रोहेलों का ताजमहल रज़ा लाईब्रेरी !

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बेमिसाल खूबसूरती के साथ बहुमूल्य कलात्मक अवशेषों व दुर्लभ पांडुलिपियों के कारण दुनियां भर में है मशहूर

रजा लाईब्रेरी (हामिद मंजिल) को रोहेलों के ताजमहल(Tajmehal)कके नाम से भी जाना जाता है। ये इमारत जहां अपनी बेमिसाल खूबसूरती के लिये दुनियां भर में मशहूर है, वहीं इसकी इस खूबसूरती में चार चांद लगाने में इसमें संरक्षित बहुमूल्य कलात्मक अवशेषों और दुर्लभ पांडुलिपियों की अहम भूमिका है।

इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि अपनी दौरे हुकूमत में नवाब फैजुल्लाह खां(Nawab Faizullah Khan) ने तोशाखाना में एक पारिवारिक लाईब्रेरी की नींव रखी और इसमें दुर्लभ पांडुलिपियों और कलात्मक अवशेषों को अलग अलग जगहों से लाकर संग्रहित किया। संग्रह का यह सिलसिला रियासत के दूसरे शासकों के कार्यकाल में भी जारी रहा और लाईब्रेरी की दिन ब दिन तरक्की गई।

इन शासकों में नवाब कल्बे अली खां(Nawab Kalbe Ali Khan) की साहित्यिक एवं कलात्मक रुचि ने लाईब्रेरी की कीर्ति को बहुत अधिक बढ़ावा दिया। इन्होंने 1857 ई0 के बाद मुगल और अवध के बिखरे पुस्तकालय से अपने कारिंदों के माध्यम से अमूल्य कलात्मक कलाकृतियां तथा पांडुलिपियों को खरीदकर इस पुस्तकालय में शामिल किया।

यह भी जानकारी हासिल हुई है कि 1872 ई. में हज की यात्रा पर गए नवाब कल्बे अली खान अपने साथ ढेर सारी पांडुलिपियों भी लाए और रजा लाइब्रेरी के किताबी खजाने में जमा कर दीं। नवाब हामिद अली खान (1889-1930) तक रामपुर की गददी को सुशोभित किया। इन्होंने किला परिसर में खूबसूरत भवन हामिद मंजिल(Hamid Manzil) का निर्माण करवाया साथ ही जिस इमारत का शिलान्यास नवाब मुश्ताक अली खान ने किया था इसे भी नवाब हामिद अली खान ने पूरा कराया। नवाब हामिद अली खान ने इसका उद्घाटन 31 मार्च 1892 को बड़ी धूमधाम से किया और रज़ा लाइब्रेरी(Raza Library) को इस लाइब्रेरी में स्थापित किया।

इससे पूर्व यह लाइब्रेरी तोशा खाना में थी जिसमें आज राजकीय आईटीआई स्थित है। देश के प्रख्यात हकीम अजमल खान लाइब्रेरी के उच्चाधिकारी नियुक्त किए गए। सन 1891 ई. में एक रबर की मोहर तैयार कराई गई जिसकी ऊपर की पंक्ति में अंग्रेजी भाषा में स्टेट लाइब्रेरी और नीचे रामपुर लिखा गया। इस मोहर के बीच में खत्ते नस्तालीक में कुतुबखाना रियासत रामपुर लिखा था। यह पुरानी मोहर आज भी किताबों पर देखने को मिलती है।

राष्ट्र को समर्पित रज़ा लाइब्रेरी

15 अगस्त 1947 ई को मुल्क स्वतंत्र हुआ और 1 जुलाई 1949 को रियासत रामपुर उत्तर प्रदेश सूबे में मर्ज हो गई। यह समय नवाब रज़ा अली खान का था जिन्होंने इस लाइब्रेरी को राष्ट्र को समर्पित कर दिया। साथ ही उसका नाम स्टेट लाइब्रेरी से बदलकर रामपुर रजा लाइब्रेरी (Raza Library) रख दिया गया। सन 1951 में इसके प्रबंधन के लिए ट्रस्ट बनाया गया और सारे खर्चे उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जिम्मे ले लिए।

एशिया की सबसे मशहूर लाईब्रेरी

इस समय यह लाइब्रेरी संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की देखरेख में चल रही है। रजा लाइब्रेरी को एशिया की सबसे मशहूर लाईब्रेरी होने का खिताब मिला हुआ है। ऐतिहासिक धरोहर रजा लाइब्रेरी भारतवर्ष की उन अनेक लाइब्रेरी में से एक है जो कई शताब्दियों पुरानी हैं। रजा लाइब्रेरी हिंदुस्तान की सांस्कृतिक धरोहर एवं शिक्षा का वह अनमोल खजाना है जिससे हजारों व्यक्ति प्रतिवर्ष लाभान्वित होते हैं।

वर्तमान समय में लाइब्रेरी में लगभग विभिन्न भाषाओं में 17000 पांडुलिपियां, अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू, तमिल, तेलगू, पश्तो और तुर्की में 85000 मुदित पुस्तकों का विशाल संग्रह मौजूद है।

इसके अलावा मुगल, फारसी, राजपूत, राजस्थानी, अवध और दक्षिणी शैलियों को दर्शाने वाले लगभग 5000 लघु चित्र तथा भारत ईरान और मध्य एशिया के प्रसिद्ध सुलेखकों के 3000 इस्लामी सुलेखन के नमूने यहां मौजूद हैं। इनमें अरबी भाषा में लिखी अजायबुल मखलूकात यहां मौजूद है जिसे 1283 ईस्वी में जकरिया बिन मोहम्मद अल कजबीनी ने लिखा था। मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत (फारसी) इंशा अल्लाह खान की रानी केतकी की कहानी (उर्दू), औरंगजेब आलमगीर के जमाने में अनुवाद की गई रामायण व दीवाने बाबर (तुर्की), शिराज दमिश्की का उस्तुरलाब जैसा नायाब उपकरण जो कि समंदर में यात्रा करते समय दिशा का ज्ञान करने और सूर्य और नक्षत्र की गति का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है यहां मौजूद है। इसके अलावा हजरत अली के हाथों लिखा कुरआन जो कि चमड़े पर है यहां मौजूद है।

इन तमाम ऐतिहासिक पांडुलिपियों व कलाकृतियों में छिपे सुनहरे अतीत से आमजन को रूबरू कराने के लिये रजा लाईब्रेरी की ओर से समय समय पर आयोजन कराये जाते हैं।

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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