भारतीय समाज में महिलाओं का सर ढांकना किसी न किसी रूप में प्रचलित रहा है. ओढ़नी महिलाओं के परिधान का महत्वपूर्ण अंग रहा है जिसका प्रयोग घूंघट, नक़ाब या मौजूदा दौर में स्कार्फ के रूप में देखा जा सकता है. शरीर को ढकना एक सभ्य समाज की पहचान है. जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था तब भी पाषाण युग में मनुष्य पेड़ों के पत्तों, छाल आदि से अपने शरीर को ढकने का प्रयास करता था. किसी व्यक्ति को कितना शरीर ढकना है, किस वस्त्र से ढकना है, क्या पहनना है, क्या नहीं पहनना, यह उसका मौलिक अधिकार है.
सूरह अहज़ाब में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा गया है कि जब तुम अपने घरों से निकलो तो अपने पल्लू यानि ओढ़नी अपने ऊपर डाल लिया करो ताकि तुम पहचान ली जाओ और सतायी न जाओ.
जहाँ तक मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब का सवाल है वह उनके धर्म से जुड़ा है। इस्लाम अपने अनुयायियों का जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करता है. कु़रआन में महिलाओं और पुरुषों के लिए स्पष्ट आदेश हैं कि किसको कितना शरीर ढकना है कितना खोल सकते हैं. सूरह अहज़ाब में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा गया है कि जब तुम अपने घरों से निकलो तो अपने पल्लू यानि ओढ़नी अपने ऊपर डाल लिया करो ताकि तुम पहचान ली जाओ और सतायी न जाओ.
अब देखना यह होगा क्या हमारा संविधान अपने नागरिकों को अपने धर्म का अनुसरण करने की इजाज़त देता है. भारतीय संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी देता है तो हिजाब को इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता.
जिस तरह सिख समुदाय को पगड़ी पहनने का विशेषाधिकार प्राप्त है उन्हें इससे कोई भी नही रोक सकता. संस्थान के नियमों का पालन करना किसी भी संस्था के सदस्य के लिए अनिवार्य होता है इससे इन्कार नहीं किया जा सकता लेकिन विशेष परिस्थितियों में नियमों में परिवर्तन करने का प्रावधान भी प्रशासन के पास होता है. इस प्रकरण को प्रशासन और छात्राएँ आपसी सहमति से सुलझा सकते थे.
लेकिन साम्प्रदायिक रंग देने के लिए भगवा गमछा धारियों ने हस्तक्षेप कर विवाद को बढ़ावा देने का काम किया. राजनीतिक लाभ के लिए शिक्षण संस्थानों को अखाड़ा बनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. विडम्बना है कि कभी मुस्लिम महिलाओं ने परदे से आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, आज वह अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस करते हुए दोबारा परदे या हिजाब की शरण में आना चाहती हैं. इसके लिए कहीं न कहीं महिलाओं के प्रति बढ़ती क्रूरता व हिंसा भी ज़िम्मेदार है.
जितना इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं, युवा उतना ही इस्लाम को समझने की कोशिश कर रहे हैं
आधुनिक युग में हिजाब के प्रति युवा पीढ़ी का आकर्षण इस्लामोफ़ोबिया के कारण भी बढा़ है . देखा यह जा रहा है इस्लाम विरोधी ताक़तें जितना इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं, युवा उतना ही इस्लाम को समझने की कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि आज की आधुनिक महिलाएं ही हिजाब के पक्ष में खड़ी नज़र आती हैं. आज वह स्वेच्छा से न सिर्फ हिजाब का प्रयोग कर रही हैं बल्कि तर्क वितर्क भी कर रही हैं.
कभी रूढ़िवादिता से जोडी़ जाने वाली परदा प्रथा आज की महिला ओं को समय की ज़रूरत नज़र आ रही है. इसीलिए वह अपने हक़ की लड़ाई स्वयं लड़ रही हैं.