Globaltoday.in | गुलरेज़ खान | बरेली
दरगाह आला हज़रत स्थित मरकज़ी दारुल इफ्ता के मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी के हवाले से जमात के प्रवक्ता समरान खान ने बताया,”रमज़ानूल मुबारक का आख़री अशरा जो जहन्नम की आग से निजात की दुआओं और आमाल के लिए ख़ास है जो अब शरू हो गया है.
इस अशरे में लोग नेक आमाल, ज़्यादा से ज़्यादा नमाजों और दुआओं का एहतमाम करते हैं। युँ तो रमज़ान का पूरा महीना ही दूसरे महीनों से मुमताज़(अलग) और रहमत व मगफिरत वाला है, लेकिन आख़िर के इन दस दिनों की फज़ीलत सबसे ज़्यादा है.
अल्लाह के प्यारे रसूल(स.अ.व) इस अशरे में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत व रियाज़त, ज़िक्र व फ़िक्र और शब बेदार फ़रमाया करते थे।
इस अशरे में एक बड़ी अज़मात वाली रात “शबे क़द्र” भी आती है जो हज़ार महीनों से अफजल और शाम से सुब्ह तक सलामती वाली है। अल्लाह के प्यारे रसूल ने ‘शबे क़द्र’ को 21, 23, 25, 27 और 29 रमज़ान की रातों में तलाश करने का हुक्म दिया है।
एतिकाफ
इस अशरे की एक ख़ुसूसियत ‘एतिकाफ’ भी है, एतिकाफ दस दिनों के लिए मस्जिद में क़याम करके अल्लाह की इबादत व रियाज़त करने को कहा जाता है।
अल्लाह के प्यारे रसूल ने फ़रमाया कि जो शख़्स रमज़ान के आखरी दस दिनों में एतिकाफ करे तो वह ऐसा कि उसने दो हज और दो उमरे किए। इस अशरे में रहमतों, बारातों और अजमतों का नुजुल उरूज पर होता है।
मस्जिदों में ‘एतकाफ’ में ज्यादा लोग न बैठें
आला हज़रत दरगाह से यह भी अपील हो चुकी है कि मस्जिदों में एतकाफ में ज्यादा लोग न बैठें, एतकाफ सुन्नत-ए-किफाया है अगर सबने छोड़ दिया तो सब गुनहगार होंगे और अगर एक ने भी कर लिया तो सब की जिम्मेदारी अदा हो गई, इसलिए ज़्यादा लोग एतकाफ में न बैठें।
20वां रमज़ान और 21वीं शब को लोग अपने शहर से लेकर देहात तक की छोटी-बड़ी मस्जिदों में एतकाफ की नियत कर बैठते हैं और ईद के चाँद का एलान होते ही उठते हैं. इस वकत लॉकडाउन चल रहा है तो ऐसे में मस्जिदों में एक या दो से ज्यादा लोग न बैठने की कोशिश करें और अपने आप को खतरे में न डालें।