रूस के मशहूर लेखक सोल्जेनित्सीन ने अपने उपान्यास ‘गुलाग आर्किपेलाग’ में लिखा है कि एक बूढ़ी औरत को सिर्फ इसलिए जेल में डाल दिया जाता है क्योंकि उसने कॉमरेड स्टालिन की फोटो वाले छपे अखबार पर एक मछली लपेट दी थी। गुलाग एक रूसी शब्द है, जिसका अर्थ होता है कैद-ए-बामुशक्कत यानी सश्रम कारावास, आर्किपेलाग का मतलब होता है कि किसी महासागर के बीच बसा एक द्वीप, जिसे हम सरल अर्थों में समझें तो जैसे भारतीय स्वतंत्रतात संग्राम सेनानियों को काला पानी के सजा के तौर पर अंडमान जेल भेजा जाता था। रूसी लेखक यह शायद ही यह सोच पाए हों कि वह अपनी कल्पना के आधार पर जिस उपन्यास को लिख रहे हैं, उसके किरदार एक दिन भारत में सच भी हो जाएंगे। दरअस्ल यूपी के संभल में एक बिरयानी बेचने वाले हाजी तालिब को संभल पुलिस ने इसलिए जेल भेजा है, क्योंकि उन पर आरोप है कि उन्होंने देवी-देवताओं के फोटो छपे हुए अखबार में बिरयानी पैक की है। भारत के गांव-देहातों में यह आम बात है कि, अखबारों के बने लिफाफों में मूंगफली, चना, भूजा, समोसा, सहित कई चीजें बेंची जाती हैं। लेकिन अब अख़बार की पैकिंग में सामान बेचना भी अपराध हो गया है। इससे पहले जनवरी 2021 में ठाकुर शू कंपनी का जूता बेचने वाले नासिर को इसलिये गिरफ्तार किया गया क्योंकि जूते पर ‘ठाकुर’ लिखा हुआ था। अब हाजी तालिब को गिरफ्तार किया गया है।
रद्दी खरीदने वाला अपराधी कैसे हो गया?
संभल के हाजी तालिब के खिलाफ दारोगा अजय कुमार ने तहरीर दी थी. तहरीर में उन्होंने बताया था कि होटल संचालक हाजी तालिब देवी-देवताओं के चित्र छपे कागज में नॉन वेज पैक कर के बेच रहे थे. इसकी जानकारी मिलने पर होटल में पहुंचे कुछ लोग आक्रोश जताने लगे. पुलिस ने हाजी तालिब के खिलाफ लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के साथ ही पुलिस पर हमला करने के आरोप में धारा 206/2022, धारा 425 आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज किया है. हाजी तालिब को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया है। हाजी तालिब जिस अख़बार का इस्तेमाल कर रहे थे, वह हिंदुस्तान है। यूपी पुलिस की इस कार्रावाई पर सवाल उठ रहे हैं। आखिर इस देश को क्या बनाया जा रहा है? यह सामान्य सी बात है अखबार पढ़ने के बाद वह रद्दी कबाड़ में बेच दिए जाते है जिनको रेहड़ी वाले, खोमचे वाले, होटल वाले खरीदकर लिफाफे बनाकर उनमे सामग्री डाल कर ग्राहक को देते हैं लेकिन इसमें रद्दी खरीदने वाला अपराधी कैसे हो गया? अगर अखबारों में छपने वाले चित्रों की वजह से किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती है तो सबसे पहले उन अखबार छापने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाओ जिन्होंने किसी धर्म के चित्र छापे है। वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के संपादक रहे ओम थानवी ने यूपी पुलिस की इस हरकत पर नाराज़गी ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि शिकायत करने वाला तो सांप्रदायिक रहा होगा, मगर पुलिस का विवेक कहाँ चला गया? अख़बार क्या सामान देखकर लपेटे जाते हैं? क्या हिंदू शाकाहारी ही होते हैं? जब-तब ख़बरों/विज्ञापनों में तिरंगे झंडे की छवियाँ होती हैं। क्या उन पन्नों पर खाना लपेट देना राष्ट्र का अपमान ठहरा दिया जाएगा?
यह पहली बार नहीं हो रहा है, हां यह जरूर कहा जा सकता है कि इन मामलों में यूपी पुलिस पहली बार गिरफ्तारी जरूर कर रही है।
अक्सर आपने देखा होगा कि दिवाली के नज़दीक तथाकथित हिंदुत्तववादी संगठनों के लोग मुस्लिम दुकानदारों की दुकानों पर जाकर धमकी देते हैं कि वे देवी-देवताओं के चित्रों से सुज्जित पटाखा न बेचें।
वे कभी पटाखा बनाने वाली फैक्ट्री का विरोध नहीं करते, उससे नहीं पूछते कि पटाखा फैक्ट्रियां ऐसे धार्मिक नाम रखकर पटाखे क्यों बनाती हैं। लेकिन किसी ग़रीब दुकानदार को, जो मेहनत मजदूरी करके अपना परिवार पाल रहा है उसे प्रताड़ित करने निकल पड़ते हैं। अब तक यह काम सिर्फ तथाकथित हिंदुत्तववादी किया करते थे, लेकिन अब इसमें यूपी पुलिस भी भागीदार बन रही है। पुलिस ने जनवरी 2021 में नासिर को ठाकुर शू कंपनी का जूता बेचने पर गिरफ्तार किया और अब संभल में हाजी तालिब को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
क्या अख़बार के ख़िलाफ या विज्ञापनदाता के भी ख़िलाफ भी पुलिस एक्शन लेगी? उनसे पूछताछ की जाएगी की भावनाओं वाले देश में तुमने देवी-देवताओं की तस्वीरें अख़बार में प्रकाशित करने की हिमाकत क्यों की? क्या विज्ञापनदाता को गिरफ्तार कर उससे पूछा जाएगा कि त्यौहार का बधाई संदेश देने के लिये तुमने देवी-देवताओं की तस्वीरें अख़बार में क्यों प्रकाशित कराईं? क्या तुम्हें पता नहीं था कि कुछ घंटों के बाद ही अख़बार रद्दी का ढ़ेर हो जाते हैं, और 5 रुपए का बिकने वाला अखबार 5 रुपए किलो रद्दी के भाव बिकने लगता है, तब तुमने ऐसी हिमाकत क्यों की? या आईपीसी की सारी धाराएं सिर्फ हाजी तालिब के ही हिस्से में आएंगी?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)
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