रामनवमी आर्य संस्कृति के शिखर-पुरूषों में एक राम का जन्मदिन है। हम में से किसी को ठीक-ठीक पता नहीं कि राम मिथक थे अथवा इतिहास, लेकिन हमारी हजारों साल लंबी सांस्कृतिक परंपरा में वे ऐसे पहले व्यक्ति जरुर थे जिन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया। वे एक प्रखर योद्धा भी थे, अप्रतिम शासक भी और एक शालीन व्यक्तित्व भी।
वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनपर उनकी व्यक्तिगत विशिष्टताओं, अपने समय के उच्चतम जीवन-मूल्यों के आचरण और मर्यादित जीवन के लिए देवत्व आरोपित किया गया। आज भी उनके व्यक्तित्व को सर्वोत्तम व्यक्तित्व, उनके द्वारा स्थापित जीवन-मूल्यों को श्रेष्ठतम जीवन-मूल्य और उनकी जनपक्षीय शासन-व्यवस्था को आदर्श शासन-व्यवस्था माना जाता है। जिन पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को उन्होंने निभाया और जिया, उनकी मिसालें आज भी दी जाती हैं!
आधुनिक समय में उनके कुछ कृत्यों के लिए राम को कठघरे में भी खड़ा किया जाता रहा है। शूर्पणखा का अपमान, निर्दोष सीता की अग्निपरीक्षा और परित्याग, व्यक्तिगत हित के लिए वानरों के राजा बलि की छलपूर्वक हत्या उनके कुछ ऐसे ही कृत्य हैं। ये आज हमें इसीलिए क्रूर और अमानवीय लगते हैं क्योंकि राम को हम मनुष्य के बजाय अलौकिक व्यक्तित्व के रूप में देखने के आदी हो चुके हैं।
राम को दिव्यता या आधुनिकता के आलोक में परखने के बजाय अगर एक व्यक्ति के रूप में देखा जाय तो उनकी इन सीमाओं को समझ पाना कठिन नहीं होगा। ये सीमाएं राम की नहीं, बल्कि तत्कालीन जीवन मूल्यों और मान्यताओं की थीं। अपनी तमाम करुणा और मानवीयता के बावज़ूद राजकीय मर्यादाओं में बंधे राम इन सीमाओं के पार नहीं जा सके। समय बदला तो द्वापर युग में आए कृष्ण अपने समय के धार्मिक, नैतिक, सामाजिक मूल्यों का बार-बार अतिक्रमण करने में सफल रहे। किसी ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके समय के सापेक्ष ही किया जाना चाहिए। देशवासियों को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मदिन की बधाई, अल्लामा इकबाल की नज़्म ‘राम’ के साथ:-
लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वज़ूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था !
नोट-लेख श्री ध्रुव गुप्त की फेसबुक वाल से लिया गया है
लेखक “ध्रुव गुप्त” एक महान कहानीकार,कवि और पूर्व आईपीएस अफसर हैं