क्या प्रकृति बदला ले रही है? – एस एम काज़िम

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पहाड़ों पर बाढ़ और लगातार भयावह भूस्खलन इसी ओर संकेत कर रहा है। वर्तमान में इस भूस्खलन का कारण ज्यादातर भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद् हिमालय पर होने वाले अविवेकी निर्माण और खनन कार्यों को दोष दे रहे हैं।

इंसान जब से पैदा हुआ है तब से जीवित रहने के लिए प्रकृति के साथ एक सकारात्मक समन्वय स्थापित करता आया है, हां कभी कभी विपरीत मौसमों जैसे अधिक गर्मी, ठंड और भारी बारिश के साथ जीवित रहने के लिए संघर्ष भी करता रहा है।

मानव इतिहास के प्रारम्भिक दौर में मानुष को प्रकृति के गुलाम के रूप में माना जाता था। उसके रहन-सहन, खान-पान, वस्त्र , मकान, निवास क्षेत्रों, व्यवसायों यहां तक कि परम्पराओं आदि सभी पर प्रकृति का पूर्ण अधिकार था। मनुष्य प्रकृति के लिए एक आज्ञाकारी पुत्र की तरह था।

लेकिन पिछले लगभग दो सौ वर्षों से मनुष्य ने उद्योग और तकनीकी में अद्भूत विकास करके प्रकृति पर विजय पाने का मूर्खतापूर्ण प्रयास किया है। जो नदियां अपने क्रोध से मानुष को डराती रही हैं उसने उसके गले में लगाम डाल कर उस के जल के प्रवाह को रोक कर बिजली बनाने और खेती में उसके पानी को मोड़ कर साबित किया के मनुष्य प्रकृति का गुलाम नहीं है। आकाश छूते पहाड़ों का सीना चीर कर उनसे रास्ते बना कर, पहाड़ों में गहरी और लंबी सुरंगें बना कर मनुष्य ने प्रकृति पर अपनी विजय की घोषणा कर दी है। सुंदरता की मूरत हिमालय में पर्यटन की सम्भावनायें तलाश करने वाले लालची इंसान ने इस के सीने को काट कर अनगिनत भवन होटल बना कर इतना अधिक बोझ इस पर डाल दिया कि यह अब कराहने लगा है।

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लेकिन इस सब में इंसान भूल गया कि प्रकृति शांत नहीं रहती, वह कभी आराम नहीं करती। ऊंचे पहाड़ों पर सडकें, होटल, मकान बनाते समय इंसान भूल गया के यह पहाड़ उसी प्राकृति का सीना है जो पल भर के लिए आराम में जरूर है मगर खामोश नहीं है।

Syed Mohd Kazim
सैय्यद मोहम्मद काज़िम

पिछले दो हफ्तों में प्राकृति ने हल्की सी करवट बदली है, तो पहाड़ पर बने मकान ताश के पत्तों की भांति लुढ़क रहे हैं और नदियों के रौद्र रूप ने इंसान को उसकी औक़ात दिखा दी है और एहसास दिला दिया है कि प्रकृति कभी आराम नहीं करती है।

यह एहसास जितना जल्दी हमें हो जाए बेहतर है कि प्रकृति के आंचल के तले रह कर छाया मिल सकती है मगर इस आंचल को फाडने की कोशिश ना करें, प्रकृति जितना अनुमति दे उतना आंचल ही पकड़ें नहीं तो मनुष्य खुद प्रलय का जिम्मेदार होगा।

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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