मौजूदा चुनाव को देखते हुए जहां मीडिया व विभिन्न राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं का मन टटोलने की कोशिश में लगी है वहीं मतदाता असमंजस में नज़र आ रहा है। उसके सामने कमोबेश सामने कुआं पीछे खाई की सी स्थिति है। जिस पार्टी या प्रत्याशी में उसकी रुचि है वह जीतने की स्थिति में नहीं है और जिसका बोलबाला है उसे जिताकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता।
आज का मतदाता मंहगाई, भ्रष्टाचार,स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी और साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ मतदान करने का इच्छुक तो है लेकिन विकल्प सामने न होने के कारण हताश है।
सत्ता रूढ़ दल पिछली गलतियों से सबक लेने की जगह झूठे बेबुनियाद आरोप दूसरी पार्टियों पर लगाता नज़र आ रहा है। विडम्बना यह है कि शीर्ष नेतृत्व भी पुराने ज़ख्म कुरेदने में लगा है।
लगता है कि वह इतना विशवास खो चुके हैं कि जुमले फेकने की स्थिति में भी नहीं हैं। वह पूरा ज़ोर दूसरों के वादों को झूठा साबित करने में लगा रहे हैं।
तर्क, कुतर्क की राजनीति में मतदाता की मन: स्थिति समझने की न तो किसी दल को फुर्सत है न ही इच्छा शक्ति। पूरे पांच साल सत्ता का सुख भोगने के बाद जनता के समक्ष हाज़िर होने का समय आता है तो किसी समस्या के समाधान का कोई रोड मैप प्रस्तुत करने की जगह एक कप चाय या एक समय का खाना या फिर एक कंबल भेंट कर उसकी औकात बता दी जाती है। शौकीन मिज़ाज लोगों के लिए शराब तो आखिरी हथियार है ही।
- UP Bye-Elections 2024: नेता प्रतिपक्ष पहुंचे रामपुर, उपचुनाव को लेकर सरकारी मशीनरी पर लगाए गंभीर आरोप
- लोकतंत्र पर मंडराता खतरा: मतदाताओं की जिम्मेदारी और बढ़ती राजनीतिक अपराधीकरण- इरफान जामियावाला(राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पसमंदा मुस्लिम महाज़)
- एएमयू संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान को भारत रत्न देने की मांग उठी
- बाल दिवस के अवसर पर केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा “मिनी खेल दिवस” का आयोजन किया गया
- देहरादून में फिर भीषण सड़क हादसा, चेकिंग के लिए रोके वाहन से टकराकर 6 गाड़ियां पलटीं, 1 की मौत 3 घायल