रामपुर(रिज़वान ख़ान): लोकसभा के प्रथम चरण का चुनाव अब अपने अंतिम दौर में है। जहां एक ओर अपनी अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने के लिए उनके समर्थक जी तोड़ मेहनत में जुटे हैं, तो वहीं रामपुर लोकसभा 7 सीट पर सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी की चुनावी राह आसान नज़र नहीं आ रही है।
आजम खान के करीबी एवं पूर्व पार्टी जिला अध्यक्ष वीरेंद्र गोयल अब खुलकर बसपा प्रत्याशी का समर्थन करने की बात कर रहे हैं तो वहीं विरोध की फहरिस्त में आजम खान के ही करीबियों में गिने जाने वाले एक और नाम पूर्व आईआरएस अधिकारी ज़ेड. एम खान के रुप मे जुड़ चुका है। उन्होंने भी वीरेंद्र गोयल की तरह ही खुल्लमखुल्ला बसपा प्रत्याशी ज़ीशान खान के ही समर्थन का ऐलान कर डाला है।
आईए बताते हैं क्या है पूरा मामला…..
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भले ही समाजवादी पार्टी इस समय नंबर 2 की हैसियत रखती हो लेकिन रामपुर जनपद में सपा सिर्फ आजम खान का ही दूसरा नाम है। लोकसभा के प्रथम चरण का चुनाव अंतिम दौर में है। रामपुर में मुख्य रूप से चार चेहरे भाजपा से सांसद घनश्याम सिंह लोधी, सपा से मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी, बसपा से जीशान खान और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महमूद प्राचा के रूप में चुनाव मैदान में है और इन्हीं नाम की जनता के साथ ही सियासी गलियारों में भी खूब चर्चा हो रही है। सबसे ज्यादा चर्चा जहां सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी की हो रही है तो वहीं उन्हीं की तरह बसपा प्रत्याशी जीशान खान का नाम भी गांव देहात और गली मोहल्ले की सियासी फिजाओं में में तैर रहा है।
देश की राजनीति के चर्चित चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले नेता आज़म खान(Azam Khan) उन राजनीतिज्ञों में से हैं जिन्होंने मुलायम सिंह यादव, जनेश्वर मिश्र और बेनीराम वर्मा के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी का गठन किया था। यह तीनों नेता स्वर्गवासी हो चुके हैं जबकि सिर्फ आजम खान पार्टी के फाउंडर मेंबर की हैसियत रखने वाले के रूप में जीवित हैं। आजम खान की नाराजगी पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव वर्ष 2009 के लोकसभा के आम चुनाव में देख चुके हैं।
उस दौर में आजम खान की मुखालफत के चलते डिंपल यादव तक को कन्नौज से पराजय का मुंह देखना पड़ा था।
अब एक बार फिर से हालात उसी तरह के बनते नजर आ रहे हैं क्योंकि मौजूदा पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप से उनकी नाराजगी मोल लेते हुए मोहिबुल्लाह नदवी को रामपुर से पार्टी प्रत्याशी बना दिया है।
सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी लगातार क्षेत्र में घूम कर अपने हक में मतदाताओं को लाने को लेकर जी तोड़ मेहनत में जुटे हैं। वहीं वह सीतापुर की जेल में बंद आजम खान को भी अपनी पार्टी का नेता बताते हुए कहीं ना कहीं उनकी सिंपैथी हासिल करने का प्रयास भी करते नजर आ रहे हैं। जबकि आजम खान के कुछ करीबी मोहिबुल्लाह नदवी को नापसंद कर रहे हैं। उनका कहना है कि सपा प्रत्याशी ने नामांकन करने के बाद अपने पार्टी कार्यालय आने के बजाए आजम खान के विरोधियों के पास जाना उचित समझा जो सरासर गलत है। ऐसे हालत में सबसे पहले आजम खान के करीबी एवं पूर्व सपा जिला अध्यक्ष वीरेंद्र गोयल ने पार्टी प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी की मुखालफत का बिगुल बजाते हुए बसपा प्रत्याशी जीशान खान का चुनाव लड़ने का खुल्लम-खुल्ला ऐलान कर डाला है। अब इस फहरिस्त में आजम खान के ही एक और करीबी एवं रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी जेड.एम खान का नाम भी जुड़ चुका है। उन्होंने भी वीरेंद्र गोयल की राह पकड़ते हुए बसपा प्रत्याशी के समर्थन की घोषणा कर दी है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान सीतापुर की जेल में बंद है। लिहाजा उनसे हर किसी का मिलना संभव नहीं है। ऐसे में उनके दो करीबियों का खुलेआम बसपा प्रत्याशी का समर्थन करना सपा प्रत्याशी मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी की राह में कांटे बिछाने का काम करता नजर आ रहा है।
मजबूत लीडर की छवि रखने वाले आजम खान के अल्फाजों की जनता के बीच काफी अहमियत मानी जाती है। यही कारण है कि वह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में ग्लैमर का तिलिस्म तोड़ते हुए अभिनेत्री जयप्रदा को 1 लाख से अधिक वोटो से शिकस्त देने में कामयाब हो चुके हैं। अब उनके करीबियों के द्वारा सपा प्रत्याशी का विरोध और बसपा प्रत्याशी का समर्थन करना मतदाताओ पर खासा असर डाल सकता है।
गठबंधन के रूप में सपा उत्तर प्रदेश के अंदर बड़े भाई की भूमिका में है और जगह-जगह भाजपा से चुनावी मैदान में लोहा लेती नजर आ रही है। लेकिन रामपुर की तस्वीर ठीक उससे अलग है। यहां पर सपा प्रत्याशी को अंदरुनी खाने खासा विरोध देखने को मिल रहा है। जिस पर यही कहा जा रहा है कि पार्टी प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी को एक तो भाजपा से मुकाबला करना है, दूसरा बसपा से मुकाबला करना है और तीसरा कहीं ना कहीं विरोध करने वाले अपनी भी पार्टी के नेताओं से भी मुकाबला ही करना है।
बसपा के जीशान खान के लिए सपा प्रत्याशी का विरोध करना और उनके हक में एक के बाद एक आजम खान समर्थकों का समर्थन मिलना बिन मांगे मुराद पूरी होने जैसा दिखाई दे रहा है। अब सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो 19 अप्रैल को होने वाले मतदान के बाद 4 जून को घोषित परिणाम ही बेहतर बताएगा।
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