बुलडोज़र दिखाकर आवाज़ दबाने की कोशिश-इमरान आज़ाद

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देश में आये दिन ऐसे फैसले होते रहते हैं जो हर किसी को पसंद नहीं आते, कुछ लोगों को यह फैसले अच्छे लगते हैं तो कुछ लोग इसके विरोध में आवाज़ बुलंद करने लगते हैं। एक लोकतान्त्रिक देश की सबसे बड़ी खूबी यही होती है कि वहां हर किसी को क़ानून के दायरे में रहते हुए किसी फैसले के खिलाफ आवाज़ उठाने की इजाज़त होती है। मगर अफ़सोस की बात यह है कि इन दिनों दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में केंद्र सरकार भी और खास तौर पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हमेशा इस कोशिश में रहती है कि न सिर्फ आवाज़ को दबाया जाए बल्कि उसे कुचल ही दिया जाए। अलबत्ता इस मामले में एक बड़ा अंतर यह नज़र आता है कि सरकार विरोध करने वालों के खलाफ अलग अलग तरीके से पेश आती है। विरोध करने वाला अगर मुसलमान है तो बहुत जल्दी उसकी पहचान भी हो जाती है, उसका घर भी बुलडोज़र से गिरा दिया जाता है और कहीं से कोई इन्साफ की उम्मीद भी नज़र नहीं आती।

विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा की इजाज़त किसी को नहीं दी जा सकती। जो लोग विरोध प्रदर्शन के नाम पर हंगामा मचाते हैं, सरकार की या आम लोगों की सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं उन्हें सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए। मगर इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि आप खुद ही जज बन जाएँ और त्वरित कार्रवाई करते हुए किसी का घर ही गिरा दें। घर गिराने के दौरान आप यह भी न सोचें कि घर उसका है भी या नहीं। एक तो यह कि भला किसी को यह परमिशन कैसे हो सकती है कि कोई किसा का सिर्फ इस बात पर घर गिरा दे कि उसने सरकार के किसी फैसले का विरोध किया है और दूसरे घर अगर गिराया भी जाता है तो भला ग़लती किसी और की और घर किसी और का कैसे गिराया जाएगा? बुलडोज़र की जो करवाई होती है उस से ऐसा लगता है कि सरकार लोगों में एक खौफ पैदा करना चाहती है ताकि कभी कोई सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने की हिम्मत ही नहीं कर सके।

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इमरान आज़ाद, लेखक

अपने ही देश में जब मुसलमानों को लगा हमारी आवाज़ बुलंद करने वाला कोई नही है तब मुसलमानों ने अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए पहली बार CAA, NRC जैसे असंवेधानिक कानून का विरोध करने सड़क पर उतरे। पूरे देश मे महीनों तक शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट चलता रहा कहीं से कोई पत्थरबाजी की घटना सामने नहीं आयी। भारत के मुसलमानों की आवाज़ दुनिया भर में पहुंचने लगी सरकार भी झुकने लगी थी लेकिन ठीक उसी समय कोरोना जैसी महामारी देश मे आ गई और सारे प्रोटेस्ट को वही रोक दिया गया उस प्रोटेस्ट के बाद मुसलमानों को लगा के लोकतांत्रिक तरीके से अगर हम विरोध प्रदर्शन करें तो हमारी बात सरकार तक पहुंच सकती है लेकिन अब उस आवाज़ को दबाने के लिए मुस्लिम समुदाय की ओर से जब भी कोई विरोध प्रदर्शन किया जाता है उसपर राइट विंग्स के लोग द्वारा पहले पत्थरबाजी कर उसका दिया जाता है फिर गोदी मीडिया द्वारा टीवी पर सिर्फ एक पक्ष की ओर से हो रही पत्थरबाजी दिखाई जाती है और मुसलमानों के खिलाफ अनाप शनाप बकना शुरू कर देतें है जिस से मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओ के मन मे नफरत पैदा हो जाए फिर उसका फायदा भाजपा अपने चुनाव में उठाए उसके बाद न्यूज़ चैनलों के ही वीडियो के आधार पर सरकार के दबाव में पुलिसया करवाई शुरू हो जाती है जिसमे सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाते है फिर आरोपी के घर पर बुलडोजर भेज दिया जाता है ये सब सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया जाता है की मुस्लिम समुदाय डर जाए और फिर कभी विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर न उतरे।

सड़कों पर उतरने में कोई बुराई नहीं है मगर सड़कों पर उतर कर अगर कोई ट्रेन में आग लगाता है , आम लोगों को परेशान करता है तो यह ग़लत माना जायेगा और ऐसे लोगों के खिलाफ करवाई होनी चाहिए मगर दिक़्क़त यह है कि यहाँ सेलेक्टिव करवाई होती है। अभी हाल ही में अग्निपथ योजना के विरोध में एक दो नहीं कई ट्रेनें जलाई गयीं मगर किसी भी उपद्रवी का घर नहीं गिराया गया मगर सिर्फ पत्थर फेंकने पर मुसलामानों के घर गिरा दिए गए। एक लोकतांत्रित देश के लिए ऐसी सेलेक्टिव करवाई उचित नहीं कही जा सकती।

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