Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rank-math domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home3/globazty/public_html/wp-includes/functions.php on line 6114
बस्ती के लाल आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी से मेरा पहला परिचय 13 साल की उम्र में हुआ था! - globaltoday

बस्ती के लाल आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी से मेरा पहला परिचय 13 साल की उम्र में हुआ था!

Date:

हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी की 137वीं जयंती पर विशेष

आज से कोई 28 वर्ष पूर्व अपने बचपन में लगभग 13 साल की उम्र में बस्ती जिले की जिस महान विभूति से मेरा पहला परिचय हुआ उनका नाम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल है .आदरणीय शुक्ल  जी से मेरा  परिचय बस्ती रेलवे स्टेशन के पूछ ताछ खिड़की पर हुआ पर 1989 में  हुआ और फिर यह सिलसिला चल पड़ा मैं जब जब बस्ती रेलवे स्टेशन जाता उनके के साथ समय गुजारता ,उनके बारे यह जानकर कि बहुत बड़े लेखक हैं बहुत प्रेरित होता,मन ही मन में ख्याल उभरता कि एक व्यक्ति लेखक कैसे बनता है ?

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी की 137वीं जयंती 

पिछले  हफ्ते  4 अक्टूबर को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी की 137वीं जयंती मनाई गई है ,साहित्य जगत के इस सपूत ने उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के अगौना में 4 ओक्टूबर 1884 को जन्म लिया , हिंदी साहित्य के आकाश पर अपनी  अनमिट छाप छोड़ी है हिंदी साहित्य का इतिहास आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के ज़िक्र के बिना मुकम्मल नहीं हो सकता . हिंदी साहित्य का यह चिराग 2 फ़रवरी 1941 तक रोशन रहा .

 इस अफरातफरी में कहीं  खो न जाऊं 

मुझे अपना पहला रेल सफ़र अच्छी तरह याद है उसकी एक एक बात याद है , रेलवे के सफ़र का मुझे पहला अनुभव बहुत बचपन में ही हो गया था  मई  की कोई तारिख थी जब मैंने ‘गोरखनाथ एक्सप्रेस ‘ जो अब ‘कुशीनगर एक्सप्रेस’ है से भैय्या भाभी के साथ पहला सफ़र किया था .भैय्या ने मुझे एहतियातन कोच नंबर जो याद करा दिया  था आज भी याद हैं कोच नंबर 9016 था .

वो भी क्या दिन थे ?

तब तक ट्रेनों में पानी की बोतल बेचने का चलन शुरू नहीं हुआ ,हर यात्री का अपना कूलिंग थर्मस हुआ करता था और गाड़ी रुकते ही सबसे पहले  हर यात्री स्टेशन पर लगी शीतल पेय जल की टोंटियों से पानी स्टॉक करता ,इस अफरातफरी में कहीं मैं खो न जाऊं  इस लिए भय्या ने कोच नंबर रटा दिया था ,इस प्रकार मेरा पहला सफ़र बॉम्बे का हाफ टिकेट पर हुआ था . उसके बाद से 2002 तक दो तीन साल छोड़ कर सभी गर्मी की छुट्टी मुंबई में ही गुज़री, आहा ! वो भी क्या दिन थे ?

1 रू  प्रति घंटा  के किराये पर  ली गई साइकिल

हमारे परिवार और गाँव के अधिकांस युवा रोज़गार के तलाश में 1970 के दशक में मुंबई कूच कर गए थे और फिर वहीँ पहले नौकरी की फिर अपना कारोबार जमाया और यहीं घर परिवार भी बसा लिया और अब मुकम्मल तौर पर मुबईकर हो चुके हैंगाँव के घर पर बुज़ुर्ग और छोटे भाई बहन ही रह गए उन्ही में से एक हम भी थे ,पढ़ते गाँव में थे गर्मी की छुट्टियां  नागपाड़ा के मस्तान तालाब ग्राउंड और आस पास की गलियों में 1 रू  प्रति घंटा  के किराये पर  ली गई साइकिल दौड़ाते गुज़रतीं .

आदरणीय शुक्ल जी  से मिलने का एक और मौक़ा होता

साल भर मुंबई से परिवार के किसी न किसी  सदस्य या फॅमिली का आना जाना लगा रहता  ‘सी ऑफ़ ‘ करने  और ‘रिसीव’ करने  के लिए रिज़र्व टेक्सी होती और यह हमारे लिए आदरणीय शुक्ल जी  से मिलने का एक और मौक़ा होता .रेलवे पूछ ताछ खिड़की पर लगे नोटिस बोर्ड पर गाडी के आगमन प्रस्थान की ताज़ा  स्थिति जानने के लिए अब्बू मुझे कहते जाओ देख कर आओ  गाड़ी आने में अभी और कितना समय है ?

यह एलान आज भी ज़ेहन में महफूज़ है

रेलवे पूछ ताछ खिड़की का यह एलान आज भी ज़ेहन में महफूज़ है “ यात्री गण कृपया ध्यान दें गाड़ी संख्या 1015 डाउन गोरखनाथ एक्सप्रेस जो गोरखपुर से चल कर  विक्टोरिया टर्मिनस बम्बई तक जाएगी ,अपने निर्धारित समय 7 बजकर 25 मिनट से 30 मिनट विलम्ब से चल रही है”.

अशरफ़ बस्तवी, वरिष्ठ पत्रकार
अशरफ़ बस्तवी, वरिष्ठ पत्रकार

शुक्ल  जी से  हमारी यह मुलाक़ात बहुत सार्थक रही

यहीं पूछ ताछ खिड़की के गेट पर  एक खास अंदाज़ की मूंछों वाले आदरणीय शुक्ल  जी से मुलाक़ात होती , स्टेशन पर मेरा अधिकांश समय दो जगह गुज़रता पूछ ताछ खिड़की पर और A.H Wheeler stall पर  यहाँ पत्र पत्रिकाओं से परिचय होता हिंदी ,उर्दू  की ज्यादा तर पत्र पत्रिकाओं  से पहला रिश्ता बस्ती स्टेशन के बुक स्टाल से ही हुआ जो समय के साथ  और गहराता चला गया , और आदरणीय शुक्ल  जी से आगे चल कर बकाएदा मुलाक़ात तब हुई जब स्कूल में  हिंदी के मास्टर जी ने  पाठ्य पुस्तक में उनका सबक पढ़ाया और फिर विस्तार से उनका परिचय कराया.

एक दशक से अदिक समय बीत गया. आदरणीय शुक्ल  जी से मिले हुए  नहीं मालूम  कि  आदरणीय शुक्ल  जी  की वह तस्वीर अब भी पूछ ताछ खिड़की वाले गेट  पर  है भी या नहीं लेकिन मेरे जैसे न जाने कितने मासूम  यात्रियों के ज़ेहन में शुक्ल  जी अब भी  महफूज़ हैं ,अर्ज़  करूं हमारी  यह मुलाक़ात बहुत सार्थक रही  थी…

बस्ती के इस लाल की जयंती देश के सभी लेखकों, साहित्यकारों ,पत्रकारों ,बुध्जिवियों को बहुत बहुत मुबारक हो.

नोट :लेखक : एशिया टाइम्स न्यूज़ पोर्टल के मुख्य संपादक हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Visual Stories

Popular

More like this
Related

एक दूसरे के रहन-सहन, रीति-रिवाज, जीवन शैली और भाषा को जानना आवश्यक है: गंगा सहाय मीना

राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद मुख्यालय में 'जनजातीय भाषाएं...

Understanding Each Other’s Lifestyle, Customs, and Language is Essential: Ganga Sahay Meena

Lecture on ‘Tribal Languages and Tribal Lifestyles’ at the...

आम आदमी पार्टी ने स्वार विधानसभा में चलाया सदस्यता अभियान

रामपुर, 20 नवंबर 2024: आज आम आदमी पार्टी(AAP) ने...
Open chat
आप भी हमें अपने आर्टिकल या ख़बरें भेज सकते हैं। अगर आप globaltoday.in पर विज्ञापन देना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क करें.