समय समय पे समाज में समानतास और बराबरी की बात कही जाती रही है। पर किसी युग में आम मनुष्य को समान अधिकार नही मिला, चाहे वो द्वापर युग हो या कलयुग हर युग में बड़े जात के लोग छोटे जात के लोगों पे शोषण करता आया है, चाहे ब्रह्मनो को गीता, रामायण और शाश्तर पढ़ने की अनुमति नही थी और उनको समान अधिकार नही मिलता था वही आज भी पसमंदा मुसलमानों को उनका हक़ नही मिला, संविधान के अनुसार हिंदू चमार, डोम, नाई, पासवान, को संपूर्ण आरक्षण की व्यव्यस्था है वही मुसलमानों की क़ौम की नाई, चमार, डोम, बखो, भीष्टि, भाठीआरा अंसारी को ये समान अधिकार नही है, ये कैसा समांता है समाज में की एक ही स्थिति प्रस्तिथि के हिंदुओ को आरक्षण और मुसलमानों को कुछ नही, हैरत तो अब और है की सभी भाजपा नेता और सुशील कुमार मोदी ने कहाँ की समान नागरिक संहिता से बाहर रखे जा सकते है हिंदू आदिवासी क्षेत्र, वही शिव सेना और बसपा गुट ने समान नागरिक संहिता को स्पोर्ट किया वही दूसरी तरफ विपक्ष के कुछ दल और कांग्रेस और द्रमुक समेत कई विपक्ष नेता ने इसे चुनाव के फायदे का हथियार बताया,
आश्चर्य तो तब होता है की मुल्क़ के एक बड़ा तबका मुसलमानों के किसी नेताओ को विपक्षी दलों में नही रखा गया, न मुस्लिम लीग, न इंडियन मुस्लिम लीग और न ही एम. आई. एम के किसी सदस्यों को रखा गया, अब समाज पूछता है की अगर सरकार धरा 341 पे बात ही नही कर रहा तो ये कैसा समान नागरिक संहिता है पहले पसमंदा मुसलमानों को आरक्षण देकर उनको बराबर करो तब समान नागरिक कानून की बात करो, पिछड़े वर्ग के मुसलमानों की हालात बद से बदतर हो गई है भारतीय आदिवासी दलित से भी नीचे है पर कोई उनके हक़ की बात ही नही कर रहा है।
लेखक- इरफ़ान जामियावाला
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि ग्लोबलटुडे इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)