बिहार में दूसरे और तीसरे दौर की वोटिंग से पहले चुनाव प्रचार में एनडीए(NDA) और महागठबंधन(MGB) के बीच एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ मची हुई है। नेता हेलिकॉप्टर पर ऐसे उड़ रहे हैं मानो ऑटो की सवारी कर रहे हों। शहर, गांव-कस्बे के लोग अपनी-अपनी राजनीतिक और जातीय सोच और प्रतिबद्धताओं के हिसाब से नेताओं को सुनने आ रहे हैं या लाए जा रहे हैं। इनमें ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो हेलिकॉप्टर देखने पहुंच जाते हैं। अब नेता चाहे जिस पार्टी का हो। आप पूछेंगे तो दांत निपोड़ते बड़ी मासूमियत से ये राज उगल भी देंगे। मगर वोट किसे देंगे तो वो बेलाग बताएंगे, किसको देंगे और क्यूं देंगे।
अब चुनाव है तो एनडीए और महागठबंधन की ओर से वादों और इरादों की झड़ी लगी है। विकास ले लो, नौकरी ले लो, शिक्षा ले लो, बेरोजगारी भत्ता ले लो, स्वास्थ्य सुविधाएं ले लो, नल से पीने का पानी ले लो, वृद्धावस्था पेंशन ले लो। 10 नवंबर तक यानी वोटों की गिनती तक जो चाहो सो ले ले। मांग लो भइया। मना थोड़े करेंगे। और इनसे भी जी नहीं भरता हो तो राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता ही खरीद लो। हर नेता दुकान लगाए बैठा है और उड़नखटोले पर अपने माल का प्रचार करता घूम रहा है। लेकिन राजनीतिक चेतना से लैस बिहार का हर जागरूक वोटर कहीं से कम नहीं है। वो नेताओं के पसीने छुड़ाए हुए हैं। पांच साल का हिसाब लेने का मौका जो है, तो काहे को गंवाई दें भइया।
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ऐसे में नेताओं की सांस अटकी पड़ी है। बीते चार हफ्ते पहले तक 31 साल जो लौंडा मोदीजी और नीतीश के आगे चींटी नजर आ रहा था, आज हाथी बनकर चिंघाड़ रहा है। एनडीए वालों की बोलती बंद किए हुए है। वो कभी विकास का स्क्वायर कट लगा रहे हैं, तो कभी जंगल-वंगल राज के लौटने का भय दिखाकर रन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सत्ता की पिच पर हांफते राजनीति के ये दिग्गज खिलाड़ी महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के आगे अब भावनात्मक मुद्दों और सांप्रदायिकता का छौंका भी लगा रहे हैं। राष्ट्रवाद को जगाने की पूरजोर कोशिश में लगे हैं ताकि ध्रुवीकरण हो सके।
इतिहास गवाह है कि बिहार की धरती ने सांप्रदायिक राजनीति करने वालों को हमेशा ही धूल चटाई है। और इस बार भी नजारा अलग नहीं है। मगर मोदजी का दिल है कि मानता नहीं। मोदीजी और नीतीश कुमार तेजस्वी की गेंद और पिच पर बैटिंग करते हुए हर गेंद पर हुक और पुल शॉट मारने की कोशिश कर रहे हैं। शायद कोई छक्का न सही चौका ही लग जाए। लेकिन ज्यादा बैकफुट में जाने पर (इतिहास में जाने पर) हिट विकेट होने का खतरा ज्यादा नजर आ रहा है। क्योंकि बिहार के करीब एक करोड़ युवा वोटर पहली बार वोट डालेंगे। जिन्हें जंगलराज समझना मुश्किल साबित हो रहा है। लेकिन तेजस्वी यादव का वादा, ‘एक कलम से 10 लाख सरकारी नौकरी की बात वो झट से समझ जा रहे हैं।‘
चुनाव प्रचार पर निगाह दौड़ाएं तो तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने इसबार एक दिन में 19 जनसभाएं कर 2015 के चुनाव में लालू यादव के 16 सभाओं का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। तेजस्वी कहते हैं, ‘चुनाव प्रचार में अकेले ही एनडीए के 30-30 हेलिकॉप्टर का मुकाबला कर रहे हैं।‘ अपनी सभाओं में उमड़ते जनसैलाब को संभालने के लिए तेजस्वी को या तो खुद आगे आना पड़ रहा है या मंच से कहना पड़ता है, ‘हेलिकॉप्टर के नजदीक मत जाइए। एक गो कंकड़ भी लग गया तो सीधे नीच्चे आ जाएगा।‘ जनता उनकी बातों को गौर से सुनती भी है और मानती भी है।
वहीं मोदीजी अबतक बिहार के दो चरणों के चुनाव के लिए 10 सभाएं कर चुके हैं। नीतीश एक दिन में 4 से 6 सभाएं कर रहे हैं। बिहार आनेवाले एनडीए के केंद्रीय मंत्री एक दिन में 2 से 3 सभाएं ही कर पा रहे हैं। इसकी वजह है कि भीड़ नहीं आ रही है। लोगों में एनडीए के लिए जोश और उत्साह ठंडा है। कई बार तो नीतीश कुमार समेत एनडीए के दूसरे कद्दावर नेताओं के सामने ही भीड़ ने लालू यादव जिंदाबाद के नारे लगा दिए हैं। हाय-हाय, मुर्दाबाद के नारे तो पहले से ही लग रहे हैं।
अगर हम 2015 के चुनाव प्रचार को देखें तो उस वक्त ताजा-ताजा प्रधानमंत्री बने मोदीजी में गजबे का उत्साह नजर आता था। बिहार में सबको याद है कि मोदीजी ने आरा की रैली में किस नाटकीय अंदाज में बिहार के लिए सवा लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया था और बाद में विशेष राज्य का दर्जा देने का भरोसा भी दे बैठे थे। मगर बिहार आज भी खाली हाथ है। 2015 में मोदीजी ने बिहार में पांच परिवर्तन रैली समेत 31 रैलियां की थी, जबकि सोनिया गांधी ने 4 और राहुल गांधी ने 12 रैली की। यानी कांग्रेस की कुल 16 रैली ही हुई थी जो मोदीजी के मुकाबले करीब आधी रही थी। पार्टी की बात करें तो बीजेपी ने 2015 में कुल 850 रैलियां की थीं। इनमें से तब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 85 रैलियां कीं और सुशील मोदी ने 182 और मंगल पांडे ने 80 रैलियां की थी। आज चुनाव मैदान से अमित शाह गायब हैं। सुशील मोदी और मंगल पांडेय कोरोना के चलते आइसोलेशन में हैं।
2015 में नीतीश कुमार और लालू यादव ने महागठबंधन बनाकर बिहार के चुनाव मैदान में ताल ठोंकी थी। तब नीतीश कुमार ने 230 रैलियों को संबोधित किया, वहीं आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने 251 रैलियों को संबोधित किया था। लिहाजा नतीजा भी चौंकानेवाला आया। बिहार की 243 सीटों में से महागठबंधन में शामिल आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें यानी कुल 178 सीटें आईं थीं। जबकि इतनी ताकत लगाने के बाद भी बीजेपी को 243 सीटों में से महज 53 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई थी। मजे की बात ये है कि 2015 में भी सभी न्यूज चैनलों के चुनावी सर्वे में बीजेपी की सरकार बन रही थी और एनडीटीवी तो दोपहर तक मोदी जी को जीतता हुआ बता रहा था। जिसके लिए बाद में उन्होंने माफी भी मांगी।
बहरहाल अब तीसरे चरण के मतदान के लिए रैलियों का एक नया दौर देखने को मिलेगा। खबर है कि तेजस्वी आखिरी के 4-5 दिनों में हर दिन 15 जनसभाओं को संबोधित करेंगे, वहीं उनका साथ देने राहुल गांधी भी एकबार फिर बिहार आएंगे। राहुल गांधी अगले दो-तीन दिनों में 4 से 5 सभाओं को संबोधित कर सकते हैं। मोदीजी भी चुनाव के आखिरी दौर में अपनी ताकत लगाने में पीछे नहीं रहेंगे। मोदीजी अबतक चुनाव प्रचार में बिहार में लालटेन युग, जंगलराज और किडनैपिंग राज की वापसी का भय दिखाकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं तेजस्वी यादव ने गांव-गांव में लटके नल जल योजना के पाइपों की खरीद में भारी घोटाले और योजना की नाकामी के बाद महंगाई को फोकस में ला दिया है। तेजस्वी अब जनसभाओं में आलू-प्याज का माला पहनकर आते हैं और एनडीए पर कटाक्ष करते हैं, ‘आलू 50 रुपए, प्याज 80 रुपए दिखाई नहीं देता है। पहले स्लोगन देते थे, महंगाई डायन खाए जात है। तो आज क्या महंगाई डायन नहीं रही, भौजाई हो गई है?‘
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