बिहार(Bihar) में रोजगार के सवाल पर पहले ही नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) में वाकयुद्ध जारी था लेकिन आज वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बीजेपी का चुनाव संकल्प पत्र जारी करते हुए हरेक को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन देने का एलान कर बिहार में सियासी भूचाल ला दिया है। विपक्ष अब बीजेपी से सवाल पूछ रहा है कि कोरोना का जो वैक्सीन आज वजूद में ही नहीं है उसे मुफ्त में बांटने का वादा कर क्या बीजेपी, वोटों को खरीदने की कोशिश कर रही है? विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी ‘वोट दो, वैक्सीन देंगे’, कहकर मौत का सौदा कर रही है। और क्या चुनाव के बाद मुफ्त वैक्सीन का वादा विदेश से कालाधन आने पर सबको 15-15 लाख मिलने के वादे जैसा ही जुमला साबित होगा? क्योंकि मोदीजी पहले ही एलान कर चुके हैं कि कोरोना के वैक्सीन पर काम तो जारी है लेकिन अगले एक साल तक इसके आने की संभावना नहीं है। ऐसे में विपक्ष अब हमलावर है और बढ़-चढ़कर एनडीए पर कोरोना वैक्सीन के राजनीतिकरण का आरोप लगा रहा है।
दरअसल महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) ने जबसे सरकार बनने की सूरत में पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख युवाओं को स्थायी नौकरी देने का वादा किया है, नीतीश और बीजेपी की नींद उड़ गई है। इस वादे के बाद तो तेजस्वी की सभा में जनसैलाब उमड़ने लगा है। नीतीश कुमार ने तो पहले तेजस्वी के इस दावे की ये कहकर खिल्ली उड़ाने की कोशिश की, ’10 लाख नौकरी के के लिए पैसवा कहां से लाओगे? ये तो हो ही नहीं सकता। पैसवा ऊपर से आएगा या जेल से आएगा? या फिर नकली नोट छापोगे?’ लेकिन लगता है कि नीतीश का ये दांव उल्टा पड़ गया और बीजेपी ने इसे भांप लिया। तभी आनन-फानन में बीजेपी ने नहले पे दहला मारते हुए अपने संकल्प पत्र में 10 लाख की जगह 19 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराने का गगनचुंबी वादा कर डाला।
दरअसल नीतीश के तेजस्वी पर, ‘पैसवा कहां से लाओगे’ के तंज के बाद जब बीजेपी नेताओं के सामने ही हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगने लगे, उनके काफिले को काले झंडे दिखाए जाने लगे तो उन्हें होश आया कि चुनाव तो हाथ से निकलता जा रहा है।
ऊपर से नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ये भी बता रहे थे कि बिहार का कुल बजट 2 लाख 11 हजार करोड़ के करीब है। ऐसे में अगर 10 लाख युवाओं को और रोजगार दिया जाएगा तो सरकार का आधा बजट यानी 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा तो वेतन देने में ही चला जाएगा। फिर विकास का दूसरा काम कहां से होगा?
लेकिन तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) ने नीतीश कुमार और सुशील मोदी के इन आंकड़ों की हवा निकाल दी है। तेजस्वी कहते हैं कि बिहार में इस वक्त 4 लाख से ज्यादा पद रिक्त है। जिसका बजट में पहले से प्रावधान रखा गया है। साथ ही राज्य सरकार की नाकामी की वजह से हर साल बजट का 40 फीसदी पैसा खर्च ही नहीं हो पाता है। लिहाजा उसे हर साल 80 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा सरेंडर करने पड़ते हैं। साथ ही नीतीश राज में हुए 7 बड़े घोटाले में 30 हजार करोड़ रुपए की लूट हुई है, उसकी भी वसूली होनी है। जो राजस्व को हासिल करने का एक और बड़ा साधन होगा। ऐसे में सरकार बनने की सूरत में पहली कलम चलाकर 10 लाख युवाओं को स्थायी नौकरी देना कोई रॉकेट साइंस नहीं होगा। और अब बीजेपी ने भी अपने संकल्प पत्र में 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा कर एक तरह से तेजस्वी के दावे पर मुहर लगा दी है।
बीजेपी की घबराहट और हड़बड़ाहट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने अपने संकल्प पत्र में 19 लाख रोजगार के साथ ही 3 लाख शिक्षकों की बहाली का वादा भी ठोंक दिया है। उनके वादों में 2022 तक गरीबों को 30 लाख मकान और कृषि कानूनों से नाराज किसानों और आढ़तियों को खुश करने के लिए दलहन की खरीदारी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के एलान का भी वादा है। लेकिन बीजेपी का ये वादा कांग्रेस के बेरोजगारों को 1500 रुपए महीने बेरोजगारी भत्ता देने और किसानों के ऋण माफ करने और बिजली बिल हाफ करने के वादे के सामने कमजोर ही नजर आ रहे हैं।
पक्ष और विपक्ष के वादे के बीच एनडीए के घटक दल एचएएम के जीतनराम मांझी ने शराबबंदी कानून को लागू किए जाने को लेकर सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जता दी है। उनका कहना है कि बिहार में शराब की नदियां बह रही हैं और एक-दो बोतल खरीदने वाले गरीबों को जेल में डाल दिया जाता है लेकिन अमीरों को कोई नहीं पकड़ता। बड़ी गाड़ियों में भरकर लाई जाने वाली शराब और उसकी बिक्री पर कोई रोक-टोक नहीं है। हालांकि मांझी शराबबंदी की नीति का तो समर्थन करते हैं लेकिन कहते हैं कि इसे लागू करने में हो रही गड़बड़ियों को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। ताकि इस बहाने गरीबों को तंग ना किया जा सके।
इन तमाम विरोधभासों के बीच अब बिहार की धरती पर नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सभा होने वाली है। जिनके भाषणों से बिहार में चुनाव से पहले एक नई बहस की शुरूआत हो सकती है। बीजेपी जहां इन सभाओं में अपने आजमाए हुए भावनात्मक मुद्दों वाले नुस्खों की तरफ चुनाव का रूख मोड़ने की कोशिश करेगी, वहीं कांग्रेस इसे विकास, रोजगार और खेती-किसानी से भटकने नहीं देने पर पूरा जोर लगाएगी। लेकिन इन सबके बीच मोदीजी को एक सवाल का जवाब भी देना ही होगा कि 2015 में आरा की सभा में उन्होंने जिस सवा लाख करोड़ के विशेष पैकेज का एलान किया था उसका क्या हुआ? और उससे भी बड़ा सवाल, ‘बार-बार वायदे के बाद भी बिहार को अबतक विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया है?’