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बंगाल
का भद्रलोक अब सचमुच खतरे में है। इस खतरे की शुरुआत पिछली सदी के सातवें दशक में कम्युनिस्ट शासन से हुई थी।
अपने दो दशक के शासनकाल में कम्युनिस्टों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को बार-बार तोडा। यह छुपी हुई बात नहीं कि उस दौर में सरकारी विभागों और पुलिस थानों के कामकाज नियम और क़ानून से नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं की मर्जी से चलते थे। इस अराजकता की प्रतिक्रिया होनी ही थी।
तब बदलाव की सूत्रधार ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल बनी। अपना आधार मजबूत करने के लिए ममता ने मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण का रास्ता अपनाया।

पर्व-त्योहारों के मौकों पर हिन्दू आस्थाओं पर निरंतर चोट की गई और मुस्लिमों को खुश करने के लिए इमामों को वेतन सहित कुछ अजीबोगरीब फैसले लिए गए जिनके लिए उन्हें बार-बार कोर्ट से फटकार भी मिली। यह दूसरे किस्म की अराजकता की शुरुआत थी।
वर्तमान लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कुछ बड़े राज्यों में अपने खिसकते जनाधार की भरपाई के लिए भाजपा ने बंगाल को चुना है। ममता के राज में कुछ हद चोट खाए हिंदुओं को खुश और गोलबंद करने के लिए भाजपा ने आक्रामक हिंदुत्व का रास्ता अपनाया। दूसरे राज्यों के कट्टर हिन्दुओं को चुन-चुनकर बंगाल में उतार दिया।
चुनाव में खुलेआम हिन्दू धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल कर उसने बंगाल को सांप्रदायिक आधार पर बांट दिया है। सड़कें हिंसा से पट गई हैं।
शांत और सभ्य बंगाल अब देश का सबसे अशांत और असभ्य राज्य है। चुनाव आयोग की निष्क्रियता और पक्षधरता ने स्थिति को और बिगाड़ा है। हालत यह है कि भाजपाई तृणमूल के लोगों को चुनाव के बाद पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं और तृणमूल के लोगों की चुनौती है कि पहले भाजपाई बंगाल में घुसकर तो दिखाएं।
अब यह बहस तो चलती रहेगी कि बंगाल के भद्रलोक को अभद्र बनाने में भाजपा की बड़ी भूमिका है या तृणमूल की, लेकिन इतना तो तय है कि चुनाव में कोई भी जीते-हारे, बंगाल अब पहले जैसा नहीं रहेगा।
नोट- श्री ध्रुव गुप्त की फेसबुक वाल से लिया गया लेख
नोट- श्री ध्रुव गुप्त की फेसबुक वाल से लिया गया लेख