नई दिल्ली, 20 सितम्बर: महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) आज बुधवार को लंबी चर्चा के बाद तो-तिहाई बहुमत से लोकसभा से पास हो गया। इस बिल के समर्थन में 454 और विरोध में सिर्फ़ 2 वोट पड़े। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला (Om Birla) ने पर्ची से वोटिंग कराई। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी और औरंगाबाद से सांसद इम्तियाज जलील ने महिला आरक्षण बिल के विरोध में वोट किया।
महिला आरक्षण बिल को लेकर जमाअत-ए-इस्लामी(JIH) हिंद ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। जमात का कहना है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित महिला रिजर्वेशन बिल की बहुत जरूरत थी। अपितु, विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा,”एक मजबूत लोकतंत्र के लिए, सभी समूहों और वर्गों के लिए शक्ति के साझाकरण में प्रतिनिधित्व पाना महत्वपूर्ण है। आज़ादी मिलने के 75 साल बाद भी, संसद और हमारी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी निराशाजनक है। उनकी संख्या को अनुपात तक लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। महिला आरक्षण विधेयक इस दिशा में एक अच्छा कदम है। दरअसल, यह काफी पहले आ जाना चाहिए था। अपने वर्तमान स्वरूप में विधेयक का मसौदा ओबीसी महिलाओं और मुस्लिम महिलाओं को बाहर करके भारत जैसे विशाल देश में गंभीर सामाजिक असमानताओं को संबोधित नहीं करता है। हालाँकि इस कानून में एससी और एसटी की महिलाओं को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को नजरअंदाज किया गया है। जस्टिस सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006), पोस्ट-सच्चर मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट (2014), विविधता सूचकांक पर विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट (2008), भारत अपवर्जन रिपोर्ट (2013-14), 2011 की जनगणना और नवीनतम एनएसएसओ जैसी विभिन्न रिपोर्ट और अध्ययन रिपोर्ट सुझाव देते हैं कि भारतीय मुसलमानों और खासकर मुस्लिम महिलाओं का सामाजिक-आर्थिक सूचकांक काफी कमी है। संसद और राज्य विधानसभाओं में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है। यह उनकी जनसंख्या के आकार के अनुपातिक नहीं है।”
प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा, “प्रस्तावित आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद परिसीमन अभ्यास के बाद ही लागू होगा। यानी बिल का फायदा 2030 के बाद ही मिल सकेगा। इस प्रस्ताव के समय से प्रकट होता है कि इसे आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर लाया गया है इसमें गंभीरता की कमी है। असमानता दूर करने के कई तरीकों में से एक है सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण)। महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण होगा और “सब का साथ, सबका विकास” की नीति के अनुरूप नहीं होगा।”
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