सर पे काला आँचल डाले आयी है शर्मीली रात
आओ थोड़ी आग जलालें शायद हो बर्फीली रात
आंधी,तूफाँ ,बिजली,बादल और अभी तो बाक़ी है
आंगन में बारिश का पानी कमरे में चमकीली रात
जी करता है सज-धज कर दुल्हन बनकर आओ तुम
एक मुद्द्त के बाद आयी है चाँद में डूबी नीली रात
जबसे तुम से दूर हुए हम जाने क्यों यह लगता है
दिन भी बैरी शाम भी दुश्मन होती है सौतेली रात
तुम भी प्यासे हम भी प्यासे लाओ मय ,सुराही जाम
पीकर दोनों सो जाते हैं लंबी हो नशीली रात
देखो ‘साहिर’ चाँद सितारे शिकवा मुझसे करते हैं
रात में जब सब सो जाते हैं करती है अठखेली रात