भारत के नागरिक माननीय सुप्रीम कोर्ट के आभारी होंगे कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के संबंध में इस लेख की अंतर्वस्तु पर कृपया ध्यान दें।
प्रलेखित इतिहास
राष्ट्र और विश्व इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि 1875 में सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की थी। यह कॉलेज पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था और 1885 में इसकी संबद्धता इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कर दी गई।
एमएओ कॉलेज: मुस्लिम आधुनिकीकरण का साधन
19वीं शताब्दी के अंतिम चरण से इस संस्था ने विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं के लोगों को एकजुट करना, उन्हें आधुनिकता की ओर अग्रसर करना और भारतीय मुसलमानों के बौद्धिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण का नेतृत्व करना शुरू किया। इस प्रकार इसे एक गतिशील भारतीय-इस्लामी चेतना और सार का केंद्र माना गया।
अलीगढ़ आंदोलन
भारतीय मुसलमानों की इस प्रकार की जागृति और सक्रियता को ‘अलीगढ़ आंदोलन’ के नाम से जाना जाने लगा। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य एमएओ कॉलेज को एक विश्वविद्यालय में बदलना था ताकि यह स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके और मुस्लिम शिक्षा में पिछड़ेपन को दूर कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। इसी उद्देश्य से कॉलेज ने अपने पाठ्यक्रम में कई कार्यक्रम जोड़े। चार दशकों के दौरान, यह संस्था अकादमिक विविधता, प्रतिष्ठा और आकार में असाधारण रूप से विकसित हुई।
अधिनियम का उद्देश्य केवल प्रक्रिया आधारित था
उस समय की शासन प्रणाली के अनुसार (जो आज भी प्रचलित है) कॉलेज को विश्वविद्यालय में बदलने का एकमात्र तरीका विधायिका में एक अधिनियम पारित करना था। ऐसा करने के लिए यह आवश्यक नहीं था कि मौजूदा कॉलेज किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित न हो। इस प्रकार, 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया।
एमएओ कॉलेज की संपत्तियाँ एएमयू की संपत्तियाँ बनीं
सन् 1920 के मूल अधिनियम की धारा 4 (i) और (iv) में कहा गया है, “मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज अलीगढ़ और मुस्लिम यूनिवर्सिटी एसोसिएशन को भंग कर दिया जाएगा, और इन संस्थाओं की सभी चल-अचल संपत्तियाँ और सभी अधिकार, शक्तियाँ और विशेषाधिकार विश्वविद्यालय में हस्तांतरित हो जाएंगे और विश्वविद्यालय के उद्देश्य के लिए प्रयुक्त होंगे।”
इस्लामी अध्ययन को बढ़ावा देना अनिवार्य
सन् 1920 के मूल अधिनियम की धारा 5 (2)(a) में कहा गया है “विश्वविद्यालय को प्राच्य और इस्लामी अध्ययन को बढ़ावा देने और मुस्लिम धर्मशास्त्र और धर्म की शिक्षा देने का अधिकार होगा।”
एमएओ कॉलेज की निधि एएमयू की प्रारंभिक निधि बनी
सन् 1920 के मूल अधिनियम में यह भी मान्यता दी गई है कि विश्वविद्यालय के संचालन के लिए आवश्यक प्रारंभिक निधि इसके पूर्ववर्ती निकायों से आएगी।
1971 और 1981 में कानूनी स्पष्टीकरण
बाद में 1981 में अधिनियम की धारा 2(l) में संशोधन कर ‘विश्वविद्यालय’ की परिभाषा को स्पष्ट किया गया कि यह मुसलमानों द्वारा स्थापित एक शैक्षणिक संस्थान है।
1920 का अधिनियम संस्थान को स्थापित नहीं करता बल्कि अपग्रेड करता है
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि एमएओ कॉलेज भारतीय मुसलमानों द्वारा 1875 में स्थापित किया गया था, जिसे 45 वर्षों तक उन्हीं ने संचालित किया और इसे विश्वविद्यालय का दर्जा देने का प्रयास किया।
इस्लामी प्रतीक चिन्ह
यहां तक कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रतीक चिन्ह में कुरान की एक आयत, एक खजूर का पेड़, पवित्र कुरान और अर्धचंद्र का चित्र है, जो सभी इस्लामी परंपरा और संस्कृति के प्रतीक हैं।
मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणि
समझ में नहीं आता है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान मानने के लिए और क्या आवश्यक है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई यह टिप्पणी कि “एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक चरित्र कैसे हो सकता है” संविधान के अनुच्छेद 30 के विपरीत प्रतीत होती है जो अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का मौलिक अधिकार देती है।
संस्थान के अर्थ की परिभाषा
माननीय मुख्य न्यायाधीश ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्यों केंद्रीय विश्वविद्यालय उनके विचार में “शैक्षणिक संस्थान” की परिभाषा से बाहर है। ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज शब्दकोश में इसे एक ऐसा संगठन कहा गया है जो शैक्षणिक उद्देश्य के लिए स्थापित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के 5-जजों की पीठ का स्पष्टीकरण
इसके अलावा 2002 में सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की पीठ ने टीएमए पाई मामले में शैक्षणिक संस्थानों की परिभाषा स्पष्ट कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट से इस लेख पर विचार करने का निवेदन
इस प्रकार, भारत के नागरिक माननीय सुप्रीम कोर्ट से सम्मानपूर्वक अनुरोध करते हैं कि कृपया अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को एक अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता दें।
प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री से अपील
नागरिक माननीय प्रधानमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री से अनुरोध करते हैं कि कृपया इस संवैधानिक योजना और तथ्यों को स्वीकार करें।
संवैधानिक सीमा का सम्मान करना
भारत के नागरिक राष्ट्र से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करते हैं कि वह किसी वर्ग की संवेदनाओं को आहत न करे।
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.)