1947 में जब हमारे देश का बंटवारा हुआ, उस समय हमारे पास दो विकल्प थे, पाकिस्तान जैसा धार्मिक देश बनना या फिर एक लोकतांत्रिक देश का रूप लेकर दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवाना और यह बताना कि भारत ने लोकतंत्र का रास्ता क्यों चुना?
निसंदेह लोकतंत्र शुरू से ही हमारे ख़ून में था और इस पर मुहर वर्षों पहले 1893 में स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में अपने भाषण में यह कह कर लगा दी थी कि, भारत ने सभी धर्मों के सताए हुए लोगों को रहने की आज़ादी है और यही इसकी विशेषता है।
इससे स्पष्ट है कि लोकतंत्र और मानवता दोनों हमारे खून का हिस्सा हैं, दुख की बात यह है कि कुछ अज्ञानी मित्र जिन्होंने 52 साल तक तिरंगा नहीं अपनाया, वे हम से हमारी पहचान छीनना चाहते हैं और स्वामी विवेकानंद जी के आदर्शों का खून करना चाहते हैं। वे रोटी के बजाय हम पर धर्म थोपना चाहते हैं। कितना अच्छा होगा यदि वे स्वामीजी के इन सिद्धांतों को फिर से पढ़ लें।
एफएओ के अनुसार, ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2020’ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत की 14 फ़ीसदी आबादी कुपोषित है। यह संख्या बढ़ ही रही है, हाल ही में आयी एक और रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि 194 मिलियन भारतीय कुपोषित हैं। 117 देशों में से भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 104 वें स्थान पर है। अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे देश में स्थिति कितनी ख़तरनाक है और 2014 के बाद ग़रीबी रेखा की सूची में बढ़ोतरी कैसे हुयी है, लेकिन मीडिया को हिन्दू मुस्लिम के सिवा कुछ और से फुर्सत नहीं और उससे किसी भी अच्छे की उम्मीद नहीं है।
लेकिन जब अंधेरा ज़्यादा हो जाता है तो उसके बाद रोशनी ज़रूर दिखाई देती है, शायद इसीलिए प्रकृति ने सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म बनाया है।
अब ज़रूरत इस बात की है कि ज़्यादा सकारात्मक तरीक़े से इससे फ़ायदा उठाने की और लोगों को सरकार की जनविरोधी नीतियों से अवगत कराने की, हमें अच्छी तरह से याद रखना होगा कि अगर हम अभी नहीं जागे तो यक़ीन मानिए, हमें दो जून की रोटी से वंचित कर दिया जाएगा और उस के बात सरकारी अनुदान से जो खाना हम को मिलेगा, हम में से अधिकांश अपने असली पालनहार को भूलकर यह कहने के लिए मजबूर होंगे ‘वाह मोदी जी वाह ! हमें दो जून की रोटी मिली, आप न होते तो यह भी नहीं मिलता’।
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मीडिया किस हद तक असंवेदनशील हो गया है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश मीडिया के व्यवहार से इतने नाराज़ थे कि उन्होंने कंगारू कोर्ट तक चलाने की बात कह डाली, कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कंगारू कोर्ट चला रहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “मैं मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया से ज़िम्मेदारी से व्यवहार करने का आग्रह करता हूं। आप हमारे जैसे ही एक महत्वपूर्ण हितधारक हैं। कृपया अपनी आवाज़ की शक्ति का उपयोग लोगों को सूचित करने के लिए करें। इसे राष्ट्र को सक्रिय करने के लिए करें। एक प्रगतिशील, समृद्ध और शांतिपूर्ण भारत को शिक्षित करने और बनाने के हमारे सामूहिक प्रयासों में, आप भी भागिदार बनें।
माननीय मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “लंबे समय से, हम मीडिया को कंगारू कोर्ट चलाते हुए देख रहे हैं। कभी-कभी अनुभवी न्यायाधीशों को भी ऐसे मामलों का फ़ैसला करना मुश्किल हो जाता है। न्याय प्रदान करने से संबंधित मुद्दों पर गुमराह और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं। मीडिया द्वारा प्रचारित पक्षपातपूर्ण विचार जनता को प्रभावित कर रहे हैं, लोकतंत्र को कमज़ोर कर रहे हैं और व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस प्रक्रिया में न्याय प्रदान करने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अपनी ज़िम्मेदारी से आगे बढ़कर आप हमारे लोकतंत्र को दो क़दम पीछे ले जा रहे हैं।”
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज हमारा मीडिया ICU में है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक 180 देशों में नीचे से हमारा 150 वां स्थान है। फिर हम कैसे दावा कर सकते हैं कि हम दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र हैं? मानव सूचकांक में हमारा 131 वां स्थान है, हम इन आंकड़ों का खंडन कैसे कर सकते हैं? हमारे पासपोर्ट की स्थिति भी ठीक नहीं है। हम 193 देशों की सूची में 87वें स्थान पर हैं। यदि वास्तव में देशभक्ति हमारी सरकार का घोषणापत्र है तो यह दिखाई देनी चाहिए।
सरकार की ज़िम्मेदारी नागरिकों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की हो, न कि कुछ लोगों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की। यदि हम अंतिम व्यक्ति का भला करने में सफ़ल हो जाते हैं, तो इस में कोई संदेह नहीं है कि हम दुनिया का नेतृत्व करने में सफ़ल होंगे। जिस ने कहा है, सच कहा है,
वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे।
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा॥
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)
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