आह…..दर्सगाह !
70 साल पुराने तालीमी इदारे “दर्सगाह इसलामी” रामपुर का बोर्डिंग हाउस और खेल का मैदान प्लॉटिंग करके बेचा जा रहा है…
पिछली पीढी के बुजुर्गों और हमारे आपके अस्लाफ की महनत और क़ुर्बानी से क़ायम किये गये तालीमी इदारे को चंद टकों की ख़ातिर प्लॉटिंग करके बिकवा कर अमानत मे ख़यानत कर रहे जमात इस्लमी के ज़िम्मेदारान।
अफ़सोस कि बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों ही ना सिर्फ मुसलमान हैं बल्कि सोमो-सलात के पाबंद हैं और दीनी मामलात में लोगों की रहनुमाई का दावा भी करते हैं।
यह एक ऐसा दौर है जिसमें बच्चों के मुतक़बिल को रोशन करने के लिए हर तरफ़ शहर और गाँव में तालीम के नए नए इदारे खोले जा रहे हैं जिससे कि बच्चे दीनी और दुनयावी तालीम हासिल कर सकें। लेकिन उम्मते मुस्लिमा में एक ऐसी जमात जो हमेशा से तालीम के ऊपर ज़ोर देती रही है, अपने बरसों पुराने इदारे को चंद पैसों के लिए कुछ लोगों के हाथों बेच रही है।
इस्लामी हल्क़ों में यह ख़बर बेहद अफ़सोस के साथ पढ़ी जाएगी कि कुल हिंद शोहरत याफ़्ता इदारा ‘दरसगाह इस्लामी रामपुर’ का खेल का मैदान और बोर्डिंग हाउस को प्लॉटिंग करके बेचा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह जमात इस्लामी कि मिल्कियत है इसलिए उसे बेचने का हक़ है।
पिछले 50 साल से जो दर्सगाह ए इस्लामी, रामपुर का बोर्डिंग हाउस और बच्चों के खेल का मैदान को 1968 में रामपुर के कुछ अहलेखैर हज़रात ने खरीद कर दर्सगाह के बोर्डिंग हाउस और खेल के मैदान के लिए जमात ए इस्लामी के नाम कराया था न की बेचकर मुनाफा कमाने के लिए।
जिस मक़सद से यह जायदाद जमात इस्लामी की अमानत में दी गई थी उसमें एक बड़ा पहलू यह भी था कि यह इदारा बेरूनी तल्बा के साथ -साथ रामपुर के बच्चों को खुसूसी तौर पर तालीम ओ तर्बियत मुहैय्या करायेगा। क़ायदे में तो जिस मक़सद से इसे क़ायम किया गया था उसी मक़सद से इसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
हां… अगर जमात इस्लामी के ज़िम्मेदारां इस इदारे को चलाने के लिये अपने को ना अहल समझते हैं तो बहतर होगा कि ऐसे लोगों का इन्तख़ाब करें जो एयर कंडीशन कमरों और मोटर गाड़ियों से बाहर निकल कर आज भी दीन की ख़िदमत का जज़्बा रखते हैं और अपनी नाअहल्यत को फ़रामोश करते हुए इस बेशक़ीमती इदारे को बेचकर अपनी जिम्मेदारियों से राहे फरार इख्तियार कर लेना चाहिए।
तावीलें तो बहुत दी जा रही है लेकिन इस मामले को समझने के लिए इतना ही काफ़ी है कि जिस तरह से रामपुर जैसे छोटे से शहर मे कुछ लोगों ने हाकी के खैल में फरोग और यहाँ के बच्चों को नुमायां मुक़ाम दिलाने के लिये आधे दर्जन से भी ज़्यादा खेल के मैदान दिए
जैसे माला हाकी ग्राउंड, स्टूडेंट हॉकी ग्राउंड, यंग मैन ग्राउंड, रोहैला टाइगर हॉकी ग्राउंड वग़ैरह। बदकिस्मती से हाकी का शौक़ कंम होता चला गया और आज यह नौबत है कि यह मैदान खाली पडे हॉकी खिलाडियो की बाटजोह रहे हैं।
यह सब आज भी इन क्लबों की मिल्कियत है लेकिन क्या यह सही होगा कि क्लबों के ओह्देदारांन इन मैदानों में खेल न होने की वजह से इनकी प्लाटिंग कर दें और इस पैसे को इससे बहतर जगह पर लगाने का बहाना बना दें?
पिछली पीढी के बुजुर्गों और हमारे आपके अस्लाफ की महनत और क़ुर्बानी से क़ायम किये गये तालीमी इदारे को चंद टकों की ख़ातिर प्लॉटिंग करके बिकवा कर अमानत मे ख़यानत कर रहे जमात इस्लमी के ज़िम्मेदारान।
अफ़सोस कि बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों ही ना सिर्फ मुसलमान हैं बल्कि सोमो-सलात के पाबंद हैं और दीनी मामलात में लोगों की रहनुमाई का दावा भी करते हैं।
*यह सवाल आप अपने आप से कीजिए… ज़मीर को जगाइये और हर उस शख्स से कम से कम एक बार बात ज़रूर कीजिए जो इस बेशकीमती इदारे की खरीदो-फरोख्त कर रहा है या के टुकड़े टुकड़े होते देख रहा है….और खामोश हैं…।