नई दिल्ली/ग्लोबलटुडे : सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतवार(6 सितंबर) को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एकमत से इस फैसले को सुनाया है.
तक़रीबन 55 मिनट में सुनाए इस फ़ैसले में बेंच ने धारा 377 को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा कि LGBT समुदाय को भी जीने का समान अधिकार है. कोर्ट ने कहा धारा 377 के ज़रिये LGBT की यौन प्राथमिकताओं को निशाना बनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यौन प्राथमिकता बाइलोजिकल और प्राकृतिक है. यह किसी की भी निजी च्वाइस है. इसमें राज्य को दख़ल नहीं देना चाहिए. किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है. धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार आर्टिकल 14 का हनन करती है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फ़िल्मी दुनिया और देश के अन्य लोगों ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं.
करण जौहर ने ट्वीट किया है और कहा है कि “ऐतिहासिक फ़ैसला!!! आज फक्र हो रहा है! समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करना और धारा 377 को ख़त्म करना इंसानियत और बराबरी के हक़ की बड़ी जीत है. देश को उसका ऑक्सीजन वापस मिला है!
संविधान पीठ ने नृत्यांगना नवतेज जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया, होटल कारोबारी अमन नाथ और केशव सूरी, व्यावसायी आयशा कपूर और आईआईटी के 20 पूर्व तथा मौजूदा छात्रों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन सभी ने दो वयस्कों द्वारा परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध करते हुये धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
पशुओं और बच्चों से संबंधित क़ानून में कोई बदलाव नहीं
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्यवस्था में कहा कि धारा 377 में मौजूद पशुओं और बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले क़ानून नहीं बदलेंगे. न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं।