ग्लोबलटुडे/नई दिल्ली[राहेला अब्बास]: जामिया टीचर्स एसोसिएशन(जेटीए) ने विश्विद्यालय के अंसारी ऑडिटोरियम लॉन में अपने सालाना कार्यक्रम का आयोजन किया। इस सालाना डिनर कार्यक्रम में करीब 800 लोगों ने शिरकत की।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की पहली महिला कुलपति प्रो.नजमा अख्तर इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं। भारत मे न्यूजीलैंड की राजदूत जोआना केम्पकर्स और श्रीलंका के राजदूत ऑस्टिन फर्नान्डो को इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। हाल ही में दोनों देशों में आतंकी हमले हुए और दोनों देशों के राजदूतों को आमंत्रित कर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि किसी भी प्रकार के आतंकवाद का विरोध किया जाना चाहिए और जामिया फ्रेटर्निटी दोनों देशों के साथ है।
न्यूजीलैंड की राजदूत जोआना केम्पेर्स ने इस मौके पर एक बार फिर दोहराया कि उनका देश हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म, जाति अथवा समुदाय नहीं होता। उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय पर हमला उनके देश पर हमला है और उनका देश उस समुदाय की रक्षा के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने जामिया का शुक्रिया अदा किया कि वह संकट की घड़ी में उनके देश और श्रीलंका के साथ खड़ा है। अपने भाषण के अंत मे उन्होंने एक गाना भी गाया जिसके ज़रिए उन्होंने दुनिया में प्यार, एकता,भाईचारा और एक साथ होने का महत्व के बारे में बताया।
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इससे पहले जेटीए के सचिव प्रो. मजीद जमील ने सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि जामिया फ्रेटर्निटी ने हर प्रकार के आतंक का हमेशा विरोध किया है चाहे वह किसी व्यक्ति अथवा संगठन द्वारा किया गया हो। पुलवामा हमला हो, न्यूज़ीलैंड में मस्जिद में हमला हो अथवा श्रीलंका में आतंकी हमला हो जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने सदैव इसकी भर्त्सना की और इनके खिलाफ बयान जारी किया।
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जेटीए के अध्यक्ष प्रो. अमीर आज़म ने कहा कि हम यह मानते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंक फैलाने वालों का पुरज़ोर विरोध होना चाहिए।
जनसंपर्क अधिकारी अहमद अज़ीम ने बताया कि इस कार्यक्रम की शुरुआत क़ुरआन की उस आयत को पढ़ कर हुई जिसका मतलब है कि अगर किसी ने एक भी बेगुनाह का क़त्ल किया तो समझो कि पूरी इंसानियत का क़त्ल हुआ और अगर किसी ने एक बेगुनाह को बचाया तो यह समझें कि पूरी इंसानियत को बचाया।
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जेटीए के जॉइंट सेक्रेटरी डॉ. इरफान क़ुरैशी ने 99 साल पुरानी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इतिहास के बारे में लोगों को अवगत कराया कि किस तरह ब्रिटिश हुकूमत का विरोध कर रहे आज़ादी के दीवानों ने 1920 में अलीगढ़ में इस विश्विद्यालय की नींव रखी। हर तरह की परेशानियों का सामना करते हुए यह विश्विद्यालय आज सफलता की कहानी लिख रहा है। गांधी जी और जामिया के संबंध पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। डॉ. क़ुरैशी ने यह भी बताया श्रीलंका के राजदूत किसी कारणवश कार्यक्रम में नहीं आ पाए जिसके लिए उन्होंने पत्र लिख कर खेद प्रकट किया।