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अहमद फ़राज़-अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें - globaltoday

अहमद फ़राज़-अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

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अहमद फ़राज़

हिंदो-पाक के मश्हूरो मारूफ तरक़्क़ी पसंद शायर अहमद फ़राज़ को दुन्याए फानी से गुज़रे 10 बरस बीत गए लेकिन उनकी शाइरी अब भी उनके चाहने वालों के दिलो -दिमाग़ पर छाई हुई है. नामवर शायर फ़राज़ 12 जनवरी 1931 को कोहट में पैदा हुए, उन्होंने इब्तिदाई तालीम की तकमील के बाद शेरो-शायरी का आग़ाज़ कर दिया , वह मुख्तलिफ तालीमी इदारों में माहिर तालीम के तौर पर भी अपने फ़राएज़ सर-अंजाम देते रहे.

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Ahmed Faraz

अहमद फ़राज़ ने हज़ारों नज़्में कहीं और उनके 14 मजमूआ कलाम शाया हुए , जिनमें तनहा तनहा , दर्द आशुब, शब् खून , मेरे ख्वाब, रेजाः-रेज़ा, बे- आवाज़ गली-कूचों में, नबीना शहर में आइना , पस अंदाज़ मौसम , सब आवाज़ें मेरी हैं, खवाब गुले परेशान है ,ग़ज़ल बहाना करूँ, जाने जानां और ऐ इश्क़ जुनूं पेशा शामिल हैं . अहमद फ़राज़ की तसनीफ़ के तराजिम अंग्रेजी , फ्रेंच , हिंदी , योगोस्लाविया की सर्बो -क्रोएशियन , स्वीडिश , रूसियन , जर्मन और पंजाबी में ज़ुबानों में भी हुए हैं. अहमद फ़राज़ उर्दू , पर्शियन , पंजाबी समेत दीगर ज़बानों पर भी मुकम्मल उबूर रखते थे, उम्र के आखरी अय्याम में वह गुर्दों के मर्ज़ में मुब्तला हो गये अहमद फ़राज़ ने हज़ारों नज़्में और दर्जनों मजमुओं कलाम भी तहरीर किये , अहमद फ़राज़ 25 अगस्त 2008 को वफ़ात पा गए थे. अहमद फ़राज़ ने अपनी अदबी ज़िन्दगी का आग़ाज़ तालिब इल्मी के दौर से ही शुरू कर दिया था और कई अस्नाफे- सुखन में तबा आज़माई कर चुके हैं मगर बुनयादी तौर पर फ़राज़ ग़ज़ल के ही शायर हैं . अहमद फ़राज़ को उनके अदबी फन की वजह से बहुत से अवार्ड्स भी मिले . उन्हें हिलाले- इम्तियाज़, सिताराये इम्तिआज़, निगार अवार्ड्स और हिलाले पाकिस्तान जैसे बावक़ार अवार्ड्स से नवाज़ा गया था.
उनकी कई ग़ज़लों को बहुत से गुलूकारों ने गाया है.उनकी शायरी और ग़ज़लें आज भी फिल्मों , ड्रामों और गीतों में शामिल होती हैं . अहमद फ़राज़ की मशहूर ग़ज़लों में ”अब के हम बिछड़े ”, ”सुना है लोग उसे ”, ” फिर इसी राह गुज़र पर ”, रंजिश ही सही, शामिल हैं. अहमद फ़राज़ की ग़ज़लें गाने वालों में पाकिस्तानी गुलूकार महंदी हसन, नूर जहाँ,ग़ुलाम अली और सलमा आग़ा हैं. हिन्दुस्तान में भी उनकी ग़ज़लों को जगजीत सिंह,हरी हरन वग़ैरह भी शामिल हैं .
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें…
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा…
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम…
अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए…
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए…
और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया…
बंदगी हम ने छोड़ दी है ‘फ़राज़’
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ…
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता…
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें…
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ…
उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना
ऐ मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे…
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ…

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