ज़कात इस्लाम के पांच स्तंभों में से चौथा महत्वपूर्ण स्तंभ है। ज़कात मोमिन में माल व दौलत की मुहब्बत को कम करने का बेहतरीन ज़रिया है। यह सामाजिक समरसता व समानता स्थापित करने का माध्यम भी है। इस्लाम सरमायादारी यानि पूंजीवाद के खिलाफ है क्योंकि पूंजीवाद की धारणा अमीर को अधिक अमीर और ग़रीब को अधिक गरीब बनाती है। जिससे समाज में असमानता उत्पन्न होती है।
पूंजीवादी व्यवस्था के तहत दौलत चंद लोगों के पास इकठ्ठा होती रहती है और गरीबों के शोषण का ज़रिया बनती है।
इस्लाम एक बेहतरीन जीवन पद्धति है जो हर इंसान को बराबरी का दर्जा देती है। पूंजीवाद को खत्म करने के लिए इस्लाम में ब्याज को हराम और ज़कात को अनिवार्य किया गया है। अपने माल में से ज़कात उन लोगों को निकालना जरूरी है जिनके पास अपनी ज़रूरत से अधिक पैसा है। उन्हें अपनी बचत का ढाई प्रतिशत हर साल निकालने का हुक्म है। इस पैसे से अपने ग़रीब रिश्तेदार या पड़ोसी की मदद कर सकते हैं। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य समाज कल्याण के कार्यों में खर्च कर सकते हैं। इससे एक ओर इन्सान में दौलत की हवस कम होती है दूसरी ओर सामाजिक उत्थान में मदद मिलती है।
ज़कात उस माल पर दी जाती है जिस पर एक साल गुज़र चुका हो। उसमें सोना, चांदी, नक़दी या वह प्रौपर्टी जो व्यापार की नियत से खरीदी गई हो शामिल हैं।
हर साल रमज़ान में अरबों रुपए की ज़कात निकलती है लेकिन इसका सामूहिक प्रबंधन न होने के कारण उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती जिस मक़सद के लिए इसको अनिवार्य किया गया है। ज़कात का बड़ा हिस्सा टुकड़ों-टुकड़ों में मदरसों, ग़रीबों व रिश्तेदारों में तक़्सीम कर दिया जाता है जिससे ज़रूरत मंद हमेशा ज़रूरत मंद बना रहता है।
ज़कात के लिए बाकायदा एक विभाग बनाना चाहिए जो शहरी, राष्ट्रीय, प्रांतीय सतह पर काम करे।
ज़रूरतमंदों का रजिस्ट्रेशन किया जाए। प्राथमिकता के आधार पर लोगों को रोजगार करने के लिए मदद दी जाए जिससे ज़कात देने वाले हाथ बढ़ें और लेने वाले हाथ कम हों। शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए अलग बजट बनाया जाए जिसके तहत स्कूल, अस्पताल व अन्य जन उपयोगी संस्थान खोले जाएं।
ज़कात से ही छात्रों को स्कालरशिप देने का भी प्रबंध हो। दीनी तालीम व आधुनिक शिक्षा एक ही जगह दी जाए ताकि छात्र हाफ़िज़, क़ारी होने के साथ डाक्टर, इंजीनियर, अध्यापक भी बन सकें। तभी हम ज़कात के सही उद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे। अन्यथा अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी सामाजिक उत्थान के मूल उद्देश्य से वंचित ही रहेंगे।
मौजूदा हालात में चार छः लोग गुरुप बनाकर किसी एक व्यक्ति को रोजगार खड़ा करने में मदद कर सकते हैं।
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)