इमरान खान अगर ऑक्सफोर्ड के चांसलर बने तो ये उनकी सियासत की जीत और रियासत की हार होगी

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एक असाधारण घटनाक्रम में, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री, ग्लोबल क्रिकेट आइकॉन, और बेहद लोकप्रिय नेता इमरान खान(Imran Khan) अब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में चांसलर के प्रतिष्ठित पद के लिए उम्मीदवार हैं। पहले से ही विश्व राजनीति में एक प्रमुख हस्ती, खान की इस अकादमिक भूमिका के लिए दौड़ न केवल विश्वविद्यालय के लिए, बल्कि पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य के लिए भी गहरे प्रभाव डाल सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे इमरान खान द्वारा खेला गया मास्टर स्ट्रोक समझ रहे हैं।

राजनीति में प्रवेश से पहले ही एक ग्लोबल आइकॉन

राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखने से बहुत पहले, खान एक विश्व स्तर पर मशहूर शख्सियत थे। क्रिकेट में पाकिस्तान की सफलता, विशेष रूप से 1992 के विश्व कप जीतने में उनकी भूमिका, ने उन्हें राष्ट्रीय नायक बना दिया था। राजनीति में प्रवेश के बाद, खान बदलाव का प्रतीक बन गए, खासकर संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनके जोशीले भाषणों के बाद। इस्लामोफोबिया के मुद्दे पर उनके भाषण ने मुस्लिम दुनिया में व्यापक समर्थन पाया और उन्हें पाकिस्तान की सीमाओं से परे भी एक नेता के रूप में स्थापित किया। आज मुस्लिम दुनिया महातिर मोहम्मद और तैय्यब अर्दुगान से कहीं ज़्यादा इमरान खान को अपना नेता मान रही है।

आज भी, जबकि वे जेल में हैं, खान का प्रभाव कायम है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जहां पैसे बहाकर भी एक आर्टिकल छपवाना मुश्किल होता है, उन पर 100 से अधिक लेख और दर्जनों साक्षात्कार प्रकाशित हुए हैं, जो वैश्विक राजनीतिक विमर्श में उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हैं। अपने देश में भी, वे जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। सर्वेक्षणों की मानें तो 70 प्रतिशत से अधिक पाकिस्तानी लोग उनके साथ मजबूती से खड़े हैं, चाहे जितनी भी बाधाएं हों। पिछली फरवरी को उनकी चुनावी जीत ने साबित कर दिया कि उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, अभी भी पाकिस्तानी सियासत की सबसे बड़ी हकीकत है। अब, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के चांसलर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी उनके व्यक्तिगत करियर में एक नया अध्याय हो सकता है, साथ ही पाकिस्तान की राजनीति में भी अहम मोड़ ला सकता है।

पाकिस्तानी लोकतंत्र की प्रतीकात्मक जीत

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, दुनिया के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक, बौद्धिक और सांस्कृतिक नेतृत्व का प्रतीक है। ऐसे समय में जब पाकिस्तानी सरकार और सैन्य नेतृत्व खान को दबाने की कोशिश कर रहे हैं, उनके लिए इस तरह के पद पर आसीन होना लोकतांत्रिक सिद्धांतों और उनकी वैश्विक मान्यता की एक प्रतीकात्मक जीत होगी।

पाकिस्तान के लोगों के लिए, यह उनके नेतृत्व की एक मान्यता होगी, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। यह उनकी लोकप्रियता और महत्व को साबित करेगा और संभवतः उनके समर्थकों में नए सिरे से ऊर्जा भर सकता है, जिससे पाकिस्तान में राजनीतिक गतिविधियों और प्रदर्शनों की नई लहरें पैदा हो सकती हैं।

पाकिस्तान की सॉफ्ट पावर और अंतरराष्ट्रीय स्थिति में मजबूती

इमरान खान की ऑक्सफोर्ड में नेतृत्व की भूमिका पाकिस्तान के लिए एक अभूतपूर्व वैश्विक सॉफ्ट पावर बनने का अवसर हो सकती है। यह एक पाकिस्तानी नेता को दुनिया के सबसे प्रभावशाली शैक्षणिक संस्थानों में से एक के केंद्र का केन्द्र बिंदु बनाएगा , जिससे पाकिस्तान और पश्चिम के बीच अकादमिक सहयोग के नए अवसर पैदा होंगे। इस पद से खान दुनिया के नेताओं, नीति निर्माताओं, और विद्वानों के साथ उन मुद्दों पर बातचीत कर सकेंगे जो पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि आर्थिक विकास, आतंकवाद-रोधी प्रयास, और क्षेत्रीय शांति।

वैश्विक स्तर पर, खान का चुनाव उन मुस्लिम-बहुल देशों को भी प्रेरित कर सकता है, जहां उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जो उनकी चिंताओं का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी सफलता यह दिखाएगी कि बौद्धिक नेतृत्व का कितना महत्व है और इससे पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय अकादमिक समुदाय के बीच संबंध और भी मजबूत हो सकते हैं।

घरेलू राजनीतिक प्रभाव: सेना को एक झटका

हालांकि चांसलर का पद अधिकतर औपचारिक होता है, इसकी प्रतीकात्मक अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। पाकिस्तान के वर्तमान सैन्य नेतृत्व और सरकार के लिए, जो खान को जेल में रखने की कोशिश कर रहे हैं, यह एक बड़ा झटका होगा। यह उन्हें याद दिलाएगा कि उनके प्रयासों के बावजूद, खान का प्रभाव पाकिस्तान और वैश्विक स्तर पर बरकरार है।

भविष्य की चुनौतियाँ: नेतृत्व और विरासत को संतुलित करना

हालांकि खान का चुनाव उनके लिए व्यक्तिगत रूप से एक बड़ी उपलब्धि होगी, यह पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक स्थिति में नई चुनौतियाँ भी ला सकता है। मौजूदा शासन और सेना को यह समझाना मुश्किल होगा कि जिस नेता को वे कैद में रखना चाहते हैं, वह वैश्विक स्तर पर निरंतर मान्यता प्राप्त कर रहा है। घरेलू स्तर पर, इससे वे खान और PTI को दबाने के लिए और कठोर कदम उठा सकते हैं, जिससे देश में राजनीतिक तनाव और बढ़ सकता है।

अगर खान यह चुनाव जीतते हैं तो ये उनके लिए चुनौती होगी कि वे ऑक्सफोर्ड में एक वैश्विक बौद्धिक नेता की भूमिका और पाकिस्तान की राजनीति की वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाए रखें। भले ही चांसलर का पद औपचारिक हो, लेकिन इस पद से खान को एक वैश्विक मंच मिलेगा, जिससे वे पाकिस्तान में मौजूद सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती देने का अवसर पा सकते हैं। लेकिन दूसरी तरफ, इस पद के कारण वे पाकिस्तान की जमीनी राजनीति से दूर भी हो सकते हैं, जिसका उनके आलोचक लाभ उठा सकते हैं।

निष्कर्ष: पाकिस्तान के लिए एक नया सवेरा?

Mutyim Kamalee
मुतईम कमाली (फिल्म लेखक एवं निर्देशक)

कुल मिलाकर, इमरान खान का ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में चुनाव पाकिस्तान के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। यह एक प्रतिष्ठित वैश्विक नेता के रूप में पाकिस्तान की उपस्थिति का प्रतीक होगा। देश में, यह उन ताकतों को चुनौती देगा जो खान के प्रभाव को दबाने की कोशिश कर रही हैं, और उन लाखों पाकिस्तानियों के लिए आशा का स्रोत बनेगा जो अभी भी उन्हें देश का सच्चा नेता मानते हैं।

जैसा कि देश राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक वैधता के सवालों से जूझ रहा है, ऑक्सफोर्ड में खान का उदय पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य और दुनिया में उसकी जगह के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

एक हिंदुस्तानी होने के नाते मेरी दुविधा यह है कि इमरान खान के भारत विरोधी रवैय्यों और उनकी तालिबानी सोच की वजह से उनका विरोध करूं या ये जानते हुए उनका समर्थन, कि वो बदनाम ए ज़माना पाकिस्तानी फौज को घुटने के बल लाने की सलाहियत रखते हैं।

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.)

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