ग्लोबलटुडे, 08 अक्तूबर-२०१९
[भारतीय-हिन्दू मिथकों और परम्परा पर लंबे समय से लिखते आ रहे बुद्धिजीवी श्री देवदत्त पट्टनायक ने अपनी एक ट्वीट में एक लाजवाब बात कही . उनहोंने कहा कि जहाँ हिन्दू धर्मं का मतलब वसुधैव कुटुम्बकम है , उसके लिए अगर समूची वसुधा, सारी एक कुनबा है, वहीँ हिंदुत्व का मतलब सिर्फ़ एन आर सी (यानी नागरिकों की राष्हैट्रीय फेहरिश्त ) है. बिलकुल दो शब्दों में , बड़ी खूबसूरती से पट्टनायक साहब ने इन दोनों फलसफों के बीच का फर्क़ खोल कर सामने रख दिया है. इस संक्षिप्त लेख में डाक्यूमेंट्री फ़िल्मकार और पत्रकार सबीहा फ़रहत उसी एन आर सी से पैदा हुए चंद सवाल उठा रही हैं.]
आजकल अमित शाह केवल एनआरसी(NRC) पर स्टेटमेंट दे रहे हैं। “घुसपैठियों ” को बाहर फेंक देंगे और हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी को नागरिकता दे देंगें। फिर चाहे उसके लिये संविधान को तक पर रख कर सिटीज़नशिप ऐक्ट(Citizenship act) ही क्यों ना बदलना पड़े!
NRC एक राजनीतिक छलावा है: नदीम खान (UAH)
उनकी इस बात से साफ़ ज़ाहिर है कि देश के 16 करोड़ मुसलमान ही “घुसपैठिये” हैं। “दीमक” हैं और उन्हें देश से बाहर खदेड़ने की ज़रूरत है। लेकिन सिर्फ़ मुसलमान से इतनी नफ़रत क्यों? मुसलमान ने इस देश का क्या बिगाड़ा है? क्या उसने किसी की रोटी छीनी, किसी की नौकरी छीनी, किसी का बिज़नेस हड़प लिया… नहीं ! क्योंकि अगर वो ऐसा करता तो आर्थिक तौर पर सबसे ज़्यादा कमज़ोर नहीं होता।
अगर राजनीतिक तौर पर देखें तो क्या मुसलमान ने देश के साथ ग़द्दारी की, क्या उसने आज तक आरएसएस-बीजेपी की तरह कोई चरमपंथी विचार वाला नेता चुना? नहीं!! उसने हमेशा मुख्यधारा से जुड़े नेता को वोट दिया। कांग्रेस, जनता पार्टी, एसपी, बीएसपी, सीपीएम, टीएमसी, डीएमके, एआईएडीएमके- इन सब राजनीतिक दलों को वोट दिया। इनमें से किसी का भी नेता मुस्लिम नहीं था। मुस्लिम लीग कभी भी “मुसलमान” की मेन पार्टी नहीं बन पाई। तो फिर इन पार्टियों ने, इनके नेताओं ने आज मुसलमान का साथ क्यों छोड़ दिया ? और उससे भी बड़ा सवाल- एक ही मोहल्ले में रहने वालों ने, एक ऑफ़िस में काम करने वालों ने मुसलमान का साथ क्यों छोड़ दिया? सिर्फ़ अमित शाह और मोदी के कहने पर? क्या देश के बहुसंख्यक वाक़ई इतने नादान हैं ? अगर नहीं तो फिर इस एनआरसी और सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल(Citizenship amendment bill) का बड़े पैमाने पर कोई विरोध क्यों नहीं?
नागरिकता के नाम पर देश के विभाजन पर उतारू भाजपा- रिहाई…
इस देश का मुसलमान 1947 में आज़ादी के बाद से बहुसंख्यकों को ये ही बताने और समझाने में लगा हुआ है कि देखो मैं सिपाही भी हूं, मैं टीचर भी हूं, मैं मॉडर्न भी हूं, मैं वेजिटेरियन भी हूं, मैं मेहनती भी हूं, मैं आर्टिस्ट भी हूं, मैं साइंटिस्ट भी हूं, मैं जाहिल भी हूं, मैं ग़रीब भी हूं, मैं कश्मीरी भी हूं, तमिल भी, लेकिन इस देश ने क्या देखा? टेररिस्ट, जिहादी, तबलीग़ी, मुल्ला, कठमुल्ला, कारपेंटर, मेकैनिक, औरंगज़ेब, बाबर…नौकरी के लायक़ नहीं, किराये पर घर देने के लायक़ नहीं! इसमें किसकी ग़लती है? ये अकेले मेरा सवाल नहीं, आज अनगिनत मुसलमान नामधारियों के सामने यह सवाल मुंह बाये खड़ा है. मुझे पूछना है कि क्या अब भी आप यही करेंगे? बाबर लगभग 500 साल पहले भारत आया था। लेकिन वो आज भी हमारी राजनीति की दिशा तय कर रहा है। हम कब अपनी राजनीति का रुख़ ख़ुद तय करेंगे?
मुसलमानों से सवाल
मेरा सवाल मुसलमान से भी है… अगले संसद सत्र में अमित शाह सिटीज़नशिप अमेंडमेंट बिल पास करवा लेंगे तो आप क्या करेंगे? क्या आप जानते हैं कि ये आपकी ज़िन्दगी को कैसे बदल देगा? अगर आपका नाम एनआरसी में नहीं आता तो आपको “इल्लिगल माइग्रेंट” मान लिया जाएगा। इसके बाद आपको जेल भेजा जाएगा या फिर डिटेंशन सेंटर। “घुसपैठिये” की नागरिकता नहीं होती। मान लिया जाता है कि वो ग़लत इरादे से भारत में घुसा है। इसलिये उसका यहां कोई अधिकार नहीं होगा। आप वोट नहीं दे सकते, आप नौकरी नहीं कर सकते, ना ही बिज़नेस कर सकते हैं। आप ना कोई बैंक अकाउंट रख सकते हैं और ना ही कोई प्रॉपर्टी! ये सब अगर ज़ब्त हो गया तो सोचिये आप क्या करेंगे? अगर आप बीमार हैं तो आपको बीमा के पैसे नहीं मिलेंगे, डॉक्टर भी चाहे तो आपको ना देखे। आपके कोई संवैधानिक अधिकार नहीं रहेंगे। रोटी, कपड़ा और मकान वाला संविधान आपके लिये नहीं होगा। पुलिस को छूट होगी कि वो आपको एक मुजरिम समझे। सरकार आपके लिये ज़िम्मेदार नहीं होगी। ये सब एक साथ नहीं तो आहिस्ता-आहिस्ता किया जाएगा। एक दिन, एक साल में नहीं लेकिन अगले पांच साल में ज़रूर हो सकता है। यही है सेकंड ग्रेड सिटीज़नशिप। यानी दोयम दर्जे की नागरिकता। ऐसी नागरिकता जिसमें मुसलमान केवल भीख पर ज़िन्दा रहें. क्या आपको ये क़बूल है?
ये है असम एनआरसी और फॉरेन ट्रिब्यूनल की हकीकत-फैक्ट फाइंडिंग टीम यूनाइटेड अगेंस्ट…
मॉब लिंचिंग कुछ और नहीं इसका ही एक नमूना है। ये दोयम दर्जे की नागरिकता की तरफ़ “नए भारत” यानी “न्यू इंडिया” का पहला क़दम है। जो पीड़ित है उसके ही ख़िलाफ़ अगर एफ़आईआर(FIR) दर्ज हो रही है तो इसका मतलब है कि मुसलमान न्याय और समानता की लड़ाई छोड़ कर अपनी सुरक्षा की भीख मांगे!
क्या आप जानते हैं आरएसएस विचारक स्पेन का इतिहास क्यों पढ़ते हैं? क्या आपने कभी स्पेन का इतिहास पढ़ा है? अगर नहीं तो पढ़ लीजिये। जान लीजिये वहां के मुसलमानों के साथ क्या हुआ था। क्या हम भी वैसे ही एक क्रूर वर्तमान की दहलीज़ पर हैं?
या फिर गांधी के इस देश मे हम लोग उनकी ही तरह एक मज़बूत आंदोलन शुरू कर सकते हैं, अमित शाह की नफ़रत भरी धमकी के ख़िलाफ़?
Courtesy- Sabiha Farhat and Kafila.online
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