तुम किसी से न कहना…

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तुम किसी से न कहना कि मेरे हो तुम, वरना दुश्मन ज़माना ये हो जायगा

जाग कर रात अपनी गुज़ारो नहीं ,

मूँद कर आँख मुझको पुकारो नहीं,

चांदनी रात ने छत पे जाना नहीं,

मेरे अशआर को गुनगुनाना नहीं,

इन हवाओं का भी कुछ ठिकाना नहीं,

राज़ अपना न कहदें किसीसे कहीं,

तुम किसी से न कहना कि मेरे हो तुम, वरना दुश्मन ज़माना ये हो जायगा

मेरी ग़ज़लों से ना हटादो मेरा,

और चुन-चुन के खत जलादो मेरा,

कुछ भरोसा नहीं चांदनी रात का,

चाँद तारों के बहके ख़यालात का,

मेरी ख़ातिर परेशान होना नहीं,

मुंह छिपाकर किताबों से रोना नहीं,

तुम किसी से न कहना कि मेरे हो तुम, वरना दुश्मन ज़माना ये हो जायगा

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