बलिया बेलौन, कटिहार: बलिया बेलौन के लोगों का प्रखंड बनाने का सपना वर्षों से अधूरा है। हर चुनाव में आश्वासन की घुट्टी पिलाई जाती है, लेकिन चुनाव के बाद मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। 12 पंचायतों और लगभग दो लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र के लोग सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।
“बलिया बेलौन के संघर्ष और सपनों की गूंज अब केवल क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में सुनाई दे रही है। यह देखना बाकी है कि सरकार और जनप्रतिनिधि कब इस आवाज़ को सुनते हैं।”
महानंदा के दो छोर, एक अधूरी कहानी
महानंदा नदी के पूर्वी किनारे स्थित बलिया बेलौन और पश्चिमी किनारे स्थित कदवा प्रखंड में ब़ड़ा अंतर है। कदवा में 18 पंचायतों के साथ प्रखंड मुख्यालय स्थित है, जबकि बलिया बेलौन के लोग बाढ़ और बारिश के दिनों में मुख्यालय तक पहुंचने में असमर्थ हो जाते हैं। यह संघर्ष केवल नदी पार करने तक सीमित नहीं है; यह संघर्ष हक और पहचान का है।
घोषणा हुई लेकिन हकीकत अभी भी दूर
वर्ष 2004 में राज्य सरकार ने बलिया बेलौन को प्रखंड बनाने की घोषणा की। यह सुनकर यहां के लोगों में उम्मीद जगी। पर 2005 में सत्ता परिवर्तन के साथ यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया। पिछले 20 वर्षों में न जाने कितने धरने, प्रदर्शन, भूख हड़ताल और सड़क जाम हुए, लेकिन उनकी आवाज़ सरकार तक नहीं पहुंची।
पूरी करता है सभी शर्तें
बलिया बेलौन में प्रखंड बनने के लिए सभी जरूरी शर्तें पूरी हैं। यहां अल्हाज नईमुद्दीन शाहिदी डिग्री कॉलेज, डीएलएड और बीएड कॉलेज, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, थाना, स्वास्थ्य केंद्र और बिजली का सब-पावर स्टेशन मौजूद है। फिर भी यहां के लोगों का सपना हकीकत नहीं बन पाया।
नेताओं पर सवाल
मुखिया संघ अध्यक्ष मेराज आलम कहते हैं, “पंचायत समिति की बैठकों में कई बार प्रस्ताव पास कर सचिवालय भेजा गया है। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। सांसद, विधायक और एमएलसी को आगामी चुनाव में इसका जवाब देना होगा।”
ग्रामीण इकबाल हुसैन का कहना है, “हसनगंज, समेली और डंडखोरा जैसे क्षेत्रों में पांच-छह पंचायतों के लिए प्रखंड बनाया गया है। बलिया बेलौन में 12 पंचायतों के बावजूद यह हक नहीं मिला। यह हमारी आबादी और क्षेत्र के साथ अन्याय है।”
रागिब शजर ने कहा, “जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण यह मुद्दा अधर में लटका हुआ है। हर चुनाव में केवल वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव बाद कोई कार्रवाई नहीं होती।”
जिला परिषद सदस्य मुनतसीर अहमद ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “हर चुनाव से पहले प्रत्याशी प्रखंड बनाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही वह वादा कहीं गुम हो जाता है। यह सिलसिला पिछले 20 वर्षों से चल रहा है।”
आक्रोशित जनता की आवाज
बलिया बेलौन के लोगों ने साफ कर दिया है कि इस बार विधानसभा चुनाव में प्रखंड का मुद्दा प्रमुख होगा। असरार अहमद कहते हैं, “केवल घोषणा नहीं, हमें कार्रवाई चाहिए। जनता अब और इंतजार नहीं करेगी। प्रत्याशियों को इसका जवाब देना होगा।”
भावनाओं की बाढ़
महानंदा नदी के दोनों छोर पर बसा यह क्षेत्र केवल नदी से ही नहीं, बल्कि अपने अधिकारों से भी वंचित है। बलिया बेलौन के बच्चे, युवा और बुजुर्ग सबकी आंखों में एक ही सपना है – प्रखंड बनने का।
जब भी बाढ़ आती है, इस क्षेत्र का प्रखंड मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है। तब लोगों को एहसास होता है कि उनकी समस्याओं का समाधान प्रखंड का दर्जा मिलने से ही संभव है। हर बार जब कोई बच्चा शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य सुविधाओं से वंचित रह जाता है, तो बलिया बेलौन का दर्द और बढ़ जाता है।
न्याय की मांग
बलिया बेलौन का यह सपना केवल एक प्रखंड बनने का नहीं, बल्कि न्याय और विकास का सपना है। यह सपना तब तक अधूरा रहेगा, जब तक इसे प्रशासन और सरकार की स्वीकृति नहीं मिलती।
जनता की आवाज बुलंद हो रही है और यह आवाज अब और अनसुनी नहीं की जा सकती। आगामी चुनाव में प्रत्याशियों को यह समझना होगा कि बलिया बेलौन का मुद्दा केवल एक वादा नहीं, बल्कि क्षेत्र की जरूरत है।