अगर!

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Agar 1
शायर-साहिर निज़ामी

मैं साय की तरह तुम्हारे साथ-साथ रहूंगा

कभी आगे कभी पीछे,

हजार कोशिशों के बावजूद,

नहीं झटक पाओगे मेरे ख्याल को

अपने ज़हन से

मेरी सूरत को अपनी आँखों से

मेरी यादों को अपने दिल से 

बहुत मुश्किल है

क्यूंकि एक दिन एक साथ जीने-मरने की बात थी 

तुम कैसे भूल जाओगे अपने चेहरे पर मेरी गर्म साँसों को 

अपने जिस्म पर मेरी तैरती उँगलियों को 

न मुमकिन , कभी नहीं

अगर यह सच है कि तुम सौदागर नहीं  

Sahir Nizami
Sahir Nizami-Poet,Writer,Lyricist

-साहिर निज़ामी

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