“150 करोड़ की मस्जिद”

Date:

नमाज़ में अहमियत मस्जिद की नहीं बल्कि सजदे की होती है।

मुसलमानों के पास कुछ हो ना हो ईमान की हरारत खूब होती है। उसमें इतनी शिद्दत भी होती है कि पेट में खाना, बदन पर कपड़ा, बच्चों में तालीम और सार्वजनिक स्वास्थ की सुविधा हो ना हो, उनका ईमान हर दम जोश मारता रहता है। वो जिंदगी भर नमाज़ी भले ही ना बन सकें , जुमे को छोड़ कर बाकी वक्तों में मस्जिदें भले ही वीरान हों, लेकिन एक ही रात में डेढ़ ईंट की ही सही एक और मस्जिद ज़रूर खड़ी कर लेते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि नमाज़ में अहमियत मस्जिद की नहीं बल्कि सजदे की होती है।

फैज़ाबाद के धन्नीपुर में राम जन्म भूमि के एवज़ दी गई पांच एकड़ ज़मीन पर बनने वाली प्रस्तावित भव्य मस्जिद अभी चर्चा का विषय बनी हुई है। इस लेन देन के खिलाफ मैं पहले ही अपना मत व्यक्त कर चुका हूं, क्योंकि वो फैसला तथ्य पर नहीं बल्कि आस्था एवं भावना पर आधारित था। आज मैं उसकी बात नहीं करूंगा । आज में यह भी बात नहीं करूंगा कि इस भूमि पर दिल्ली की दो बहनों का दावा सही है या गलत और ना ही यह बात करूंगा कि ऐसी जमीन पर मस्जिद बनाने की इजाज़त शरीयत देती है या नहीं मतलब ऐसी जगह पर नमाज़ होती भी या नहीं। मैं आज इस मस्जिद पर होने वाले ख़र्च और मुसलमानों के अपने सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन को नज़रअंदाज़ कर अलग प्राथमिकताओं के पीछे अपनी जान न्योछावर करने के रुझान की बात करूंगा।

जिंदगी जब दुआ के ही भरोसे चल रही हो तो फिर किसी से दवा की उम्मीद कैसी?

हिंदुस्तान में लाखों मस्जिदें है। हर गली मोहल्ले में आप को दो चार मस्जिद दिख जाएंगी। जिस आबादी में स्कूल और अस्पताल तो छोड़िए दूध का बूथ भी नहीं है, वहां आपको हर तरफ मीनारें ही मीनारें दिखेंगी। भूख़, गरीबी और जहालत का सन्नाटा भले ही पसरा हो, कानों में चारों तरफ से अज़ान का शोर ज़रूर सुनाई दे, ऐसी हमारी तबियत बन चुकी है। जिंदगी जब दुआ के ही भरोसे चल रही हो तो फिर किसी से दवा की उम्मीद कैसी। किसी से वफा की कैसी उम्मीद, किसी के दग़ा के क्या शिकवे । अगर आप अपनी मदद आप नहीं कर सकते तो फिर इसमें किसी पार्टी या किसी हुकूमत का क्या दोष।

यह मस्जिद जितने रुपए में बनने वाली है इतनी राशि में देश के कोने कोने में सैंकड़ों कॉन्वेंट स्कूल खोले जा सकते हैं, दर्जनों स्टेट ऑफ द आर्ट अस्पताल खोले जा सकते है। लेकिन नहीं आपको अरबों की एक मस्जिद बनानी है, वो भी ऐसे गांव में जहां पर एक हजार से भी कम नमाज़ियों के लिए 15 मस्जिद पहले से ही मौजूद है। मैं मस्जिद के खिलाफ नहीं हूं।

मैं मुख़ालिफत कर रहा हूं इस रुझान की, कि जहां अपने मसायल को लेकर खड़े होने की ज़रूरत है वहां बदले की जमीन लेकर या तो आप हुकूमत के एवानों में झुक रहे हैं या फिर इस जमीन, इस पैसे से कुछ और तामीरी काम करने की बजाए सर झुकाने के लिए एक और मस्जिद बना रहे हैं।

कहते हैं कि हर तखरीब (बिखराव) के पीछे तामीर (निर्माण) का पहलू छुपा होता है। लेकिन मैं इस तामीर के पीछे तखरीब का पहलू देख रहा हूं। ईमान की हरारत एक भव्य मस्जिद तो बना देगी, हजारों सर वहां रोज सजदे में तो झुकेंगे लेकिन सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक एवं राजनीतिक एतबार से मुसलमानों को सर उठाने में हजारों साल और लग जाएंगे। मेरी तो सबसे गुजारिश है कि पहले दुनियां संवारिए, आखिरत खुद ब खुद संवर जाएगी।

    Share post:

    Visual Stories

    Popular

    More like this
    Related

    Winter Vaccation Anounced In J&K Degree Colleges

    Srinagar, December 20: The Jammu and Kashmir Government on...

    National Urdu Council’s Initiative Connects Writers and Readers at Pune Book Festival

    Urdu Authors Share Creative Journeys at Fergusson College Event Pune/Delhi:...

    एएमयू में सर सैयद अहमद खान: द मसीहा की विशेष स्क्रीनिंग आयोजित

    सिरीज़ के लेखक मुतईम कमाली की सभी दर्शकों ने...
    Open chat
    आप भी हमें अपने आर्टिकल या ख़बरें भेज सकते हैं। अगर आप globaltoday.in पर विज्ञापन देना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क करें.