एक ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में जहां ईमानदारी और समर्पण अक्सर दुर्लभ होते हैं, डॉ. शकील अहमद खान समर्पण और सेवा के प्रतीक के रूप में उभरते हैं। महात्मा गांधी ने सही कहा था, “स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप खुद को दूसरों की सेवा में खो दें।” डॉ. खान इस सिद्धांत का जीवंत उदाहरण हैं। बिहार के कटिहार जिले के कदवा विधानसभा क्षेत्र से दो बार के विधायक के रूप में, उनकी छात्र नेता से एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती बनने की यात्रा दृढ़ता और निःस्वार्थ नेतृत्व की प्रेरक कहानी है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
1 जनवरी 1965 को कटिहार जिले के बरारी प्रखंड के काबर कोठी गाँव में जन्मे डॉ. शकील खान की विनम्र शुरुआत ने उनके विश्व दृष्टिकोण को आकार दिया और उनकी समुदाय के प्रति गहरी जिम्मेदारी की भावना को जगाया। उनके पिता शोएब खान और माता क़मर जहां ने उनके शुरुआती शिक्षा को गाँव में ही सुनिश्चित किया। लेकिन डॉ. खान की ज्ञान की प्यास उन्हें पटना विश्वविद्यालय ले आई, जहाँ से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उनकी शैक्षणिक यात्रा दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) तक जारी रही, जहाँ से उन्होंने एम.ए., एम. फिल और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, जिससे उनके जीवन में दानीश्वरी और राजनीति का समन्वय स्थापित हुआ।
राजनीतिक शुरुआत और उभरता क़द
डॉ. खान की राजनीति में शुरुआत उनके छात्र जीवन के दौरान हुई। उनकी नेतृत्व क्षमता जल्दी ही निखर कर सामने आई, जब वे नव्वे के दशक की शुरुआत में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) के उपाध्यक्ष फिर अध्यक्ष चुने गए। हालांकि उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) से शुरू की थी, लेकिन उन्होंने 1999 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) का दामन थाम लिया। कांग्रेस में उनके प्रवेश के साथ ही उनके राजनीतिक करियर का एक नया दौर शुरू हुआ, जो उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सचिव के पद तक ले गया और बाद में पश्चिम बंगाल के प्रभारी के रूप में उनकी नियुक्ति हुई।
विधायी उपलब्धियाँ और नेतृत्व
डॉ. खान का विधायी करियर 2015 में तब शुरू हुआ जब वे कदवा विधानसभा सीट से विधायक चुने गए, जहाँ उन्होंने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चंद्र भूषण ठाकुर को 5,799 वोटों के अंतर से हराया। कदवा, बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से एक, दंडखोरा और कदवा सामुदायिक विकास खंडों को शामिल करता है, जो राज्य की राजनीतिक मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। 2020 में, डॉ. खान ने फिर से जीत हासिल की, जिससे उनके क्षेत्र में उनकी पकड़ और प्रतिबद्धता को और अधिक मजबूती मिली।
चुनावी जीत के अलावा, डॉ. खान के योगदान को व्यापक रूप से सराहा गया है। सितंबर 2022 में उन्हें बिहार विधान सभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति का सभापति नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उनके अथक कार्य और राज्य के विधायी प्रक्रिया में उनके समर्पण ने उन्हें मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन में “सर्वश्रेष्ठ विधायक” के प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया। यह सम्मान, जो देश के शीर्ष 75 विधायकों को दिया गया, उनके क्षेत्रीय विकास में अपार योगदान और विधानसभा में प्रगतिशील मुद्दों के प्रति उनके दृढ़ समर्थन का प्रमाण है।
ईमानदारी और दृष्टिकोण के नेता
कटिहार ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार में एक स्वच्छ छवि वाले नेता के रूप में डॉ. खान की प्रतिष्ठा स्थापित है। 3 जून 2023 को कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता के रूप में उनकी नियुक्ति इस बात का प्रमाण है कि उनकी पार्टी और जनता में उनके प्रति कितना विश्वास और भरोसा है। उनके नेतृत्व को कांग्रेस की बिहार में, खासकर सीमांचल क्षेत्र में, अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ उनसे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसी पार्टियों के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने की उम्मीद है।
हाल ही में देश के सर्वश्रेष्ठ विधायकों में से एक के रूप में उनकी मान्यता उनके कठिन परिश्रम और समर्पण का प्रमाण है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि अपने क्षेत्र और अपने लोगों के प्रति उनकी चिंता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह अभूतपूर्व सम्मान उनकी मेहनत और लगन का परिणाम है। यह साबित करता है कि दुनिया ने डॉ. शकील की अपने क्षेत्र के प्रति चिंता और जनता के लिए उनके दर्द को पहचाना है।
निष्कर्ष
कटिहार के एक छोटे से गाँव से बिहार के विधायिका के गलियारों तक डॉ. शकील अहमद खान की यात्रा दृढ़ता, बुद्धिमत्ता और जनसेवा के प्रति अटूट समर्पण की कहानी है। जैसे-जैसे वे नेतृत्व करते हैं और प्रेरित करते हैं, उनका काम और उपलब्धियाँ यह दर्शाती हैं कि सच्ची जनसेवा क्या होनी चाहिए।
एक ऐसे दौर में जब राजनीति अक्सर नकारात्मकता में डूब जाती है, डॉ. खान का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि ईमानदारी और समर्पण के साथ, कोई भी व्यक्ति अपने सेवा क्षेत्र के लोगों के जीवन में सार्थक बदलाव ला सकता है। खुशकिस्मती से मेरा गांव कदवा विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है और मैं यह बात फख्र से कह सकता हूं कि हमारे माननीय विधायक डॉक्टर शकील अहमद खां एक ऐसे चराग हैं जिन्होंने राजनीतिक अनिश्चिताओं के अंधेरे में हमारी राहनुमाई की है।
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.)
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