भारत, जिसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, उसकी नींव वैशाली, बिहार में पड़ी थी। यह वह धरती है जहां लोकतंत्र का पहला बीज बोया गया और समय के साथ यह पूरे विश्व में फैल गया। लेकिन, आजादी के 76 वर्षों बाद, भारतीय लोकतंत्र गंभीर संकट का सामना कर रहा है। इसकी शुरुआत 10 अगस्त 1950 को हुई, जब पसमांदा दलित मुसलमानों से उनका अनुसूचित जाति (एससी) का आरक्षण छीन लिया गया। जहां हिंदू धोबी, चमार, नाई, पासी जैसे वर्गों का आरक्षण बरकरार रखा गया, वहीं मुस्लिम नाई, चमार, नट और बक्खो जैसे समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
बढ़ता अपराध और राजनीति
आज, भारतीय राजनीति में अपराध का बढ़ता हस्तक्षेप लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। राजनीतिक अपराधीकरण के लिए न केवल नेता बल्कि हम, मतदाता भी जिम्मेदार हैं। अक्सर वोट व्यक्तिगत लाभ, दबाव या प्रलोभन के आधार पर दिए जाते हैं। साड़ी, शराब की बोतल, या नकदी के बदले में वोट देना न केवल हमारे लोकतंत्र को कमजोर करता है बल्कि भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को सत्ता में आने का मौका भी देता है।
कर्ज तले दबता राज्य और भविष्य
आज, गलत उम्मीदवारों के चुनाव के कारण राज्य पर भारी कर्ज का बोझ है। स्थिति इतनी गंभीर है कि हर नवजात बच्चा औसतन 60-65 हजार रुपये का कर्ज लेकर जन्म लेता है। यह ऋण उन बच्चों पर क्यों डाला जाए जो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? यह हमारी वोट देने की गलतियों का परिणाम है।
वोट प्रतिशत और लोकतंत्र की चिंता
भारत में मतदान का प्रतिशत बढ़कर 50-55% हो गया है, लेकिन यह लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए पर्याप्त नहीं है। 22-25% वोट लेकर चुने गए उम्मीदवार पूरे देश पर शासन कर रहे हैं। यह सही अर्थों में लोकतंत्र नहीं है।
मतदाताओं की जिम्मेदारी
लोकतंत्र को बचाने के लिए हर मतदाता को निर्भीक होकर चरित्रवान और अच्छे सोच वाले उम्मीदवारों को वोट देना चाहिए। पार्टी या दल से अधिक उम्मीदवार की योग्यता और चरित्र पर ध्यान देना जरूरी है। ऐसे उम्मीदवार जो विधानसभाओं और लोकसभाओं की पवित्रता बनाए रखें, उन्हें चुनने की जरूरत है।
लोकतंत्र को बचाने की ताकत हमारे वोट में है। इसलिए, हमें अपने मतदान के अधिकार का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए और उन लाखों लोगों के सपनों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने आजादी के लिए बलिदान दिया।