कटिहार(बिहार) : कदवा प्रखंड के बलिया बेलौन क्षेत्र में महानंदा नदी के लगातार कटाव से विस्थापित हो रहे सैकड़ों परिवार सड़क तटबंध के किनारे झोपड़ियां बनाकर किसी तरह जीवन-यापन कर रहे हैं। प्रत्येक वर्ष नदी के कटाव से विस्थापित परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन राज्य सरकार और प्रशासन की ओर से इनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
“महानंदा नदी के कटाव से विस्थापित परिवारों की दुर्दशा यह दर्शाती है कि टिकाऊ पुनर्वास नीति की तत्काल आवश्यकता है। बार-बार वादों के बावजूद सरकार द्वारा ठोस कार्रवाई की कमी इन कमजोर नागरिकों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल उठाती है। बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना, जमीन का आवंटन करना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करना केवल समाधान नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है। प्रशासन को अब निर्णायक कदम उठाकर इन विस्थापित परिवारों को सम्मानपूर्ण जीवन प्रदान करना चाहिए और इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए, इससे पहले कि उनकी समस्याएं और गहरी हो जाएं।”
झोपड़ियों में जीवन बिताने को मजबूर विस्थापित परिवार
मीनापुर से शेखपुरा होते हुए शिकारपुर तक हजारों विस्थापित परिवार तटबंध के किनारे झोपड़ियां बनाकर गुजर-बसर कर रहे हैं। घर उजड़ने के बाद जमीन और स्थायी आवास की कमी के कारण ये परिवार बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवन बिता रहे हैं। इनके पास न तो शौचालय की सुविधा है और न ही स्वच्छ जल की। सरकार द्वारा तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने की घोषणा की गई थी, लेकिन दस वर्षों में कुछ ही परिवारों को जमीन दी गई है।
प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ न मिलने के कारण ये परिवार आधुनिक बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। शौचालय की कमी के चलते इन्हें खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है, जिससे स्वच्छता और सुरक्षा दोनों पर संकट बना रहता है।
गांवों का अस्तित्व समाप्त
महानंदा नदी के कटाव से बेनीबाड़ी, रैयांपुर, माहीनगर, मंझोक, कुजीबाना, मुकुरिया, भाग सहजना, नाजीरपुर, अहमदपुर, खाड़ीटोला, जीतवारपुर और गमहारगाछी जैसे गांवों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है। इन गांवों के अधिकांश परिवार बेघर होकर तटबंध पर झोपड़ियां डालने को मजबूर हैं। बाढ़ और बारिश के दिनों में इन परिवारों को सांप-बिच्छू और अन्य खतरों का भी सामना करना पड़ता है।
मुखिया और जनप्रतिनिधियों का बयान
कदवा मुखिया संघ के अध्यक्ष मेराज आलम ने कहा कि विस्थापित परिवारों की समस्याएं बेहद गंभीर हैं। इनके बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बिहार सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल पाता। विस्थापितों के पुनर्वास की योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रह गई हैं।
शेखपुरा मुखिया प्रतिनिधि इकबाल हुसैन ने बताया कि नदी कटाव के कारण हजारों एकड़ खेती योग्य जमीन नदी में समा गई है। इससे क्षेत्र के संपन्न किसान भी गरीब हो गए हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि विस्थापित परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई जाए ताकि उन्हें स्थायी आवास और बुनियादी सुविधाएं मिल सकें।
कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष हाजी मरगुबुल हक ने कहा कि तटबंध पर बसे परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना और स्वच्छता अभियान का लाभ नहीं मिल रहा है। उन्होंने विस्थापित परिवारों को तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने की मांग की ताकि इन परिवारों को आवास का लाभ मिल सके।
मधाइपुर के मुखिया असरार अहमद ने कहा कि मीनापुर से लेकर शिकारपुर और कस्बा टोली तक तटबंध विस्थापित परिवारों से भर गया है। प्रशासनिक स्तर पर बार-बार मांग उठाने के बावजूद कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है।
आंदोलन की चेतावनी
विस्थापित परिवारों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार से पुनर्वास की मांग करते हुए चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे। विस्थापितों ने कहा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
सरकार और प्रशासन पर सवाल
महानंदा नदी के कटाव से प्रभावित पंचायतों में तैयबपुर, शिकारपुर, भौनगर, शेखपुरा और बेनी जलालपुर प्रमुख हैं। इन पंचायतों में अधिकतर आबादी भूमिहीन है। सवाल यह है कि सरकार की घोषणाएं जमीन पर क्यों नहीं उतर रहीं? क्या विस्थापित परिवारों का हक देना सरकार की प्राथमिकता नहीं है?
आखिर में, एक उम्मीद
यह समय है कि सरकार और प्रशासन इन विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाएं। इन्हें तीन डिसमिल जमीन देकर प्रधानमंत्री आवास योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इनकी समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं।