दुनिया को दिया तोहफ़ा ऊपर वाले ने वापस ले लिया 

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वे दुनिया को भगवान का दिया विशेष तोहफ़ा थीं। क्योंकि वे एक चमत्कार थीं, क्योंकि उनके कंठ में सरस्वती का वास था, क्योंकि वे भारतीय संगीत का पर्यावाची थीं, क्योंकि वे लता मंगेशकर थीं। उनके बारें में लिखना काफ़ी तकलीफ़देह है। लेकिन इंसान को एक दिन इस दुनिया से जाना ही पड़ता है और आज 6 फरवरी 2022 को 92 साल की उम्र में लता जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।    

दुनिया में इतनी वे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका और कोई दूसरी नही हुई। बेचैन आशिक, जीवन के संघर्ष से जूझ रहा इंसान, सुकून के कुछ पल ढूंढने वाले लोग और थोड़ी देर के लिये खुद को भुला देने की जरूरत महससू करने वाले इंसान, सब को लता की आवाज शिद्दत से सहारा देती है।  हिंदी फिल्म की अभिनेत्रियों में यह धारणा बन गयी थी कि लता जी ने जिसके लिये भी पार्शव गायन कर दिया वह हिट हो जाएगी। अभिनेत्रियों की पीढ़ियां आती रहीं और जाती रहीं लेकिन सबको आवाज़ लता मंगेशकर की ही चाहिये होती थी।

28 सितंबर 1929 को इंदौर में पैदा हुई लता(Lata Mangeshkar) ने अपने पिता दीनानाथ जी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पाँच साल की थी। 13 साल की उम्र में पिता का निधन हो गया। इस कारण घर की आर्थिक जिम्मेदारी उन पर ही आ गयी थी।लता जी को भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पडा़। कई संगीतकारों ने तो आपको शुरू-शुरू में पतली आवाज़ के कारण काम देने से साफ़ मना कर दिया था।लता ने फिल्मों में जब प्रवेश किया तब नूरजहाँ, जोहरा बाई अंबाले वाली, राजकुमारी और शमशाद बेगम जैसी भारी आवाजों वाली गायिकाओं का सिक्का चलता था। लता मंगेशकर ने अपने संगीत सफर की शुरुआत मराठी फिल्‍मों से की। इन्‍होंने मराठी फिल्‍म ‘किटि हासल’ (1942) के लिए एक गाना गाया, मगर अंत समय में इस गाने को फिल्‍म से निकाल दिया गया। 1942 में लता जी को मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला-गौर’ में एक छोटा सा किरदार भी दिया था जिसमे उन्होंन एक गाना भी गाया था।इन्‍होंने हिन्‍दी भाषा में पहला गाना ‘माता एक सपूत की ‘दुनिया बदल दे तू’ मराठी फिल्‍म ‘गाजाभाऊ’ (1943) के लिए गाया। 

हिंदी फिल्मों में संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने लता को ‘मजबूर’ (1948) पहला ब्रेक दिया

हिंदी फिल्मों में संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने लता को ‘मजबूर’ (1948) पहला ब्रेक दिया। इस फिल्म के गीत “दिल मेरा तोडा,मुझे कही का ना छोड़ा” गाने से लता को पहचान मिली थी। 1949 में लता जी ने लगातार 4 हिट फिल्मों में गाने गए अब सबका ध्यान उनकी ओर गया। और सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित होने लगा।  1949 में जिन हिट फिल्मों में उन्होंने गाया वे थीं,बरसात, दुलारी, अंदाज व महल। महल के गीत आएगा, आएगा, आने वाला आएगा। को रिलीज़ हुए 73 साल हो गए हैं लेकिन आज भी उसकी लोकप्रियता बरकरार हैं।  

इसके बाद तो सफलता बढ़ बढ़ के लता के कदम चूमने लगी। एक के बाद एक बेमिसाल और यादगार गाने उनकी ढोली में आते गए। लता मंगेशकर ने पहली बार 1958 में बनी ‘मधुमती’ के लिए सलि‍ल चौधरी द्वारा संगीतबद्ध किये गए गीत ‘आजा रे परदेशी’ के लिए ‘फिल्‍म फेयर अवार्ड फॉर बेस्‍ट फिमेल सिंगर’ का अवॉर्ड जीता। और फिर अगले आठ साल , यानी 1966 तक उन्हेंहर साल ये अवार्ड मिलता रहा। फिल्म संगीत के सबसे प्रतिष्टित इस अवार्ड पर उनका एकछत्र अधिकार हो गया था। 1969 में उन्होंने विनम्रता के साथ ये अवार्ड लेना बंद कर दिया। लेकिन साल 1990 में फिल्म लेकिन के लिये उन्हें यह अववार्ड लेने के लिये राज़ी कर लिया गया इस तरह 61 साल उम्र में फिल्म फेयर का अवार्ड हासिल करने वाली सबसे बुजुर्ग गायिका बन गयीं।  

इक़बाल रिज़वी, वरिष्ठ पत्रकार,लेखक और कहानीकार
इक़बाल रिज़वी, वरिष्ठ पत्रकार,लेखक और कहानीकार

लता जी को अपने जीवन का पहला नेशनल अवार्ड  परिचय फिल्म के लिए मिला था। उन्होंने 3 नेशनल फिल्म अवार्ड 972,1974 और 1990 में हासिल किये। अपने लंबे कैरियर में लता ने गीत, गज़ल, भजन, कव्वाली, मर्सिया सहित सभी तरह के गायन के लिये अपनी आवाज का जादू दिखाया। गीत चाहे शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो, पाश्चात्य धुन पर आधारित हो या फिर लोक धुन की खुशबू में रचा-बसा हो। हर बार लता ने सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर दिया।   

बहुत सी बातों का लता के दिल पर गहरा असर पड़ता था और वे अपने ढंग से ही उस पर प्रतिक्रिया देती थीं। लता महज एक दिन के लिए स्कूल गई थी। इसकी वजह यह रही कि जब वह पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा भोसले को स्कूल लेकर गई तो अध्यापक ने आशा भोसले को यह कहकर स्कूल से निकाल दिया कि उन्हें भी स्कूल की फीस देनी होगी। बाद में लता ने निश्चय किया कि वह कभी स्कूल नहीं जाएंगी। हालांकि बाद में उन्हें न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी सहित छह विश्वविद्यालयों में मानक उपाधि से नवाजा गया। 

लता मंगेशकर ने कितने गाने गाए, कितनी भाषाओं में गाए कितने संगीतकारों के लिए गाया कितने दूसरे गायकों के साथ गाया यह तथ्य कीर्तिमान के रिकार्ड में दिलचस्पी रखने वालों के लिये तो अहम हो सकता है लेकिन लता मंगेशकर का मूल्यांकन करने के लिये ऐसे रिकार्ड बेमानी हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपनी मधुर आवाज से जो मानक स्थापित किया हैं,वहाँ तक कोई नहीं पहुँच सकता बात बस इतनी सी है कि प्राकृति ने दुनिया को लता के रूप में एक ऐसा तोहफा दिया जिसकी दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है।  

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