कृषि क़ानून से परेशान किसान छोड़ रहे पारंपरिक फ़सलें

Date:

किसान अपने खेतों में पसीना बहाकर गेहूं,धान, दलहन और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलों को लहलहाने में कामयाब तो हो जाता है लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरती क्योंकि फसलों का भाव किसान नहीं बल्कि बनिये की दुकान पर खोला जाता है।

शायद यही वजह है कि एमएसपी को लेकर किसान इस कड़कड़ाती ठंड में सड़कों पर जमे हुए हैं। वह सरकार से गुहार जरूर लगा रहे हैं लेकिन संभवत उनको सरकार से कम ही उम्मीदें वाबस्ता हैं।

इसीलिए अब किसान गेहूं धान और गन्ना जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर अपने खेतों में आलूबुखारा और सेब जैसी फसलें उगाने में जुटे हुए हैं। इस उम्मीद के साथ के शायद इनके द्वारा उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके।

किसान हनीफ वारसी से हमने  बात की तो उन्होंने बताया,” किसान बहुत परेशान है किसान को समय से गन्ने का भुगतान नहीं मिलता है। आज हम अगर गन्ना फैक्ट्री को देंगे तो उसका पेमेंट सालों के बाद मिलेगा। जरूरत हमें आज है दूसरा गेंहू का रेट होगा 1800 सो रुपये और किसान को मिलता है 11 सो रुपए। धान का रेट होगा 1800 सो रुपये और किसान को मिलता है ₹1000 रुपये। जो फसल के दाम हैं उसका रेट किसान को नहीं मिल पाता है। इसलिए किसान ने सोचा है कि हम सेब की बगिया लगा लें ,आलूबुखारे की बगिया लगा लें। आपने शिमला और कश्मीर के सेब खाए होंगे। किसानों ने सोचा कि यहाँ पर सेब की खेती की जाए जिससे किसानों को लाभ हो जाए। किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए  नई नई खेती कर आजमा रहा है अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए लेकिन किसान वही का वही है और कर्जदार है मौजूदा स्थिति में सरकार जो तीन अध्यादेश लाई है उसमें किसान और परेशान हो गया है। जिस कंपनी से कांटेक्ट होगा वह कंपनी अपनी मर्जी से जो चाहेगी वह कृषि करवाएगी। चारों तरफ बगिया लगी है इधर अमरूद की बगिया है उधर आम की बगिया है आंवले का बाग है केले का बाग है।

वही एक दूसरे किसान संतोष से हमने बात की तो उन्होंने बताया,” जो सरकार ने नियम निकाला है एमएसपी का है कांटेक्ट फार्मिंग का नियम निकाला है किसानों को तो समझ में आ नहीं रहा है और ना ही यह समझा पा रहे हैं। जो दिल्ली बॉर्डर पर भारी भीड़ है हमें वहां जाने भी नहीं दिया जा रहा है। यहाँ एक एक लोगों को टारगेट बनाया जा रहा है ।अगर जाने देंगे तो दिल्ली के बीसो किलोमीटर तक किसान किसान नजर आएगा। क्योंकि किसान इतना परेशान है । कॉन्टेक्ट फार्मिंग में कम्पनी अपने मुनाफे के हिसाब से चलेंगे ना के किसान के हिसाब से। सरकार को ये कानून वापस लेना चाहिए। और किसानों के साथ बैठकर बातचीत करके मसले का हल निकाले जाना चाहिए।इस समय किसान  आलूबुखारा और लहसुन की खेती हम लोग कर रहे है इसमें हमारी दिलचस्पी तो नहीं थी लेकिन मजबूरी को करना पड़ रहा है। शायद हम इसमे कुछ मुनाफा हो जाए।

वही एक तीसरे किसान मधुकर ने बताया आलूबुखारा का पेड़ है ये सब का पेड़ है और यहां पर हम धान गन्ना लाई मसूर की खेती करते थे उसमें में बहुत कम मुनाफा हो रहा है सही मूल्य नहीं मिला रहा है। इसलिए हम यह तरह-तरह की खेती कर रहे हैं केला का पेड़ लगा है आम का पेड़ लगा है हम इसमें एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं ताकि हमें आमदनी हो।

Share post:

Visual Stories

Popular

More like this
Related

Winter Vaccation Anounced In J&K Degree Colleges

Srinagar, December 20: The Jammu and Kashmir Government on...

National Urdu Council’s Initiative Connects Writers and Readers at Pune Book Festival

Urdu Authors Share Creative Journeys at Fergusson College Event Pune/Delhi:...

एएमयू में सर सैयद अहमद खान: द मसीहा की विशेष स्क्रीनिंग आयोजित

सिरीज़ के लेखक मुतईम कमाली की सभी दर्शकों ने...
Open chat
आप भी हमें अपने आर्टिकल या ख़बरें भेज सकते हैं। अगर आप globaltoday.in पर विज्ञापन देना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क करें.