ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड(AIMPLB) ने हमेशा वह काम किया है जो उसे नहीं करना चाहिए और वह काम नहीं किया है जो उसे करना चाहिए। चाहे तीन तलाक का मसला हो, अयोध्या विवाद हो या अब सूर्य नमस्कार का मामला, बोर्ड ने हमेशा मुसलमानों को दिग्भर्मित ही किया है। दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो यह कहना अनुचित नहीं होगा की पर्सनल लॉ बोर्ड ने हर मसले को मजहब का चश्मा पहनाकर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हुए भारतीय जनता पार्टी(BJP) को चुनावी फायदा पहुंचाया है और कौम को नुकसान पहुंचाया है।
भारत सरकार का सभी राज्यों को एक जनवरी से सात जनवरी तक अपने स्कूलों में सूर्य नमस्कार कार्यक्रम का आयोजन करने का निर्देश ऐसी कोई चीज नहीं है जिस से इस्लाम खतरे में आ जाए। सूर्य नमस्कार जिस्मानी वर्जिश की एक शक्ल है, इसे पूजा प्रार्थना का नाम देना कहीं से भी उचित नहीं है। इस्लामिक देशों में एक तरफ मंदिर बनाने की अनुमति दी जा रही है, महाभारत और रामायण को Comparative Religious Studies के तहत स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है, और यहां हमारे देश में , बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है की हमारे रहनुमा शिक्षा स्वास्थ और दूसरे विकास कार्यों में हमारी रहनुमाई करने की बजाए हिंदू और मुस्लिम बच्चों के बीच धर्म की लकीर खींचने में लगे है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर स्कूलों में सूर्य नमस्कार का कार्यक्रम आयोजित किए जाने के निर्देश का विरोध करना मेरी समझ से परे है। मुझे तो लगता है की बोर्ड हमेशा की तरह किसी के हाथ का खिलौना बना हुआ है। बोर्ड का यह कहना है कि भारत एक धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र है इसीलिए सरकार संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का सम्मान करते हुए इस तरह के आदेश को वापस ले और अगर सरकार वाकई देश से मोहब्बत का इजहार करना चाहती है तो उसे देश की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। मेरा बोर्ड से विनर्म अनुरोध है कि अगर आप मुसलमानों का हकीकत में भला चाहते हैं तो इस तरह के मसलों में चुप ही रहें और कौम को शिक्षा प्रदान करने की कोशिश करें।
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