Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rank-math domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home3/globazty/public_html/wp-includes/functions.php on line 6114
नागरिक अधिकारों के लिये उठती आवाज़ों को कुचलना बंद करो - globaltoday

नागरिक अधिकारों के लिये उठती आवाज़ों को कुचलना बंद करो

Date:

ग्लोबलटुडे ब्यूरो-पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स महाराष्ट्र पुलिस द्वारा पीयूडीआर पर सीपीआई (माओइस्ट) पार्टी का ‘फ्रंटल’ संगठन होने के दावे की कड़ी निंदा करता है. यह खुलेआम, भारत के एक सबसे पुराने जनवादी संगठन को धमकी देने और उसके काम पर रोक लगाने की कोशिश है. पीयूडीआर और पीयूसीएल 1977 में आपातकाल की खिलाफत करने और उस समय गिरफ्तार किये गए लोगों की रिहाई में प्रमुख थे. उस समय से पीयूडीआर लोगों के अधिकारों के हनन के मुद्दे उठाता रहा है. इन मुद्दों में साम्प्रदायिक दंगों से लेकर, पुलिस हिरासत में मौत और बलात्कार, गैर-लोकतांत्रिक कानून और मृत्युदंड का विरोध, संगठित और असंगठित मजदूरों के अधिकार, फर्जी मुठभेड़, जातिगत दमन और अंतर्जातीय शादियों से लेकर आदिवासियों के विस्थापन शामिल हैं. पीयूडीआर ने भारत में पीआईएल के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई है. 1982 में एशियाड खेलों के मामले में पीयूडीआर की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकारों के हनन पर कोर्ट में याचिका करने का अधिकार दिया था. पीयूडीआर उन संगठनों में से भी एक है जिनके द्वारान्यायपालिका में किये गए प्रयासों के कारण पुलिस हिरासत में हुई हत्याओं के लिए मुआवज़ा मिलने की शुरुआत हुई थी.GT Logo
जब भी पीयूडीआर की जांच से यह निष्कर्ष निकलता है कि मानवीय अधिकारों का हनन हुआ है, पीयूडीआर सार्वजनिक रूप से इसकी निंदा करता है, सरकारी विभागों से अपील करता है और न्यायपालिका या एनएचआरसी के दरवाज़े खटखटाता है, और एक सार्वजनिक राय बनाने के लिए इनके खिलाफ अभियान चलाता है. पीयूडीआर द्वारा हाल में चलाये गए अभियानों में कामनवेल्थ खेलों के निर्माण में लगे मजदूरों के लिए कानूनी रूप से निर्धारित मज़दूरी और सुरक्षित काम के हालातों की मांगों को लेकर अभियान शामिल हैं. यूएपीए के तहत होने वाले अन्याय को देखते हुए इस गैर-लोकतांत्रिक क़ानून को रद्द करने की मांग पीयूडीआर का एक अन्य अभियान है.
पीयूडीआर किसी भी राजनैतिक दल या पार्टी से सम्बद्ध नहीं है और यह इसके संविधान के तहत विशेष रूप से निषिद्ध है | यह अपने काम के लिए पैसा अपनी रिपोर्टों की बिक्री, सदस्यता शुल्क और समय समय पर अपने सदस्यों द्वारा दी गई सहयोग राशि से जुटाता है | यह किसी भी राजनैतिक दल, सरकार या संस्थानों से कोई धनराशि नहीं लेता है | अपनी फैक्ट-फाइंडिंग और अन्य कार्यकलापों के लिए इसके अपने सदस्य पैसों का योगदान देते हैं | अलग-अलग तरह के लोग और संगठन मानवीय अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं को लेकर पीयूडीआर के पास आते हैं, पर पीयूडीआर इन मुद्दों को उठाने का फैसला खुद करता है और इन पर अपने बलबूते पर काम करता है.
पीयूडीआर ने बिना झिझक किसी भी तरह के राजनैतिक विचारधारा वाले संगठन, पार्टी या समूह द्वारा लोगों के अधिकारों के हनन की निंदा की है | इसने बार-बार सीपीआई-माओइस्ट द्वारा नागरिकों की हत्याओं की निंदा की है – बारा हत्याकांड (1992), झारखण्ड में एक रेल में बम विस्फोट (2009), पुलिस अफसर फ्रांसिस इन्दुवर की हिरासत में मौत (2009), जमुई हत्याकांड (2010), नरेगा कार्यकर्ता नियामत अंसारी की हत्या (2011), झारखण्ड की एक ग्राम सभा को धमकियां (2012), छत्तीसगढ़ में पत्रकार साईं रेड्डी की हत्या (2013) आदि | शुरुआत से ही पीयूडीआर ने मीसा, एनएसए, टाडा, पोटा और यूएपीए जैसे गैर-लोकतांत्रिक कानूनों का विरोध किया है और इन कानूनों से लोगों और समाज को होने वाले नुक्सान का दस्तावेज़ीकरण किया है – इसलिए पीयूडीआर ने 1990 में श्री एल.के.अडवाणी के खिलाफ एनएसए के लगाए जाने, कांग्रेस नेता कल्पनाथ राय के टाडा के तहत दोषी ठहराए जाने (1997), तमिल नेता वैको की पोटा के तहत गिरफ्तारी (2002), बीजीपी के युवा नेता वरुण गाँधी की एनएसए के तहत गिरफ्तारी, सिमी को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित करने आदि का विरोध किया है.
पीयूडीआर ने अपनी कोशिशों को उन लोगों के हितों के लिए केन्द्रित किया है जिनकी कोई सुनवाई नहीं होती | इनमें शामिल हैं – वे छुट-पुट अपराधी जो अक्सर दिल्ली में पुलिस हिरासत में यातनाओं, हत्याओं और बलात्कार का शिकार होते हैं, निर्माण मज़दूर जो बेहद मामूली मज़दूरी और अनिश्चित हालातों में जीते हैं या फिर असंगठित मजदूर जो दुर्घटनाओं में घायल होते जाते हैं या जान से हाथ धो बैठते हैं और जिन्हें मुआवज़े या न्याय की कोई उम्मीद नहीं होती.
मानव अधिकार संगठनों को उन संगठनों की राजनीति से जोड़ने की कोशिश पहले भी होती रही है, जिनके मानवाधिकारों के हनन के मुद्दे वे उठा रहे हों | जब पीयूडीआर और पीयूसीएल ने 1984 में सिखों के नरसंहार पर एक रिपोर्ट निकाली थी तो उसे कांग्रेस पार्टी से धमकियां मिली थीं और उसे खालिस्तानी संगठनों और उनकी राजनीति से जोड़ने का कुप्रयास किया गया था. यह याद रखना ज़रूरी है की उस समय के पंजाब के मुख्य मंत्री ने सार्वजनिक रूप से, तथ्यों को सामने लाने और इस तरह राज्य में हिन्दुओं के खिलाफ जवाबी हिंसा को रोकने के लिए हमारे संगठन का धन्यवाद किया था.
हम जनवादी अधिकार के काम को करने में निहित खतरों से पूरी तरह अवगत हैं. ख़ास तौर पर तब, जब सत्ताधारी अपने कार्यकलापों द्वारा होने वाले नागरिक अधिकारों के हनन का विरोध करने वालों का मुंह बंद करना चाहते हैं. पीयूडीआर विवेक में अपनी आस्था को दोहराता है और यह आशा करता है कि लोकतांत्रिक संस्थान इस शर्मनाक कोशिश पर रोक लगाएंगें.
पीयूडीआर पुणे पुलिस द्वारा उसे कलंकित करने के अभियान की घोर निंदा करता है जिसमें हमारे वरिष्ठ सदस्य गौतम नवलखा और अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं वरवरा राव, वर्नन गोंसाल्वेस, सुधा भरद्वाज, और अरुण फरेरा की गिरफ्तारी शामिल है. पीयूडीआर इस कुअभियान पर तुरंत रोक लगाने की मांग करता है.

Share post:

Visual Stories

Popular

More like this
Related

एक दूसरे के रहन-सहन, रीति-रिवाज, जीवन शैली और भाषा को जानना आवश्यक है: गंगा सहाय मीना

राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद मुख्यालय में 'जनजातीय भाषाएं...

Understanding Each Other’s Lifestyle, Customs, and Language is Essential: Ganga Sahay Meena

Lecture on ‘Tribal Languages and Tribal Lifestyles’ at the...

आम आदमी पार्टी ने स्वार विधानसभा में चलाया सदस्यता अभियान

रामपुर, 20 नवंबर 2024: आज आम आदमी पार्टी(AAP) ने...
Open chat
आप भी हमें अपने आर्टिकल या ख़बरें भेज सकते हैं। अगर आप globaltoday.in पर विज्ञापन देना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क करें.