाद कराता। जगदीप सूरमा भोपाली के अंदाज को दोहराते दोहराते थक गए। आखिरकार जगदीप ने खुद इस छवि से बाहर आने के लिये ‘सूरमा भोपाली’ नाम की फिल्म बना डाली। फिल्म बुरी तरह फ्लाप रही देश के अधिकांश शहरों में तो इसका प्रदर्शन तक नहीं हो पाया।
सूरमा भोपाली- हमेशा हमारे बीच रहेगा
धीरे धीरे अपने समकालीन दूसरे हास्य कलाकारों की तरह जगदीप भी पर्दे पर कम नजर आने लगे। कुछ सालों की खामोशी के बाद वे धारावाहिकों में दिखे। लेकिन सच तो यह था कि सूरमा भोपाली भले ही चर्चा में हो मगर जगदीप का दौर ख़त्म हो चुका था। अब जगदीप हमारे बीच नहीं हैं लेकिन सूरमा भोपाली हमेशा हमारे बीच रहेगा।