शेख चेहली या शेख चिल्ली के इतने किस्से हमने सुन रखे हैं कि यह नाम आते ही सहसा झूठी शेखी बघारने वाले किसी व्यक्ति का ध्यान आ जाता है। शेख चिल्ली मतलब दिवास्वप्न देखने, ख्याली पुलाव पकाने और उसे मनोरंजक तरीके से लोगों के आगे परोसने में सिद्धहस्त एक अद्भुत मज़ाकिया पात्र। लोग इस पात्र को लोक और लेखकों की कल्पना की उपज मानते हैं। लेकिन यह शेख चिल्ली के जीवन का आधा सच है। पूरा सच यह है कि शेख चिल्ली लोक की कल्पना की उपज नहीं, एक सच्चा ऐतिहासिक व्यक्तित्व है जिनके जीवन के तमाम पहलू हमारी नज़रों से ओझल ही रहे। वे अपने दौर के महान सूफी संत, दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षक थे।
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मुग़ल बादशाह शाहज़हां के समकालीन शेख चिल्ली का असली नाम अब्दुल रहीम या अब्दुल करीम बताया जाता है। मध्य बलूचिस्तान के एक खानाबदोश कबीले में जन्मे अब्दुल रहीम का परिवार वर्तमान हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पास थानेसर में आ बसा था। अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में चिल्ली एक विदूषक थे। उन्हें झूठे-सच्चे किस्से बना और सुनाकर लोगों को हंसाने का शौक था। धीरे-धीरे उनके किस्से इतने प्रसिद्द हुए कि लोक की जुबान पर चढ़ते गए।
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अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में वे संयोगवश एक सूफी संत के संपर्क में आये और उनसे प्रभावित होकर उनकी शागिर्दी स्वीकार की। वर्षों की साधना के बाद वे खुद मानवता की सेवा में समर्पित एक विख्यात संत बने। उनकी दार्शनिक, आध्यात्मिक उपलब्धियों की चर्चा फैली तो दूरदराज़ के लोग उनके संपर्क में आने लगे। शाहज़हां के पुत्र और औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह पहले उनके प्रशंसक बने और फिर शिष्य। दारा का उदार व्यक्तित्व बनाने में शेख चिल्ली की बड़ी भूमिका रही। उनके प्रति दारा की आस्था इतनी गहरी थी उन्होंने कुरुक्षेत्र के निकट थानेसर में शेख चिल्ली के जीते जी उनका एक भव्य मक़बरा तामीर कर दिया।
यह विशाल और भव्य मक़बरा मुग़ल स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना है। इसे दिल्ली के लाल क़िला और आगरा के ताज महल का मेल कहा जा सकता है।
सफेद संगमरमर की इस खूबसूरत इमारत में ऊपर चमकता हुआ एक विशाल गुंबद है जो दूर से ही दिखाई देता है। नौ मेहराबों और बारह छतरियों वाली इस इमारत के बीच में एक हरा-भरा लॉन है जिसके चारों तरफ कई कमरे हैं। शेख चिल्ली के मरने के बाद उन्हें इसी इमारत के तहखाने में दफ़नाया गया। इस मक़बरे में पांच और क़ब्रें भी हैं जिनके बारे में ठीक से लोगों को पता नहीं। शायद वे उनके प्रमुख शागिर्द रहे हों। इस मक़बरे के बगल में उनकी बीवी की भी क़ब्र है। इतिहास की विडम्बना यह कि उनके मरने के बाद लोगों को शेखी बघारने वाला शेख चिल्ली और उनके अनगिनत झूठे-सच्चे किस्से तो याद रह गए, मध्ययुग का एक महान सूफी संत शेख चेहली विस्मृत हो गया।
शेख चेहली के इस विशाल मक़बरे की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है। मक़बरे के आसपास की खुदाई में कुषाण काल, गुप्त काल, मौर्य काल और प्रागेतिहासिक काल की कई दुर्लभ मूर्तियां और इस्तेमाल की वस्तुएं मिली हैं जिन्हें इसी मक़बरे के दो बड़े-बड़े कमरों में प्रदर्शन के लिए रखा गया है। दुर्भाग्य से उचित प्रचार-प्रसार के अभाव में भारतीय इतिहास का यह पन्ना आमतौर पर इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले लोगों और पर्यटकों की नज़रों से ओझल ही रहा है। किसी भी समय इक्का-दुक्का लोग ही इस मक़बरे की खूबसूरती देखने आते हैं और उनमें भी ज्यादातर स्थानीय लोग ही होते हैं।
नोट-ये लेख पूर्व आईपीएस, मशहूर लेखक,कहानीकार और कवि श्री ध्रुव गुप्त की फेसबुक वाल से लिया गया है।
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