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Sunehri Bagh Masjid Demolition: सुनहरी बाग़ मस्जिद मामले में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद न्यायपालिका पहुंची - globaltoday

Sunehri Bagh Masjid Demolition: सुनहरी बाग़ मस्जिद मामले में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद न्यायपालिका पहुंची

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मस्जिद से उत्पन्न यातायात समस्याओं पर जनता की राय लेने के बजाय, एनडीएमसी को विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए और मस्जिद के चारों ओर एक गोल चक्कर, एक भूमिगत सुरंग या एक ओवरहेड फ्लाईओवर बनाने जैसे वैकल्पिक समाधानों की व्यवहार्यता की जांच करनी चाहिए।

नई दिल्ली: नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) द्वारा जारी एक सार्वजनिक नोटिस ने पूरे देश की चिंता बढ़ा दी है। जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने प्रस्तावित विध्वंस का विरोध करते हुए मीडिया को जारी एक बयान में कहा, “हम एनडीएमसी के मुख्य वास्तुकार द्वारा दिए गए मनमाने सार्वजनिक नोटिस से बेहद चिंतित हैं, जिसमें कहा गया है कि सुनहरी बाग चौराहे के आसपास बेहतर यातायात प्रबंधन के लिए दिल्ली ट्रैफिक पुलिस से आधिकारिक अनुरोध प्राप्त करने के बाद एनडीएमसी “सुनहरी मस्जिद (ग्रेड-III हेरिटेज बिल्डिंग) को हटाने” पर विचार कर रही है।

उपरोक्त मुद्दों को देखते हुए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद(JIH) ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है जिसमें उसने इस ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।

जामा मस्जिद के तत्कालीन इमाम (वर्तमान इमाम के दादा) ने भारत के मुसलमानों की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें मस्जिद की सुरक्षा की गारंटी दी गई थी। इसके अलावा मस्जिद की सुरक्षा को लेकर कुछ अन्य समझौते भी हुए हैं। साथ ही इस मस्जिद के संबंध में 18 दिसंबर 2023 को दिल्ली हाई कोर्ट का एक फैसला आया था, जिसमें आश्वासन दिया गया था कि इस मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा। न्यायालय के आश्वासन के बावजूद इसको तोड़ने के लिए जनता की राय लेना असंवैधानिक है। फिर इस मस्जिद का मामला अभी भी कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए अंतिम फैसला आने तक ‘एनडीएमसी’ को चाहिए कि मस्जिद से सम्बंधित अपनी बातें कोर्ट में रखे, न कि जनता की राय लेनी चाहिए। इससे जनता में बेचैनी पैदा हो सकती है। इसके अलावा परिषद की यह कार्रवाई ‘ इबादतगाह अधिनियम 1991’ के भी खिलाफ है, जिसमें सभी इबादतगाहों को 1947 कि स्थिति में बरक़रार रखने कि गारंटी दी गयी है। इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए ‘एनडीएमसी’ ने जो जनता की राय मांगी है, उसे जमाअत असंवैधानिक मानती है और इसीलिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया है और अनुरोध किया है कि वह ‘एनडीएमसी’ को मस्जिद के खिलाफ ऐसी किसी भी कार्रवाई से बचने का निर्देश दे।

मलिक मोतसिम खान ने कहा, “मस्जिद से उत्पन्न यातायात समस्याओं पर जनता की राय लेने के बजाय, एनडीएमसी को विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए और मस्जिद के चारों ओर एक गोल चक्कर, एक भूमिगत सुरंग या एक ओवरहेड फ्लाईओवर बनाने जैसे वैकल्पिक समाधानों की व्यवहार्यता की जांच करनी चाहिए।

राजधानी में आए दिन किसी न किसी धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और व्यापारिक आयोजनों के कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रहती है। क्या इसका मतलब यह है कि हम इन सभी गतिविधियों को समाप्त कर दें? दुनिया का कोई भी देश वाहन यातायात में अनुत्तरदायी बढ़ोतरी के खातिर रास्ता बनाने के लिए लिए अपनी विरासत को नहीं मिटाता। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि सुनहरी मस्जिद का स्वामित्व दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास है और इसकी जमीन पर एनडीएमसी का दावा जो अदालत में लंबित है, गलत है। जमाअत भारत सरकार को याद दिलाना चाहेगी कि स्वतंत्रता सेनानी और संसद सदस्य मौलाना हसरत मोहानी (जिन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया था) संसद सत्र में भाग लेने के दौरान सुनहरी मस्जिद में रुका करते थे। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि एनडीएमसी के सार्वजनिक नोटिस के बाद जनता से प्रतिक्रिया मांगी गई है, अधिकांश लोगों ने मस्जिद के विध्वंस का विरोध किया है। इतिहास को चुनिंदा तरीके से मिटाना प्रतिशोधपूर्ण और निराशाजनक दोनों है और अगर हमारी सरकार न्याय और निष्पक्षता में विश्वास करती है तो उसे इससे बचना चाहिए।”

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