11 जुलाई,2019 /ग्लोबलटुडे
तरन्नुम अतहर: वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव सभ्यता की उत्पत्ति को लगभग 1 लाख 30 हजार साल से 1 लाख 60 हजार साल हो चुके हैं और हमें डेढ़ लाख साल लगे दुनिया की जनसंख्या को 100 करोड़ पहुंचाने में। सन् 1804 में दुनिया की आबादी ने पहली बार 100 करोड़ के आंकड़े को छुआ। अगले 123 साल में मतलब सन् 1927 में दुनिया की आबादी बढ़कर 200 करोड़ को गई। फिर भी इन्सान को समझ नहीं आया कि वो किस दिशा में बढ़ रहा है।
1960 में 33 वर्ष बीतने के बाद इन्सान ने अपनी आबदी को 300 करोड़ तक पहुंचा दिया। तब तक अनेकों वैश्विक संगठन बन चुके थे और कुछ लोगों को एहसास होना शुरू हो चुका था कि अधिक जनसंख्या ही मानव सभ्यता के पतन का कारण बन सकती है। तभी 1952 में आजादी के एकदम बाद भारत ने दुनिया में सबसे पहले परिवार नियोजन योजना शुरू की। उस समय भारत की आबादी थी लगभग 36 करोड़। लेकिन उससे भी आबादी पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
11 जुलाई 1987 को दुनिया में 500 करोड़वें बच्चे ने जन्म लिया। तब यूनाईटिड नेशन्स को भी चिंता का एहसास हुआ और 36 सदस्यों वाले एक संगठन यूनाईटिड नेशन्स पाॅपुलेशन फंड – यू.एन.एफ.पी.ए. का गठन किया गया जिसे दुनिया में जनसंख्या के विषय में काम करना था। क्योंकि 11 जुलाई 1987 को दुनिया की आबादी 500 करोड़ पहुंची थी, इसीलिए 1989 से 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। फिर भी आबादी का कारवां रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था और 1960 के 300 करोड़ के आंकड़े को हमने अगले 39 वर्षों में 1999 में बदलकर 600 करोड़ कर दिया। 1999 के बाद अभी सिर्फ 19 वर्ष ही बीते हैं लेकिन दुनिया की आबादी लगभग 800 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है।
जिस आबादी को लगभग डेढ़ लाख साल लगे 100 करोड़ पहुंचने में उसे हमने मात्र 214 सालों में ही 800 करोड़ के आसपास पहुंचा दिया है और अगर हम इसी गति से बढ़ते रहे तो 2050 में 1000 करोड़ के पार होंगे और प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्वर्गीय प्रोफेसर स्टीफन हाॅकिंस की माने तो अगले 100 वर्षों में इन्सान को रहने के लिए दूसरे गृह की आवश्यकता होगी। आबादी के बढ़ते स्तर को देखें तो इसमें भारत का बहुत बड़ा योगदान है। जिस देश ने दुनिया में सबसे पहले परिवार नियोजन योजना प्रारम्भ की आज वो सरकारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के कगार पर है। दुनिया की 2.4 प्रतिशत भूमि पर भारत में दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत आबादी रहती है और भारत के पास अपनी इस आबादी को पिलाने के लिए सिर्फ दुनिया का 4 प्रतिशत पानी ही है। आजादी के बाद से हम लगभग 100 करोड़ बढ़ चुके हैं।
कितनी विचित्र बात है कि आजादी से भारत में तीन गुना आबादी बढ़ चुकी है और 1947 की तुलना में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5177 क्युबिक ली0 से लगभग तीन गुना ही घटकर 1545 क्यूबिक ली0 हो गई है। जिस देश में कभी दूध की नदियां बहती थीं आज वा पानी की नदियों को भी तरस रहा है। बढ़ती आबादी के लिए भोजन की चिंता के कारण हमारे देश में ग्रीन रिवोल्यूशन, आपरेशन फूड जैसी अनेकों योजनायें चलायी गईं, जिससे आजादी के बाद से रासायनिक खादों का प्रयोग लगभग 80 गुना बढ़ गया और अनाज उत्पादन बढ़ा लगभग 5 गुना और साथ में बढ़ी हैं बीमारियां। जिस देश में विश्व के पहले दो विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई आज दुनिया के उच्चतम 250 विश्वविद्यालयों में उस देश का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। टैक्सपेयर्स के जिस पैसे को देश की प्रगति में लगना था अभी उस पैसे से हम शौचालय और गैस के कनैक्शन देने में ही लगे हैं। जबकि आज से लगभग 38 वर्ष पहले भारत और चीन की प्रतिव्यक्ति आय और अर्थव्यवस्था लगभग बराबर थी लेकिन चीन ने अपनी बढ़ती आबादी को रोककर अपने पैसों को रिसर्च, टैक्नोलोजी, रक्षा, रोजगार सृजन आदि के क्षेत्रों में लगाया और आज हम चीन की अर्थव्यवस्था के सामने कहीं पर भी नहीं ठहरते हैं। 1961 में हुए पहले बी.पी.एल. सर्वे के अनुसार भारत में 19 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे जोकि 2011 के सर्वे में बढ़कर 36 करोड़ हो गये। यूनाईटिड नेशन्स के अनुसार भारत में 50 करोड़ से भी अधिक लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। अगले 35 वर्षों में युवा जनसंख्या अधिक होने के कारण भारत की आबादी लगभग 200 करोड़ होगी। जब दुनिया दूसरे गृहों की खोज में लगी होगी तब हम अपनी बढ़ी हुई आबादी के लिए शौचालय और घर बनवा रहे होंगे।
आज ऐसा समय आ गया है जब प्रदूषण के कारण स्कूलों की छुट्टी की जा रही है। नीति आयोग के अनुसार देश के बड़े 20 शहरों में 2020 तक पानी समाप्त हो जायेगा। जंगलों को हम काटते जा रहे हैं और इसीलिए जंगली जानवरों ने आबादी में आना शुरू कर दिया है और अब हम उन्हें मार रहे हैं। जानवरों की आबादी को कम करने के लिए हमने बिहार में नील गायों को मारा, कहीं जंगली सूअर को मारा तो कहीं पर बन्दरों को मारा जा रहा है लेकिन इन्सान जो कि अपनी आबादी बढ़ाकर जंगलों को विकास के नाम पर काटने पर लगा है, उसे मारने का आदेश कौन देगा ? सन् 1974 से आज तक टैक्सपेयर्स के लगभग 2.25 लाख करोड़ रूपये परिवार नियोजन योजनाओं पर खर्च किये जा चुके हैं लेकिन यदि इस रकम का आंकलन हम आज के हिसाब से करेंगे तो यह 20 लाख करोड़ से भी अधिक बैठेगी। शायद टैक्सपेयर्स के पैसों का इससे बड़ा दुरूपयोग आज तक नहीं हुआ है। इतनी बड़ी रकम खर्च करके हमने क्या पाया है ? शायद 100 करोड़ की जनसंख्या वृद्धि और फिर भी उस पर तर्क करने के लिए अनेकों लोग तैयार हो जाते हैं।
सन् 2000 में भारत में 100 करोड़वें बच्चे ने जन्म लिया और आज वो बच्ची बालिग हो चुकी है। जिस देश में हर साल सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 1.5 करोड़ आबादी बढ़ती है पिछले 18 वर्षों में उसी देश में 36 करोड़ आबादी बढ़ चुकी है अर्थात् 2 करोड़ प्रतिवर्ष। अब कौन सही है, सरकारी आंकड़े या वास्तविकता समझ नहीं आता। इसपर हम कहते हैं कि देश में फर्टिलिटी रेट अब कम आ चुका है। सरकार के इस तथ्य को शायद देश को समझने की जरूरत है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की वैबसाईट के अनुसार अभी तक हमारे देश में 121,70,94,786 आधार कार्ड बन चुके हैं और लगभग 11 प्रतिशत आधार कार्ड बनने अभी बाकी हैं। जिसमें 30 जून 2018 तक 0 से 5 साल के बच्चों के 6,19,29,514 आधार कार्ड और 5 से 18 साल के बच्चों के 28,58,98,862 आधार कार्ड बन चुके हैं। प्राधिकरण के अनुसार 0 से 18 वर्ष के अभी 14,34,55,413 आधार कार्ड बनने बाकी हैं। वहीं प्राधिकरण के अनुसार 18 वर्ष से अधिक आयु के कुल 84,43,26,760 आधार कार्ड बनने हैं। यदि अब तक कुल बने आधार कार्ड में से हम 0 से 18 वर्ष की आयु के बने आधार कार्ड को घटायेंगें तो पायेंगें कि 18 वर्ष से अधिक आयु के 86,92,66,410 आधार कार्ड बन चुके हैं। प्राधिकरण के अनुसार 18 वर्ष से अधिक आयु के कुल 84,43,26,760 आधार कार्ड बनने हैं लेकिन अब तक 86,92,66,410 आधार कार्ड बन चुके हैं और अभी 11 प्रतिशत और बनने बाकी भी हैं। इससे देश समझ सकता है कि जनसंख्या को लेकर सरकारों के द्वारा हमारे देश में कितना झूठ बोला जाता है। कुछ माह पूर्व आयी चीन की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने दावा किया है कि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन नहीं अब भारत है और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की वैबसाईट भी चीन के इसी दावे को और पुष्ट करती है। भारत जनसंख्या विस्फोट के कगार पर है और हमारे देश की सरकारों को कोई चिंता ही नहीं है।
अब भारत को जनसंख्या नियंत्रण के नये मार्गों के विषय में सोचना होगा अन्यथा की दृष्टि में भारत विश्व की गरीबों और मजदूरों की राजधानी बनकर रह जायेगा। अब यह इस देश के आम नागरिकों को सोचना है कि वो अपने बच्चों को क्या बनाना चाहते हैं ? गरीब – मजदूर या कुछ और। समझ नहीं आता कि अब हम किसको महान कहें ? भारतीय इतिहास को या आने वाले भविष्य को …….!!!!