कौन भूल पाएगा इन गीतों को – फिर छिड़ी रात बात फूलों की…, करोगे याद तो हर बात याद आएगी…, देख लो आज हमको जी भर के… देख लो…। कैसे भूला जा सकता है नसीर उद्दीन शाह, सुप्रिया पाठक, स्मिता पाटिल, शौक़त आज़मी, भरत कपूर, सुलभा देशपांडे और बी एल चोपड़ा की अदाकारी। ज़िक्र हो रहा है फिल्म बाज़ार (1982) का, जिसे बनाया था सागर सरहदी ने।
वैसे तो सागर सरहदी ने बहुत से नाटक लिखे, कहानियां लिखीं, फिल्मों के स्क्रीन प्ले, कहानियां और संवाद लिखे लेकिन वो हमेशा याद किये जाएंगे फिल्म बाज़ार के लिए। और अब सागर सरहदी की यादें ही बची हैं। 87 साल के इस लेखक और फिल्मकार ने 22 मार्च को मुंबई में आखरी सांस ली।
‘बाज़ार’ महज़ एक फिल्म ही नहीं है। बाज़ार तो दर्द की ऐसी दास्तान है जो याद आ जाती है तो मन उदास हो जाता है। जब जब हिंदी सिनेमा के इतिहास की बेहतरीन फिल्मों की गिनती की जाएगी तो बेहद भव्य और सितारों से भरी हुई फिल्मों के बीच एक सादी सी फिल्म बाज़ार को भी शामिल किया जाएगा।
11 मई 1933 को ऐटबाबाद (पाकिस्तान) में जन्मे गंगा सागर तलवार ने कहानियां लिखनी शुरू कीं तो अपना नाम सागर ‘सरहदी ‘रख लिया। जब वे 14 साल के थे तब भारत का विभाजन हो गया। सागर सरहदी का खाता पीता परिवार जान बचा कर भारत में दिल्ली आया। कुछ दिनो बाद बड़े भाई रोजगार की तलाश में मुंबई चले गए। सागर सरहदी इंटर की पढ़ाई पूरी कर मुंबई अपने भाई के पास जा पहुंचे। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। कालेज में वामपंथी विचारों से प्रभावित हो कर वे नाट्य संस्था इप्टा में शामिल हो गए।
उन्होंने नाटक और कहानियां लिखनी शुरू कीं। उनका नाटक ‘भगत सिंह की वापसी’ बहुत चर्चित हुआ। मगर सागर सरहदी को एहसास हो चुका था कि नाटक और कहानियां लिख कर गुज़ारा नहीं चल सकता। लेकिन लेखन के अलावा वे कुछ करना भी नहीं चाहते थे। इप्टा के कई लेखक, शायर और नाटककार सिनेमा में नाम और दाम दोनो कमा रहे थे। सागर भी उसी रास्ते पर चले।
पहले फिल्मों के संवाद और फिर कहानी और स्क्रीन प्ले लिखे । उनकी पहली फिल्म बासु भट्टाचार्य की अनुभव (1971) थी जिसके उन्होंने संवाद लिखे। लेकिन यश चोपड़ा से उनकी मुलाकात उनके फिल्मी जीवन का टर्निंग पाइंट साबित हुआ। कभी कभी, सिलसिला, चांदनी और फासले में सागर सरहदी की कलम ने मोहब्बत से सराबोर कई ऐसे सीन और संवाद गढ़े जो यादगार बन गए। यहां तक की अमिताभ की एंग्रीमैन की मजबूत छवि को भी सागर सरहदी की कलम ने बदल दिया। उनकी लिखी कहानी ‘राखा’ पर फिल्म नूरी बनी और सुपर हिट साबित हुई।
कई साल तक दूसरों के लिये फिल्में लिखने वाले सागर सरहदी को बार बार लगता था कि उन्हें एक फिल्म तो ऐसी बनाने को मिले जिसमें उनके सिवा किसी और का दख़ल ना हो। इस तरह फिल्म ‘बाज़ार’ की बुनियाद पड़ी। फिल्म बनने के बाद उसे खरीदार नहीं मिले। फिल्म को रिलीज़ कराने के लिये सागर सरहदी ने एडी चोटी का ज़ोर लगा दिया और जब 1982 में किसी तरह फिल्म रिलीज़ हुई तो दर्शकों के दिल और दिमाग में ऐसी बैठी कि आज तक नहीं निकल सकी। इस फिल्म के गीत और संगीत तो मानो अमर हो गए।
सागर ने अपनी मर्जी की फिल्म तो बना ली लेकिन इस दौरान सागर सरहदी जिन कड़वे अनुभवों से गुज़रे उससे उन्होंने अपना ध्यान लेखन पर केंद्रित कर लिया। लेकिन शेर के मुंह खून लग चुका था। बेचैनी फिर बढ़ी तो उन्होंने फिल्म ‘लोरी’ प्रोड्यूज़ की जिसका निर्दशन उनके भतीजे विजय तलवार ने किया। एक अच्छी और साफ सुथरी फिल्म ‘लोरी’ फ्लाप हो गयी। फिर सगार सरहदी ने कई फिल्मों के लिये लेखन किया और शाहरुख खान की हिट फिल्म ‘दीवाना’ तथा ऋतिक रोशन की सुपर हिट फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ की सफलता में अपना योगदान दिया।
साल 2004 में सागर सरहदी ने ‘चौसर’ नाम की फिल्म बनायी। विडंबना देखिये कि बाज़ार जैसी फिल्म बनाने वाले फिल्मकार की फिल्म चौसर रिलीज़ तक नहीं हो सकी। सागर सरहदी ने कभी विवाह नहीं किया। उनके लिखे नाटक कालेज में कोर्स में शामिल हैं। कई कहानी संग्रह उनके नाम है और उनके नाम दर्ज है फिल्म बाज़ार। जिसके सहारे वे लंबे समय तक याद किये जाते रहेंगे।
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