उर्दू का रिश्ता हमारी रूह से है: मुजफ्फर अली

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  • उर्दू की मिठास को गैर-उर्दू तबके तक पहुंचाना समय की मांग: प्रोफेसर रवि टेक चंदानी
  • भारत के मौजूदा बेहतरीन ज़हन ही विकसित भारत अभियान का नेतृत्व करेंगे: शम्स इकबाल
  • राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा आयोजित विश्व उर्दू सम्मेलन के दूसरे दिन चार तकनीकी सत्र और ‘उर्दू के मधुबन में राधाकृष्ण’ नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया

नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा चल रहे तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन के दूसरे दिन चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहला सत्र ‘उर्दू शिक्षा का माध्यम’ विषय पर था। इस सत्र में उद्घाटन भाषण देते हुए परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इक़बाल ने कहा कि उर्दू शिक्षा माध्यम का वर्तमान परिदृश्य कई मायनों में विचारणीय है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए और वर्तमान स्थिति में सुधार के संभावित तरीकों पर विचार करना चाहिए, इसी उद्देश्य से आज यह बैठक आयोजित की गई है। मुझे उम्मीद है कि विषय के संबंध में महत्वपूर्ण बिंदु सामने आएंगे। इस सत्र के पेपर प्रस्तुतकर्ता में प्रो. रियाज़ अहमद और प्रो. तलअत अज़ीज़ शामिल थे, जबकि अध्यक्षता डॉ. अम्मार रिज़वी और प्रो. ग़ज़नफ़र ने की। चर्चा में भाग लेने वालों में प्रो. फारूक़ अंसारी, प्रो. मुहम्मद फैज़ अहमद, डॉ. सैयद ज़फ़र असलम और डॉ. अहमद अली जौहर शामिल थे।

इस सत्र के प्रतिभागियों ने शिक्षा के उर्दू माध्यम के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने और आधुनिक युग की ज़रूरतों के अनुसार उर्दू की शिक्षण सामग्री को अनुकूलित करने के लिए विभिन्न रणनीतियों को अपनाने के साथ-साथ मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा के महत्व पर ज़ोर दिया। इस सत्र का संचालन नुसरत जहां ने किया ।

दूसरा तकनीकी सत्र ‘उर्दू के हित को आगे बढ़ाने के लिए इन्फोटेनमेंट संसाधनों का उपयोग’ विषय पर था, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ फिल्म निर्माता मुज़फ़्फ़र अली और सुश्री कामना प्रसाद ने की और पैनलिस्टों में प्रोफेसर शफ़ी क़िदवाई, श्री जावेद दानिश और डॉ. सलीम आरिफ़ शामिल थे। चर्चा में भाग लेने वालों में श्री मासूम मुरादाबादी, तहसीन मुनव्वर और डॉ. मिर्ज़ा अब्दुल बाक़ी बेग शामिल थे। इस सत्र में प्रतिभागियों ने प्राचीन भारतीय मनोरंजन क्षेत्रों में उर्दू के उपयोग के इतिहास पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने नवीन सूचना एवं मनोरंजन संसाधनों के विभिन्न रूपों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार एवं में उनके प्रयोग की वकालत की। इस सत्र का संचालन डॉ. मुंतज़िर क़ाइमी ने किया।

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तीसरा सत्र ‘युवा पीढ़ी में विभिन्न विज्ञानों का प्रकाशन’ विषय पर था, जिसमें प्रोफ़ेसर इदरीस सिद्दीक़ी, प्रोफ़ेसर सरवतुल-निसा खान और शादाब उल्फ़त ने पेपर प्रस्तुत किए, सत्र की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर रवि प्रकाश टेकचंदानी ने की और चर्चा में भाग लेने वालों में फ़िरोज़ बख़त अहमद, सुश्री शाह ताज खान, डॉ सलमान अब्दुल समद और सुश्री स्तुति अग्रवाल शामिल थे। इस सत्र में नई पीढ़ी की शिक्षा और प्रशिक्षण के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई और कहा गया कि आधुनिक युग के परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण सामग्री और शिक्षक तैयार किए जाने चाहिएं। इस सत्र का संचालन डॉ. मुसर्रत ने किया।

चौथा सत्र ‘सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में उर्दू का दायरा और सुधार के उपाय’ शीर्षक से था। जिसमें आईआरएस श्री गुलज़ार वानी और डॉ. मुहम्मद अहसन ने पेपर प्रस्तुत किए । अध्यक्षता प्रो. एआर फातिही और प्रो ख्वाजा मुहम्मद शाहिद ने की। चर्चा में भाग लेने वाले प्रोफ़ेसर शाहिद रज़ा जमाल और डॉ. मुहम्मद रिज़वान अली थे। इस सत्र के पेपर लेखकों, बहस प्रतिभागियों और अध्यक्षों ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली में उर्दू के सिकुड़ते दायरे को एक वास्तविकता बताया और इसके समाधान के लिए विभिन्न उपायों की व्याख्या की और नए युग के कुछ सकारात्मक भाषाई पहलुओं को भी उजागर किया। सत्र का संचालन डॉ. शादाब शमीम ने किया और आज के तकनीकी सत्रों का समापन काउंसिल के निदेशक डॉ. शम्स इक़बाल के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।

शाम 6 बजे चिनमय मिशन, लोधी रोड में ‘उर्दू के मधुबन में राधाकृष्ण’ नामक एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका लेखन और निर्देशन प्रोफ़ेसर दानिश इक़बाल ने किया, जबकि इसे सुश्री नीलाक्षी और पारंगत प्रयाग कलाकेंद्र के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया।

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