क़ुरआन एक आसमानी किताब है। अल्लाह (ईश्वर) ने इसे इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अंतिम संदेष्टा (नबी) मोहम्मद सल्लम. पर अवतरित किया है। इसमें उल्लिखित संदेश अक्षरशः ईशवाणी हैं। इसमें फेरबदल किसी भी इंसान के लिए संभव ही नहीं है। चौदह सौ साल पहले अवतरित हुई इस किताब की ख़ूबी यह है कि यह आज भी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है।
क़ुरआन एक इंसान को बेहतरीन इंसान बनाने की पद्धति प्रस्तुत करता है। वह किसी को अपना अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं करता।
इसकी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी अल्ल्लाह ने खुद ली है। यह वह अनोखी किताब है जिसे कंठस्थ कर करोड़ों लोगों ने अपने सीने में सुरक्षित कर रखा है।
यह केवल हिन्दुस्तान के मुसलमानों को संबोधित नहीं करती है। यह सृष्टि के समस्त इंन्सानों के लिए भेजी गई है। अब यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर है कि वह इसके मार्गदर्शन में जीवन व्यतीत कर अपने जीवन को सार्थक बनाने क प्रयास करे या फिर किसी सिरफिरे की तरह सूरज को चिराग़ दिखाने की हिमाक़त करे।
सांसारिक लाभ पाने व अपने आकाओं को खुश करने के लिए क़ुरआन जैसी महान किताब की आलोचना करने वाले का अतीत बताता है कि वह इस्लाम का धुर विरोधी रहा है। क़ुरआन को आतंकवाद की शिक्षा से जोड़ने वाला अपने पद का दुरुपयोग कर वक़्फ बोर्ड की ज़मीन हड़प लेता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने क़ुरआन में अमानत में ख़यानत करने वालों का अंजाम नहीं पढ़ा है।
क़ुरआन एक इंसान को बेहतरीन इंसान बनाने की पद्धति प्रस्तुत करता है। वह किसी को अपना अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं करता। इससे लाभान्वित होने के लिए संपूर्ण किताब का खुले दिमाग से अध्ययन करना अनिवार्य है। तभी समझा जा सकता है कि कौन-सी आयत किस परिप्रेक्ष्य में उतरी है। आधी अधूरी जानकारी हमेशा नकारात्मकता की ओर ले जाती है।