आज हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देव आनंद (Dev Anand) का सौवां जन्मदिन है। 26 सितंबर 1923 को जन्मे देव आनंद को दिलीप कुमार और राजकपूर के साथ जोडकर हिंदी सिनेमा की एक ऐसी तिकड़ी के रूप में याद किया जाता है जिसने अभिनय और फिल्म निर्माण के एक सुनहरे दौर का सृजन किया और स्वस्थ मनोरंजन के पैमाने गढ़े।
2023 देव आनंद का जन्म शताब्दी वर्ष है। देव आनंद की गिनती अपने समय के बहुत पढ़े-लिखे और अपने समय से आगे की सोच रखने वाले प्रयोगधर्मी कलाकारों में की जाती है। लगातार काम करने, फिल्में बनाते रहने के जोश और जुनून की वजह से देव आनंद को चिर युवा भी कहा जा सकता है।
करिश्माई देव
एक अभिनेता के तौर पर देव आनंद का जबरदस्त करिश्मा रहा है। उनकी अदाओं का जादू महिलाओं के सिर चढ़कर बोलता था। उन्होंने दिलीप कुमार और राजकपूर से अलग आजाद भारत में एक शहरी नौजवान की छवि परदे पर गढ़ी जिनके जरिये उस समय के समाज, उभर रहे शहरी मध्य वर्ग, अपराध जगत , उस समय के युवाओं के सपनों , उनकी आशाओं-निराशाओं और प्रेम, नाकामी-कामयाबी की भावनाओं वगैरह की विविध झलकियां देती है । देव आनंद ने बाजी, जाल, सीआईडी, टैक्सी ड्राइवर, काला बाज़ार, काला पानी, तीन देवियां, तेरे घर के सामने, बंबई का बाबू, हरे रामा हरे कृष्णा, प्रेम पुजारी, ज्वेल थीफ, जॉनी मेरा नाम, देस परदेस समेत कई कामयाब और यादगार फिल्में दी हैं जो हिंदी सिनेमा के इतिहास का उल्लेखनीय हिस्सा हैं।
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देव आनंद की फिल्म गाइड को हिंदी सिनेमा में क्लासिक का दर्जा हासिल है। हालांकि यह भी सच है कि 70 के दशक के बाद की फिल्मों में देव आनंद अपने अभिनय और स्टाइल में दोहराव के चलते अपनी चमक खोते चले गये थे। अभिनेता के तौर पर गाइड उनका चरमोत्कर्ष है। दिलीप कुमार जैसी गहराई और विविधता उनके अभिनय में कभी थी ही नहीं। लगभग तीन दशक तक उनका स्टारडम कायम रहा।
एक सजग नागरिक
देव आनंद सिर्फ एक सफल अभिनेता या फिल्म निर्माता ही नहीं थे बल्कि देश के एक सजग नागरिक भी थे और समय समय पर सिनेमा के बाहर भी हस्तक्षेप करते थे। नेहरू युग के नायकों में से एक देव आनंद ने इंदिरा गांधी के लगाये आपातकाल के दौरान सरकार के आगे झुकने से इनकार कर दिया था और नाराज होकर बाद में एक राजनीतिक पार्टी भी बना ली थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा में देव आनंद भी उनके साथ गये थे।
ईमानदार देव आनंद
उनकी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ उनके जीवन के बारे में खुद उनकी कलम से अभिव्यक्त हुआ एक बहुत ईमानदार और बेबाक दस्तावेज है जो देव आनंद के एक शानदार लेखक होने की निशानदेही करता है।
सुरैया से प्रेम, जीनत अमान को लेकर चाहत और जवानी के दिनों के अंतरंग किस्सों के ब्योरों में उनकी ईमानदारी झलकती है। सार्वजनिक छवियों वाले तमाम लोग आमतौर पर ऐसी बातें छुपा जाते हैं।
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में मधुबाला से प्रेम के बारे में बहुत कम और सकुचाते हुए लिखा है। देव आनंद इस मामले में अलग दिखते हैं।
नोट:- यह लेख वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की फेसबुक पोस्ट से उनकी सहमति से लिया गया है।
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