उत्तर प्रदेश/रामपुर(रिज़वान ख़ान): लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा के चुनाव की घोषणा की महज खाना पूरी ही बाकी है । ऐसे में सपा और बसपा के बीच सीट बंटवारे को लेकर स्थिति भी साफ हो गयी है। रामपुर लोकसभा-7 पर ज्यादातर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है फिर आखिर क्यों सपा की दावेदारी यहां पर मजबूत मानी गई और इस सीट को कांग्रेस ने कैसे आसानी से छोड़ दिया यह सवाल चुनावी समर में खड़ा हो चुका है। लोकसभा चुनाव के लिहाज से यहां पर कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 10 मर्तबा और सपा ने महज 3 बार ही सीट जीतकर लोकसभा में अपनी अपनी पार्टियों का परचम लहराया है।
उत्तर प्रदेश मे कांग्रेस कई दशक पहले अपनी सियासी जमीन खो चुकी है बावजूद इसके रामपुर में आज भी कांग्रेसियों और पार्टी कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज मौजूद है। सियासी एतबार से यहां के स्थानीय कांग्रेसियों के सियासी दुश्मन भाजपाई नहीं बल्कि खुद आजम खान और उनके समर्थक रहे हैं। मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के नाते जिस तरह से मुस्लिम मतदाता शहर विधानसभा क्षेत्र से विधायक के रूप में आजम खान को पसंद करते हैं कुछ इसी तरह लोकसभा के चुनाव में उनकी पहली पसंद नवाब खानदान का प्रत्याशी रहता चला आया है। वर्ष 1957 से लेकर 2019 तक के आम चुनावों में कुल 10 मर्तबा नवाब खानदान के लोगों का ही कब्जा रहा है। जबकि 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस के ही अब्दुल कलाम आजाद प्रथम सांसद चुने गए थे जो बाद में नेहरू सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे।
रामपुर रियासत के अंतिम नवाब रजा अली खान के दामाद राजा सईद अहमद मेहंदी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद वर्ष 1957 से 1967 तक कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव जीतकर लोकसभा में यहां का प्रतिनिधित्व किया था। फिर उनके बाद नवाब रजा अली खान के मझले बेटे नवाब जुल्फिकार अली खान उर्फ मिक्की मियां ने 1967 1971 1980 1984 और 1989 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर ही जीता था। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी बेगम नूर बानो ने 1996 और 1999 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर ही जीता था। चौहदवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भले ही जयप्रदा ने सपा की टिकट पर बाजी मारी हो लेकिन इस चुनाव की रनर कांग्रेस की बेगम नूरबानो ही रही थी। पूर्व सांसद नवाब जुल्फिकार अली खान की मृत्यु के बाद राजनीति में सक्रिय हुई पूर्व सांसद बेगम नूरबानो भले ही अब उम्र दराज हो चुकी हो लेकिन आज भी वह यहां की जनता और स्थानीय कांग्रेसियों के दिलों में अपना और नवाब खानदान का अच्छा खासा वजूद रखती है। यही कारण है कि उनकी सरपरस्ती में कांग्रेसी अपने आप को कभी भी असहाय महसूस नहीं करते हैं और कई पूर्व विधायक जिनमे खुद उनके बेटे पूर्व मंत्री एवं पूर्व विधायक नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां पूर्व विधायक अफरोज अली खान पूर्व विधायक संजय कपूर, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रेशमा अफरोज जैसे सरीखे नेता मौजूद हैं।
रामपुर लोकसभा सीट से तीन बार समाजवादी पार्टी ने चुनाव जीता है जिनमें से 2004 और 2009 में जयाप्रदा ने संसद में रामपुर का प्रतिनिधित्व किया वहीं 2019 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के फायर ब्रांड नेता आजम खान ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी जयाप्रदा को पठखनी दी थी। लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद आजम खान पर योगी सरकार का मजबूत शिकंजा कसा गया जिसका परिणाम यह हुआ कि उन पर एक के बाद एक 100 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए वर्तमान समय में आजम खान उनकी पत्नी पूर्व राज्यसभा सांसद डॉक्टर तंजीम फातिमा और पूर्व विधायक बेटे अब्दुल्लाह आजम दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में 7-7 साल की सजा उत्तर प्रदेश की अलग-अलग जेलों में काट रहे हैं। समाजवादी पार्टी का बाज उड़ रामपुर में आजम खान के दम पर है उनकी गैर मौजूदगी में उनसे जुड़े नेताओं में मजबूत मनोबल की काफी कमी आई है। लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव में आजम खान के समर्थक भाजपाइयों के ताप को सहन नहीं कर पाए और जिसका परिणाम यह हुआ की दोनों उपचुनाव भाजपा की झोली में चले गए।
जनपद रामपुर में 28 लाख की आबादी है और यहां पर 16 लाख से अधिक मतदाता मौजूद हैं। वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद इस लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का चेहरा और कांग्रेस पार्टी बन चुकी थी। नवाब खानदान की बेगम और पूर्व सांसद नूर बानो यहां पर अपनी दावेदारी ठोकते हुए चुनाव के सारे समीकरणों को अपने पाले में साधने को जुट चुकी थी। यहां तक की पूर्व सांसद बेगम नूरबानो ने चुनाव को लेकर नुक्कड़ सभाओं के साथ लोगों से जनसंपर्क करना भी शुरू कर दिया था। नवाब खानदान और आजम खान की सियासी दुश्मनी जग जाहिर है तो ऐसे में किस तरह से उनकी गैर मौजूदगी में सपा प्रत्याशी यहां पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ पाएगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
रामपुर की जनता की बात की जाए तो लोकसभा के चुनाव में खासतौर पर मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव आजम खान की गैर मौजूदगी में नवाब खानदान के प्रत्याशी की ओर था और कहीं ना कहीं पूर्व सांसद बेगम नूर बानो एवं उनके बेटे पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां को मतदाता अपने प्रत्याशी के रूप में पसंद कर रहे थे । चुनावी हलचल के दौरान कुछ मुस्लिम मतदाताओं ने कैमरे इसी मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखी है। हालांकि यह बात अलग है रामपुर की सीट सपा के खाते में जाने पर कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव संजय कपूर बुझे मन से ही पार्टी हाई कमान के इस फैसले को स्वीकारते नजर आए हैं। कुछ इसके विपरीत सपा का खेमा मजबूत प्रत्याशी नहीं होने के बावजूद भी हादसा खुश नजर आ रहा है और शिवपाल सिंह यादव के करीबियों में गिने जाने वाले मोहम्मद याकूब सपा के पाले में यह सीट आने से गदगद नजर आए।
भारतीय जनता पार्टी के विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी का नेतृत्व आजम खान के द्वारा किया जाता रहा है इस बात का अंदाजा उनका 10 बार विधायक और एक बार सांसद चुने जाने से लगाया जा सकता है। जबकि दूसरी और कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कई देशों से नवाब खानदान का नूर महल करता चला रहा है और कांग्रेस की राजनीति कहीं ना कहीं बेगम नूरबानो के इर्दगिर्द घूमती रहती है। पिछले चुनाव में पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े थे। वर्तमान समय में 18 वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने है और ऐसे में पहली बार रामपुर के दो मजबूत सियासी घरानों में से ना ही नवाब खानदान से और ना ही आजम खान के परिवार से कोई प्रत्याशी इस चुनावी रण में फिलहाल उतारने जा रहा है। पूर्व सांसद बेगम नूर बानो के अरमान टिकट बंटवारे में इस सीट के सपा के खाते में जाने से टूट चुके हैं उनके बेटे पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान कांग्रेस से निष्कासित हैं। जबकि आजम खान उनकी पत्नी और बेटा कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद चुनाव लड़ने में अयोग्य ठहराए जा चुके हैं और उनको मुसीबत में गिरा देख उनके कई करीबी साथी साथ छोड़कर भाजपाई बन गए हैं। ऐसी हालत में मुस्लिम मतदाताओं में जोश की कमी रहेगी और वोट प्रतिशत काफी कम रहने वाला है और जिसका सीधा फायदा कहीं ना कहीं भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है।
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