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Mukesh 100th birth anniversary: सरल होना बहुत कठिन है। सिर्फ नकसुरा होने से कोई मुकेश नहीं हो जाता- अमिताभ श्रीवास्तव - globaltoday

Mukesh 100th birth anniversary: सरल होना बहुत कठिन है। सिर्फ नकसुरा होने से कोई मुकेश नहीं हो जाता- अमिताभ श्रीवास्तव

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हिंदी फिल्म संगीत में रफ़ी, किशोर और मुकेश की तिकड़ी दिलीप कुमार, देव आनंद और राजकपूर की तिकड़ी की ही तरह बेमिसाल और बाकमाल है । मुकेश( पूरा नाम मुकेश चंद्र माथुर) अपने बाक़ी दोनों दिग्गज साथियों मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार के बीच अपनी सहज गायकी की वजह से बिल्कुल अलग चमक रखते हैं।

22जुलाई 1923 को जन्मे मुकेश की आज सौवीं सालगिरह है। मुकेश के पास रफ़ी जैसी विस्तृत रेंज नहीं थी जिसमें बैजू बावरा के ठेठ शास्त्रीय गानों से लेकर शम्मी कपूर के लिए गाये याहू ब्रांड गाने शामिल है, न ही उनके पास किशोर कुमार की यॉडलिंग की प्रतिभा , खिलंदडपन और मस्ती थी। लेकिन उनकी समूची शख़्सियत की सादगी उनकी आवाज़ में ढल कर जिस तरह सामने आई, उसके असर से मुकेश के गाये गाने सिर्फ और सिर्फ मुकेश की आवाज़ के लिए बने लगते हैं।

साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में जन्मी संगीत प्रेमी पीढ़ी के लिए तो प्रेम में विरह, अलगाव, अकेलेपन और दिल टूटने की पीड़ा की अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम और मरहम हुआ करते थे मुकेश के दर्द भरे गाने।

राजकपूर की फिल्म आवारा ने भारत के बाहर तब के साम्यवादी देशों में जो लोकप्रियता हासिल की थी, उसमें एक बड़ा योगदान मुकेश के गाये शीर्षक गीत आवारा हूँ का था।

mukesh with rajkapoor 1

मुकेश के गाने मेरा जूता है जापानी और आवारा हूँ सोवियत रूस के समाज में आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे।

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मुकेश भारत के पहले ग्लोबल सिंगर

Amitabh Srivastav
अमिताभ श्रीवास्तव, लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार

एक तरह से मुकेश भारत के पहले ग्लोबल सिंगर कहे जा सकते हैं। राजकपूर की आवाज़ तो वह थे ही, दिलीप कुमार और मनोज कुमार के लिए गाये उनके गाने यादगार हैं। यहूदी और मधुमती में दिलीप कुमार पर फ़िल्माये मुकेश के गाने याद करिये। कल्याण जी आनंद जी के संगीत निर्देशन में इंदीवर का लिखा और मुकेश का गाया सरस्वती चंद्र का गाना चंदन सा बदन, चंचल चितवन कितना खूबसूरत प्रेमगीत है।

योगेश के लिखे और सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में बने रजनीगंधा के गाने पर तो उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था- कई बार यूँ भी देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है, मन तोड़ने लगता है। योगेश, सलिल चौधरी और मुकेश ने राजेश खन्ना की फिल्म आनंद के इस गाने में क्या जादू किया है- कहीं दूर जब दिन ढल जाए, साँझ की दुल्हन बदन चुराये चुपके से आए

ग़ैर फिल्मी योगदान

मुकेश का ग़ैर फिल्मी योगदान रामचरित मानस का गायन है। जयदेव के संगीत निर्देशन में कैफी आज़मी की ग़ज़ल मुकेश की आवाज़ में सुनिये- तुझको यूँ देखा है यूँ चाहा है यूँ पूजा है, तू जो पत्थर की भी होती तो खुदा हो जाती।

mukesh 1

मुकेश की गायकी की ख़ासियत सरलता थी और सरल होना बहुत कठिन है। सिर्फ नकसुरा होने से कोई मुकेश नहीं हो जाता।

नोट:- यह लेख वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव की फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।

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