मदरसों के छात्रों को जबरन स्कूलों में स्थानांतरित करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के खिलाफ: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

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नई दिल्ली, 20 जुलाई: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (JIH) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मौलाना वलीउल्लाह सईदी फलाही ने उत्तर प्रदेश में विभिन्न हथकंडों द्वारा धार्मिक मदरसों की स्थिति और पहचान को प्रभावित करने के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र में हस्तक्षेप करने के प्रयासों की कड़ी निंदा की।

मीडिया को जारी बयान में उन्होंने कहा कि “धार्मिक शिक्षा न केवल प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है बल्कि एक बेहतर समाज के लिए आवश्यकता भी है।” ऐसी स्थिति में, न तो सरकार और न ही सरकारी संस्थानों को यह नैतिक और संवैधानिक अधिकार है कि वे इस्लामी मदरसों में अपनी मर्जी से पढ़ रहे छात्रों को जबरन हटाकर दूसरे स्कूलों में स्थानांतरित कर दें।

मदरसों में NCPCR जैसी संस्थाओं का हस्तक्षेप एक गैरकानूनी और असंवैधानिक

संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत, अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने का मौलिक अधिकार है। इसी तरह, आरटीई अधिनियम ने भी मदरसों को अपनी व्यवस्था स्वतंत्र रूप से चलाने का अधिकार दिया है और छात्र इसका लाभ उठा सकते हैं। ऐसे में मदरसों में NCPCR जैसी संस्थाओं का हस्तक्षेप एक गैरकानूनी और असंवैधानिक कृत्य है । बच्चों की वास्तविक समस्याओं को नजरअंदाज कर यह संस्था अनावश्यक रूप से ऐसे मामले में हस्तक्षेप कर रही है जो इसके दायरे से बाहर है।

इस मौके पर मौलाना वलीउल्लाह सईदी फलाही ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस मुद्दे पर जारी अपने असंवैधानिक और शिक्षा विरोधी सर्कुलर को वापस लेने की भी मांग की, जिसके तहत जिला अधिकारियों को गैर-अनुमोदित मदरसों (सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में ऐसे 8449 मदरसे हैं) के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित का निर्देश दिया गया है। मदरसों की सेवाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि “हमारे देश में, जहां लाखों लोग रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं, मदरसा अरबिया लाखों बच्चों को मुफ्त भोजन और आवास के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है।” और अपनी प्रभावी और स्थिर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से, इसने कई पीढ़ियों से महत्वपूर्ण लोगों को तैयार किया है जिन्होंने देश और मानवता की सेवा की है, जिनमें स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता भी शामिल हैं।

इस पृष्ठभूमि में, राज्य सरकार का यह आदेश न केवल मदरसों की स्थिर ऐतिहासिक व्यवस्था को प्रभावित करने का एक शर्मनाक प्रयास है, बल्कि लाखों छात्रों और उनके अभिभावकों के अधिकारों पर एक असंवैधानिक हस्तक्षेप भी है। मौलाना ने देश के सभी न्यायप्रिय नागरिकों से अपील की है कि वे इस एकतरफा क्रूर कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाएं और इसे रोकें।

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